जो दिखता है, वो होता नहीं, और जो होता है, जरूरी नहीं वो आपको दिखाया ही जाए। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का टिकना कितना महत्वपूर्ण है, ये बात सत्तापक्ष से बेहतर विपक्ष और मीडिया दोनों ही जानती है और इसीलिए वे इस परिप्रेक्ष्य में तरह-तरह के सिद्धांत भी प्रकाशित करते आई है, ताकि जनता भ्रमित रहे और इस भ्रम से उन्हें कुछ फायदा मिल सके। लेकिन भ्रम के इस मायाजाल को तोड़ने में योगी आदित्यनाथ सफल रहे हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक प्रकार से मीडिया के हाथ से उसका सबसे महत्वपूर्ण अस्त्र ही छीन लिया है। दरअसल, उत्तरप्रदेश देश का सबसे बड़ा सूबा होने के साथ-साथ राजनीतिक परिदृश्य से भी बहुत महत्वपूर्ण राज्य है। राजनीती की समझ रखने वाले लोग यह जानते है कि उत्तर प्रदेश फतह कर ही दिल्ली की गद्दी पर बैठा जा सकता है। उत्तर प्रदेश चुनाव में बस अब कुछ दिन ही बचे हैं और राज्य की सभी छोटी-बड़ी पार्टी चुनाव जीतने के लिए कमर कस चुकी है। इस बार का उत्तर प्रदेश चुनाव इसलिए भी खास है, क्योंकि उत्तरप्रदेश के वर्त्तमान मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़ने वाले हैं।
और पढ़ें: ‘ATS ने मुझे योगी आदित्यनाथ को फंसाने के लिए कहा था’, मालेगांव बम धमाके के गवाह ने किया खुलासा
मीडिया की भ्रांतियों को किया धराशायी
योगी आदित्यनाथ राजनीति का एक ऐसा नाम है, जिसे देश के राष्ट्रवादी समुदाय भविष्य के प्रधानमंत्री के तौर पर देखते हैं। पिछले कुछ समय से देश का मीडिया का एक बड़ा धड़ा आगामी चुनाव और सीएम योगी आदित्यनाथ की दावेदारी को लेकर लगातार आम जनमानस में भ्रम फैला रहा था कि वो मथुरा या अयोध्या से चुनाव लड़ने वाले हैं। जी हां! मीडिया का एक धड़ा अपने प्राइम टाइम के शो के माध्यम से योगी आदित्यनाथ को कभी अयोध्या तो कभी मथुरा से उम्मीदवार घोषित कर देता था। लेकिन इसी क्रम में भाजपा ने जैसे ही उत्तर प्रदेश चुनाव के आगामी चुनाव के लिए उम्मीदवारों का ऐलान किया, वैसे ही मीडिया की सारी भ्रांतिया धरी की धरी रह गई।
दरअसल, भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर शहर से उम्मीदवार बनाया है। इनके गोरखपुर से चुनाव लड़ने के पीछे पूर्वांचल सबसे बड़ा कारण है। जिस तरह उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल महत्वपूर्ण है, ठीक उसी तरह बनारस और गोरखपुर पूर्वांचल के लिए महत्वपूर्ण है! गोरखपुर दशकों से भाजपा का गढ़ रहा है। खासकर 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में राम मंदिर आंदोलन के बाद से गोरखपुर में सिर्फ भाजपा की तूती बोलती रही है। योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में लगातार पांच बार गोरखपुर लोकसभा सीट से जीत हासिल किया है। यह हिंदुत्व का गढ़ तब भी अजेय रहा, जब समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का पूरे राज्य में दबदबा था। ऐसे में अब भाजपा इस बेल्ट में योगी आदित्यनाथ को उतारकर इस गढ़ पर पूरी तरह से कब्जा जमाने का प्रबंध कर चुकी है।
और पढ़ें: अयोध्या और उसके आसपास के क्षेत्रों में भाजपा का क्लीन स्वीप देखने के लिए तैयार रहिए
कमर कस चुके हैं योगी आदित्यनाथ
दरअसल, देश के कई मीडिया संस्थान योगी आदित्यनाथ को ममता बनर्जी वाली गलती दोहराने के लिए उकसा रहे थे, पर योगी भी बहुत बड़े राजनीतिज्ञ है, उन्होंने यह साबित कर दिया कि उन्हें छलना किसी के बस की बात नहीं है! उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को विधानसभा चुनाव में गोरखपुर शहरी सीट से उम्मीदवार के रूप में उन्हें चुनने के लिए भाजपा नेतृत्व को धन्यवाद दिया और विश्वास जताया कि पार्टी राज्य में “भारी बहुमत” के साथ सत्ता में लौटेगी। भाजपा ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मॉडल पर काम करती है। उत्तर प्रदेश में भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगी।
योगी आदित्यनाथ ने आगे कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं तथा वर्तमान और पूर्व प्रतिनिधियों की मदद से भाजपा न केवल गोरखपुर, बल्कि पूरे राज्य में जीत हासिल करेगी और भारी बहुमत के साथ फिर से अपनी सरकार बनाएगी। ऐसे में ध्यान देने वाली बात है कि एक ओर जहां दूसरे राजनीतिक दल के मुखिया चुनाव लड़ने से भी घबरा रहे हैं, वहीं योगी आदित्यनाथ अपने चिर परिचित अंदाज में कमर कसर चुके है और अपने नए अंदाज से सबको चौंका दिया है। इस बार योगी आदित्यनाथ ने न केवल अपने राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया है, बल्कि मीडिया को मानो अपनी शैली में दर्पण भी दिखाया है कि आप एजेंडा चलाते रहिए, हम आपकी पोल खोलते रहेंगे! आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव सात चरणों में फरवरी और मार्च 2022 में होने वाला है। वोटों की गिनती 10 मार्च को होगी और उसी दिन तय होगा कि यूपी की सत्ता किसके पाले में जाएगी।
और पढ़ें: योगी सरकार का बड़ा फैसला, कारसेवकों के लिए अयोध्या में बनेगा भव्य स्मारक