राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए नेता क्या-क्या नहीं करते। निरर्थक बातें बोलते हैं और ऊटपटाँग हरकते करते हैं। उनकी बातों को तवज्जो न मिले, तो वो अपनी हरकतों की तीव्रता को बढ़ा देते है और अगर ऐसी बातों के लिए दंड दिया जाये, तो सहानुभूति बटोरकर नेतागिरी चमका लेते है। ऐसे ही एक भाजपा नेता हैं सत्यपाल मलिक! पार्टी नें उनके लिए क्या-क्या नहीं किया। बिहार, उड़ीसा से लेकर जम्मू-कश्मीर और मेघालय तक के राज्यपाल रहे। अलीगढ़ के सांसद से लेकर राज्य सभा के सदस्य भी रहें। पर, सत्यपाल मलिक ने कृतघ्नता और राजनीतिक नग्नता की सारी हदें पार कर दी है! मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने रविवार को सरकार और भाजपा नेतृत्व पर हमला जारी रखते हुए आरोप लगाया कि जब वो किसानों के विरोध प्रदर्शन पर चर्चा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले तो उनका व्यवहार “अहंकारी” था जिसके कारण पीएम के साथ उनकी बहस हो गई।
और पढ़ें: सत्ता विरोधी लहर की काट लायी है BJP, यूपी चुनाव में अपनाएगी अपनी पुरानी रणनीति
पीएम मोदी पर बोला हमला
हरियाणा के दादरी में एक सामाजिक समारोह को संबोधित करते हुए राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा, ‘जब मैं किसानों के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए प्रधानमंत्री से मिलने गया, तो पांच मिनट के भीतर मेरी उनसे लड़ाई हो गई।‘ दादरी में मीडियाकर्मियों से बात करते हुए, जब उनसे कृषि कानूनों को निरस्त करने के सरकार के फैसले और किसान की लंबित मांगों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “पीएम ने जो किया उसके अलावा वह और क्या कर सकते थे? अब किसानों को निर्णय लेना चाहिए, क्योंकि कुछ मुद्दे अभी भी लंबित हैं। उदाहरण के लिए, सरकार को ईमानदारी दिखाते हुए किसानों के खिलाफ आपराधिक मामलों को वापस लेना चाहिए। इसी तरह न्यूनतम समर्थन मूल्य अर्थात् एमएसपी (MSP) को भी कानूनी रूप से लागू करना होगा।”
राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने यह भी कहा कि “अगर सरकार को लगता है कि यह आंदोलन समाप्त हो गया है, तो ऐसा नहीं है। आंदोलन को केवल निलंबित किया गया है। अगर किसानों पर अन्याय या अत्याचार किया गया तो फिर से शुरू किया जाएगा। स्थिति जो भी हो, मैं किसानों साथ रहूंगा।”
बताते चलें कि राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने हाल के दिनों में कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार पर कई बार हमला किया है। नवंबर 2021 में जयपुर में बोलते हुए उन्होंने कहा था कि केंद्र को अंततः किसानों की मांगों को मानना ही होगा। उन्होंने यह भी कहा था कि जब भी वो किसानों के मुद्दे पर बोलते हैं, तो उन्हें आशंका होती है कि दिल्ली से फोन आ सकता है।
और पढ़ें: कांग्रेस ने यूपी चुनाव के लिए ब्राह्मणों को डंप कर मुस्लिमों को चुना है
क्या गवर्नर पद से संतुष्ट नही हैं मलिक?
दरअसल, सत्यपाल मलिक के ऐसे कथनों के पीछे कुछ कारण है। सत्यपाल मलिक जाट हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से आते हैं, जहां जाटों का प्रभुत्व है। वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाला है। सत्यपाल मलिक राजनीति के इस महासमर में बड़ी मलाई खाने के फिराक में है। उनके हालिया रवैये से यह स्पष्ट हो गया है कि राज्यपाल पद से वो संतुष्ट नही हैं, इसीलिए अंतिम समय में वो पार्टी का पाला छोड़कर जातिवाद का दामन थामना चाहते है। इसके लिए किसान आंदोलन के मुद्दे पर सरकार की बेवजह आलोचना कर वो अपना जाट वोट बैंक मजबूत करना चाहते हैं, ताकि अंतिम समय में यूपी चुनाव के समय सरकार से ‘मंडावली’ कर सकें। पर, उन्हें यूपी के सीएम पद के दावेदार रहे मनोज सिन्हा से सीख लेनी चाहिए और निजी स्वार्थ के लिए वोटों का बंटवारा छोड़कर हिन्दुत्व के मुद्दे पर और पार्टी गाइड लाइन के साथ अडिग होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता तो सरकार को उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने में तनिक भी संकोच नहीं करना चाहिए, अन्यथा एक गंदी मछ्ली पूरे तालाब को गंदा कर देगी!
और पढ़ें: यूपी चुनाव को लेकर ओवैसी ने नए साल पर मचाया हंगामा, निशाने पर रहें अखिलेश यादव