केजरीवाल का वित्तीय ज्ञान यानी ‘काला अक्षर भैंस बराबर’

इनका यही अधूरा ज्ञान कर्ज़ संकट लाने वाला है!

केजरीवाल सरकार
मुख्य बिंदु

‘फ़्री’ में मिली किसी चीज को लेकर आपको भारतीय नागरिक की आम राय सर्वत्र दिखाई दे जाएगी। यही हाल देश की राजनीति और सरकारी व्यस्वस्था का हो गया है। एक समय था, जब कांग्रेस ऐसे ही लोकलुभावन वायदों से सरकार बना लेती थी पर उन वायदों में से रोजगार के नाम पर जनता को कुछ नहीं मिलता था। वहीं, इसी परंपरा को एक राजनैतिक पार्टी ने वायदों से बदलकर फ़्री का टैग लगा दिया, वह पार्टी है आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार।

इसी क्रम में फ़्री वाई-फाई से लेकर फ़्री बस सेवा तक वो मूल जनउपयोगी साधन हैं, जिसके फ़्री होते ही जनता आम आदमी पार्टी की और खींची चली आई। देश की राजधानी दिल्ली की सक्रिय राजनीति में पैर पसारे हुए आम आदमी पार्टी को लम्बा समय हो गया है। वहीं, सच तो यह है इस फ़्री के ढकोसले ने दिल्ली को दस साल और पीछे धकेल दिया है क्योंकि राज्य की सड़क, स्वास्थ्य, पानी जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की हालत चरमरा गई है।

‘फ़्री की राजनीति’ पर न्यायालय ने लिया संज्ञान 

दरअसल, देश के न्यायालय ने फ़्री की राजनीति पर संज्ञान लेना शुरू कर दिया है और भारत के चुनाव आयोग के साथ-साथ केंद्र सरकार से इसके खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट की एक बैंच वरिष्ठ अधिवक्ता और भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने किया।

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इस याचिका में कहा गया है कि, “फ़्री बांटने वाला तमाशा दशकों से चल रहा है। वादे हमेशा वादे बनकर रह जाते हैं।” याचिका पर सुनवाई करते हुए CJI एनवी रमन्ना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा, “यह निःसंदेह एक गंभीर मुद्दा है। मुफ्त में मिलने वाला बजट नियमित बजट से बढ़कर और आगे जाता है। कुछ पार्टियों के लिए यह खेल का मैदान है… हम इसे कैसे प्रबंधित या नियंत्रित कर सकते हैं?”

CJI रमन्ना ने आगे कहा, “सीमित दायरे में, हमने चुनाव आयोग को दिशा-निर्देश तैयार करने का निर्देश दिया था। लेकिन बाद में, उन्होंने हमारे निर्देशों के बाद केवल एक बैठक की। उन्होंने राजनीतिक दलों से विचार मांगे और उसके बाद मुझे नहीं पता कि क्या हुआ।” वहीं, यह हालत तब हैं जब न्यायालय अपनी ओर से सकारात्मक पहल करता है किंतु चुनाव आयोग की ओर से इस मामले पर सुस्त रवैया दिखाया जाता है।

विकास के नाम ‘फ़्री मॉडल’ ने जनता से किया छल

बता दें कि एक समय था जब फ़्री की राजनीति ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में दिखाई पड़ती है किंतु केजरीवाल सरकार ने जब से राजधानी दिल्ली में दिल्ली की जनता को फ़्री की लत लगाई है तब से दिल्ली के निवासी केजरीवाल की ओर इस तरह आकर्षित हुए कि दो बार बहुमत की सरकार बना डाली। सच तो यह है कि यदि पड़ताल की जाए तब पता चलेगा कि इस फ़्री के अतिरिक्त जो 20 नए अस्पताल, 500 नए स्कूल-कॉलेज, 11 हज़ार नई बसें खरीदने का वादा केजरीवाल सरकार ने वर्ष 2015 वाले चुनाव में किया था, वो आजतक धरातल पर पूर्ण नहीं हुआ है।

वहीं, जिस शिक्षा मॉडल का महिमामंडन केजरीवाल और सिसोदिया करते हैं, उसका कारण है पटपड़गंज विधानसभा स्थित मंगलम जैसे सरकारी स्कूल में बनवाया गया स्विमिंग पूल है, जिसे विश्वःस्तरीय करार कर दिया गया। ऐसे में, केजरीवाल सरकार ने शिक्षण पद्धति में सुधार के बजाए शिक्षा की आधारभूत संरचनाओं पर अधिक ध्यान दिया।

राजनैतिक अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रहे हैं केजरीवाल

केजरीवाल सरकार ने जनता को ऐसा बरगलाया कि चुनाव के दौरान न केवल दिल्ली अपितु दिल्ली के बाहर अन्य राज्यों में केजरीवाल रोजगार के अवसर देने और नौकरियां बांटने का दावा कर रहे हैं जबकि 7 साल के अपने कार्यकाल में अब तक केजरीवाल सरकार ने मात्र 406 नौकरियां ( एक RTI के अनुसार) ही दी हैं। ऐसी ही हालत दिल्ली की बुनियादी ढांचे की है, निस्संदेह शीला दीक्षित की सरकार में आधारभूत संरचना पर इससे अधिक ध्यान दिया गया था।

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अगर आज सड़कों की स्थिति देखें  तो दिल्ली की सड़कों पर इतने बड़े गढ्ढे होते हैं, जो खुले तौर पर सड़क दुर्घटनाओं को आमंत्रित करते हैं। ऐसे में, अगर केजरीवाल पंजाब या गोवा जैसे राज्यों में सत्ता में आते हैं, तो यह परिणाम देश की राजनैतिक अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाएगा। न सरकार को बुनियादी ढांचे से मतलब, न आर्थिक विकास से और न ही रोजगार से और यही केजरीवाल सरकार का ‘फ़्री ‘ का मॉडल है। दिल्ली के लिए फ़्री की लत घातक है अगर इसपर उचित ढंग से कोई भी कार्यवाई नहीं होती है तो दिल्ली को गर्त में ले जाने से कोई नहीं रोक सकता।

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