लॉरेन फ्रायर एक पत्रकार हैं। महोदया एनपीआर न्यूज के लिए भारत से संबंधित समाचार को कवर करती हैं। जून 2018 में, उन्होंने मुंबई में एक नया एनपीआर ब्यूरो खोला। भारत आने से पहले लॉरेन ने मैड्रिड स्थित एनपीआर न्यूज एजेंसी में सात वर्षों तक फ्रीलांस पत्रकार के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने सियोल, लंदन, इस्तांबुल, इस्लामाबाद और यरुशलम में एनपीआर ब्यूरो प्रमुख के रूप में भी अपनी सेवा दी।
आप यह सोच रहे होंगे कि आखिरकार हम एक महत्वहीन पत्रकार के बारे में इतना विस्तृत परिचय क्यों दे रहे हैं? ऐसा इसलिए क्योंकि उनका परिचय इस प्रश्न से जुड़ा हुआ है कि आखिरकार आप भारत को कैसे देखते हैं?
संयुक्त राज्य अमेरिका में बेरोजगारी अपने चरम पर है। वहां के लोग अपनी नौकरियां छोड़ रहे हैं। कोरोना महामारी ने इस तथाकथित आर्थिक महाशक्ति की नींव को ध्वस्त कर दिया है। अमेरिका के श्रम विभाग के अनुसार केवल नवंबर महीने में 45 लाख लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ दी। वर्ष 2021 में नौकरी छोड़ने वालों का आंकड़ा 75 लाख के पार चला गया। अमेरिकियों द्वारा नौकरी छोड़ने की इस अप्रत्याशित घटना को “The great Resignation” कहा गया। द गेटी द्वारा किए गए सर्वेक्षण में कम वेतन, विकास के न्यूनतम अवसर, प्रबंधक, सहकर्मी और ग्राहकों द्वारा नकारात्मक आचरण और भेदभाव, स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं और गलत कार्यशैली को इस सामूहिक त्यागपत्र का कारण बताया गया।
चंद रुपयों के लिए अपने देश से पलायन कर अमेरिका में नौकरी पाने का स्वप्न देखने वाले भारतीयों के मुंह पर यह करारा तमाचा है।
कोरोनावायरस से परेशान और बेरोजगार अमेरिकियों ने FedEx तथा Amazon के कार्गो ट्रेनों को लूटना प्रारंभ कर दिया। अमेरिका की रेल पटरियां उनके द्वारा लूटे गए सामान और कचरे के ढेर से पट गई। सोशल मीडिया पर अमेरिकी निरंकुशता और अराजकता के वीडियो वायरल होने लगे। कुछ महत्वहीन पत्रकार अमेरिका में व्याप्त इस अराजकता और निरंकुशता पर प्रश्न उठाने के बजाय भारत को अपमानित कर लोगों को दिग्भ्रमित करने लगे। इसी पतित कार्य में अपना सहयोग देकर लॉरेन फ्रायर ने निकृष्ट पत्रकारिता का उदाहरण प्रस्तुत किया।
14 जनवरी को लॉस एंजेलिस के रेलवे पटरियों पर अमेरिकी जनता द्वारा लूटे गए एक कार्गो ट्रेन के चित्र को पोस्ट करते हुए जॉन स्क्रीबर ने ट्वीट किया कि कार्गो ट्रेन में लूटपाट और डकैती की घटनाओं को मैंने स्वयं अपनी आंखों से देखा। रेलवे ट्रैक पर सर्वत्र लूट के सामान बिखरे पड़े हैं जिनमें यूपीएस बॉक्स, कोविड-19 किट, अमेजॉन पैकेज और डिजिटल प्रिंट्स बहुतायत में है। लूटपाट मचाने के बाद वहां की जनता ने कार्गो ट्रेन को खुली अवस्था में छोड़ दिया है। इस घटना को स्वयं अभिप्रमाणित करते हुए उन्होंने साक्ष्य के रूप में इस अराजकता और निरंकुशता को प्रस्तुत करने वाली एक चित्र को भी अपने ट्वीट में संलग्न किया।
लॉरेन फ्रायर ने इस मामले की संवेदनशीलता को कम करने और इस मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाने हेतु व्यंगात्मक लहजे में ट्वीट करते हुए लिखा की रेलवे पटरियों पर फैली गंदगीयों को देखते हुए प्रथम दृष्टया मुझे भान हुआ कि यह भारत का चित्र है। दरअसल, लॉरेन फ्रायर अपने ट्वीट के माध्यम से अमेरिका में फैले इस अव्यवस्था और निरंकुश नागरिक आचरण को ढ़कते हुए इससे भारत को जोड़ना चाहती थी।
I have deleted this tweet because it was insensitive. pic.twitter.com/Wvf8ZT0qFc
— Lauren Frayer (@lfrayer) January 15, 2022
