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Horses for Courses: शास्त्री-कोहली की ऐसी रणनीति जो केवल कोच और कप्तान की जोड़ी के पक्ष में बनाई गई थी

हर चीज की अति बुरी होती है!

Shashwat Singh
द्वारा Shashwat Singh
18 जनवरी 2022
in खेल
0
शास्त्री-कोहली
16.9k
व्यूज़
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मुख्य बिंदु 
  • एक दौर था जब कोहली और शास्त्री की Horses For Courses थ्योरी से होता था खिलाडियों का सलेक्शन
  • टेस्ट की कप्तनी से इस्तीफा देने बाद विराट कोहली की जगह अब कौन होगा नया टेस्ट कप्तान
  • इस थ्योरी के तहत खिलाड़ियों का चयन उनकी अनुकूलन क्षमता के आधार पर होता है

भारत में क्रिकेट बेहद ही लोक्रप्रिय खेल है। क्रिकेट को अनिश्चितता का खेल कहा जाता है क्योंकि इस खेल में किसी भी समय पाशा पलट सकता है। वहीं, क्रिकेट टीम के टेस्ट कप्तान विराट कोहली के इस्तीफे के बाद से भारतीय क्रिकेट टीम में पिछले कुछ दिनों से उथल -पुथल का दौर शुरू हो गया है। स्वाभाविक रूप से, विराट के इस्तीफे के बाद टेस्ट फॉर्मेट में भारत को अब अगले कप्तान की तलाश है।

वहीं, BCCI के लिए विराट कोहली (अहंकारी चैंपियन) की जगह एक नए कप्तान की तलाश करना मुश्किल होता जा रहा है। जाहिर है कि विकल्प काफी कम हैं, जिसका कारण है, ‘Horses For Courses’ इस थ्योरी की वजह से शास्त्री-कोहली की जोड़ी ने विराट के करिश्मे के खिलाफ कोई विकल्प नहीं छोड़े हैं। के.एल. राहुल और रोहित शर्मा को टेस्ट कप्तानी के लिए प्रमुख दावेदार बताया जा रहा है। वहीं, ऋषभ पंत के नाम पर भी चर्चा धीमी गति से चल रही है। आपको बता दें कि जब गांगुली ने इस्तीफा दिया, तो सचिन, लक्ष्मण, सहवाग सहित कम से कम 4-5 खिलाड़ी इस पद के समान दावेदार थे। लिहाजा, विराट कोहली के बाद केवल एक ही सक्षम विकल्प कैसे उपलब्ध हो सकता है?

और पढ़ें: कैसे कोहली और शास्त्री के Favouritism ने अश्विन को संन्यास हेतु सोचने पर विवश कर दिया था

क्या है Horses For Courses थ्योरी

Horses For Courses चयन की एक थ्योरी है, जिसके तहत आप किसी खिलाड़ी का चयन उसकी अनुकूलन क्षमता के आधार पर करते हैं। यदि कोई खिलाड़ी उछाल वाले विकेटों के लिए अच्छा है, तो उसे टीम में स्थान मिलेगा। इसी तरह स्पिनिंग विकेट के लिए किसी और खिलाड़ी का चयन किया जाएगा। इस थ्योरी में यह शायद ही कभी मायने रखता है कि उस खिलाड़ी ने पिछले मैच या सीरीज में कितना अच्छा प्रदर्शन किया है।

इस थ्योरी के अनुसार एक खिलाड़ी विशेष क्षेत्र में विशिष्ट हो जाता है। यह उसे अल्पावधि में अपनी विरासत स्थापित करने में मदद करता है। हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में ऐसा नहीं है। टीम, विपक्षी टीम, खिलाड़ियों के प्रकार सहित सब कुछ भिन्न होता है। जब कोई खिलाड़ी एक-आयामी हो जाता है, तो वह अन्य परिस्थितियों में अपनी टीम का प्रतिनिधित्व करने के लिए पर्याप्त रूप से फिट नहीं होता है। यह उसके खेल के विकास को रोकता है, जिससे उसका करियर छोटा हो जाता है।

क्या यह थ्योरी टीम के लिए उपयोगी है?

इस थ्योरी को अल्पावधि में उचित ठहराया जा सकता है किन्तु खेल के लंबे प्रारूप में इस थ्योरी का नकारत्मक प्रभाव खिलाड़ी अवश्य पड़ता है। कप्तान के पास पंद्रह उपलब्ध विकल्पों में से चुनने के लिए ग्यारह खिलाड़ी हैं। वह उन्हें अपनी जरूरत के अनुसार चुन सकता है और टीम के लिए एक अच्छा Squad तैयार कर सकता है। वहीं, विराट कोहली की अभूतपूर्व सफलता केवल उनके थ्योरी के लिए उनके कुछ खिलाड़ियों पर निर्भर है।

यह थ्योरी लम्बे समय बाद अनिश्चितता के खले में टीम को काफी पीछे छोड़ देती है, जिसके बाद कोई भी खिलाड़ी टीम में अपनी जगह को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं करता है। फिर थोड़े समय के बाद, खिलाड़ी अपने स्पॉट को लेकर चिंतित हो जाते हैं। यहां तक ​​​​कि अगर उन्हें उनकी अनुकूल परिस्थितियों में प्रदर्शन करने के लिए चुना जाता है, तो उनकी असुरक्षित मनःस्थिति उनके प्रदर्शन के लिए अच्छी नहीं होती है और अंततः वे दबाव के आगे झुक जाते हैं।

कहा जाता है कि ईमानदारी एक एकमात्र नीति नहीं है। यह थ्योरी भी ठीक इसी तरह है। वर्तमान समय में, भारतीय क्रिकेट टीम में केवल रोहित शर्मा और जसप्रीत बुमराह ही अपने खेल को लेकर आश्वस्त हैं। वह इसलिए क्योंकि वे परिस्थितियों के सबसे अनुकूल हैं। उन्होंने दुनिया भर में अच्छा प्रदर्शन किया है। एक समय ऐसा था जब  कुलदीप यादव और यजुवेंद्र चहल को प्लेइंग इलेवन के स्थायी खिलाडियों में गिना जाता था, आज उन दोनों खिलाडियों अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से धूमिल होता जा रहा है। इसी तरह, भारत की तेज गेंदबाजी भी एक अस्थिर इकाई थी। तेज़ गति के बावजूद उमेश यादव अभी भी टीम से अंदर और बाहर हो रहे हैं। वहीं, मोहम्मद शमी जैसा कुशल खिलाड़ी हर दौरे में टीम के साथ होते हैं किन्तु उन्हें हर मैच खेलने को नहीं मिलता।

कोहली-शास्त्री का सलेक्शन ट्रिक 

दरअसल, एक बार टीम इंडिया के पूर्व कोच रवि शास्त्री ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया था कि, “2019 वर्ल्ड कप के लिए तीन विकेटकीपरों को एक-साथ चुना जाना मेरे हिसाब से ठीक नहीं था। अंबाती रायुडू या श्रेयस अय्यर में से किसी एक को लिया जा सकता था। एमएस धोनी, ऋषभ और दिनेश के एक साथ होने का क्या मतलब था? लेकिन मैंने कभी भी चयनकर्ताओं के काम में हस्तक्षेप नहीं किया।” इस पर पूर्व चयनकर्ता और स्पिनर सरनदीप सिंह ने बताया कि चयन समिति ने कप्तान विराट कोहली और तत्कालीन कोच रवि शास्त्री के साथ चर्चा किए बिना कुछ भी नहीं किया।

एक अच्छी प्रबंधन नीति वर्तमान के साथ-साथ भविष्य के लिए भी योजनाएं तैयार करती है, जब एक कप्तान और कोच की जोड़ी एक टीम का चयन करने के लिए बैठती है, तो उनकी प्राथमिकता सर्वोत्तम उपलब्ध नामों को सूचीबद्ध करना होता है। अच्छा प्रबंधन अपनी टीम को भविष्य के लिए भी प्रशिक्षित करता है। इसका सर्वोत्तम उदहारण यह है कि एक बार ऑस्ट्रेलियाई टीम में बल्लेबाजी में एडम गिलक्रिस्ट की जगह डेविड वार्नर और विकेटकीपिंग में उनकी जगह ब्रैड हैडिन को शामिल किया गया था।

और पढ़ें: रवि शास्त्री जैसे ‘ग्रहण’ के बाद आई राहुल द्रविड़ नामक पूर्णिमा

इसी तरह, भारतीय क्रिकेट टीम में भी वीरेंद्र सहवाग की विरासत को धोनी के नेतृत्व में शिखर धवन ने बदल दिया। यह सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि इन खिलाड़ियों को खुद को हरफनमौला खिलाड़ी बनाने के लिए टीम में पर्याप्त समय और मानसिक स्थान मिला। ऐसे में, क्या आप किसी ऐसे खिलाड़ी का नाम सुझा सकते हैं, जो कोहली की जगह ले सकता है, यदि वह बल्लेबाजी में अपने अनुकूल स्थान (3) को छोड़ देते है? आपके पास इसका जवाब होगा-नहीं। अंततः यहीं से  Horses For Courses थ्योरी उजागर होती है।

Tags: भारतीय क्रिकेट कोचभारतीय क्रिकेट टीमरवि शास्त्रीविराट कोहली
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Consulting Columnist, TFI Media. Social Activist Media | Researcher Political Analyst | शाश्वत परमो धर्मः

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