उनकी यह ओछी मानसिकता प्रत्यक्ष रूप से पाश्चात्य श्रेष्ठता के विकृत चेहरे को परिलक्षित कर रही थी। विरोध प्रारंभ होने पर उन्होंने अपने ट्वीट को असंवेदनशील बताते हुए उसे डिलीट कर दिया। परंतु, अपने नए ट्वीट में भी उन्होंने अपने पुराने असंवेदनशील और भारत को अपमानित करने वाले ट्वीट की चित्र को संलग्न रखा। विरोध के दबाव में उन्होंने अपने पुराने ट्वीट को भले ही डिलीट कर दिया लेकिन, क्षमा याचना के नाम पर उन्होंने भारत को पुनः अपमानित किया। एनपीआर न्यूज एजेंसी के लिए मुंबई में कार्यरत लॉरेन फ्रायर ने ‘जिस थाली में खाओ उसी में छेद करो’ का मानद उदाहरण भी प्रस्तुत किया।
प्रिय अमेरिका और पाश्चात्य संस्कृति के श्रेष्ठता के तथाकथित पुरोधाओं
आइए, साक्ष्यों, तथ्यों और आंकड़ों पर आधारित तार्किक पत्रकारिता के माध्यम से हम आपके तथाकथित सभ्य और विकसित होने के गूरुर को चकनाचूर करते हैं।
मानव संपदा में आप से 3 गुना अधिक मूल्यवान और भूमि संपदा में आप से 3 गुना कम होने के बावजूद भी हमारी बेरोजगारी दर आपसे मात्र 2% ही अधिक है। अब इसे भारत का दुर्भाग्य कहें या देवजनित विपदा जिसने भारतीय विकास के अश्वमेध को थोड़ा धीरे कर दिया। परंतु, इस नृशंस और नारकीय महामारी में भी पश्चिमी देशों की तरह भारतीय तनिक भी नहीं घबराए। पूरे भारत एक घर और एक परिवार की तरह संगठित हो पूरे साहस के साथ इस नृशंस और नारकीय महामारी का मुकाबला किया।
अगर तुलनात्मक रूप से अध्ययन करें तो विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति का दंभ भरने वाले आपकी अमेरिकी राष्ट्र में इस महामारी से 9 लाख लोगों की मृत्यु हुई जबकि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले भारत में 5 लाख लोगों की। इस महामारी से रक्षण हेतु उपकरण और संसाधन की संख्या और गुणवत्ता के मामले में भी हम आप से मीलों आगे रहे चाहे बात टिके की हो या पीपीपी किट की। जब आपने समग्र विश्व को इस महामारी के मझदार में छोड़ दिया तब एक महाशक्तिशाली राष्ट्र की तरह आचरण करते हुए हमने ना सिर्फ अपनी विशाल जनसंख्या को कोविड कवच प्रदान किया बल्कि यह सुनिश्चित किया की अन्य देश के नागरिकों तक भी यह पहुंचे।
जिन राजनेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं उन्हीं जनतंत्र के संचालकों ने अद्वितीय निर्णय शक्ति का परिचय देते हुए टीकाकरण के एक व्यवस्थित और समावेशी संरचना को निर्मित किया। जिन सरकारी कर्मचारियों पर लेटलतीफी और लालफीताशाही के आरोप लगते हैं उन्हीं प्रशासनिक अधिकारियों ने भारत को इस टीकाकृत कवच से ढकने के लिए दिन रात एक कर दिया और जिन भारतीय नागरिकों पर अव्यवस्था और अराजकता के आरोप लगते हैं उन्होंने ही व्यवस्था सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत करते हुए संयम के साथ टीके के लिए पंक्ति में खड़े रहे।
मजदूरों, किसानों, श्रमिकों और देश के अन्य नागरिकों ने भारत की समग्र परिधि को अपने पांव तले नाप दिया लेकिन किसी ने भी लूटपाट और अराजकता की एक घटना को भी अंजाम नहीं। चिकित्सालयों में धरती के भगवान डटे रहे और नागरिकों की सुरक्षा के लिए चौराहे पर मुंह बांधे जवान खड़े रहे। घर पहुंचने के लिए हमने रेलवे की पटरी ऊपर अपना रक्त अवश्य बहा दिया परंतु, महामारी से व्यथित हमने कभी भी रेल गमन को बाधित नहीं होने दिया। इसके विपरीत संक्रमण के इस नृशंस और नारकीय दौर में हमने लौह-पथ-गामिनी को जीवन प्रदायिनी में परिवर्तित कर दिया
रही बात रेलवे स्टेशन और उसके पटरियों पर गंदगी की तो उन सभी अमेरिकियों और पाश्चात्य श्रेष्ठता के पुरोधाओं को कभी जयपुर, जोधपुर,दुर्गापुर, जम्मू तवी, विजयवाड़ा हरिद्वार और मुंबई के रेलवे स्टेशन का भ्रमण करना चाहिए। उनके मन में भारत के स्वच्छता के प्रति व्याप्त समस्त पूर्वाग्रह क्षण भर में दूर हो जाएंगे।
सैन फ्रांसिस्को (संयुक्त राज्य अमेरिका) में, सड़क पर मल और खुले में शौच की शिकायतें 2011 से 2018 तक पांच गुना बढ़ गई, जिसमें 28,084 मामले दर्ज किए गए। यह मुख्य रूप से शहर में बेघरों की बढ़ती संख्या के कारण था। इसी तरह की समस्याएं लॉस एंजिल्स और मियामी में बताई गई थीं।आपकी योग्यता सिर्फ इस बात में निहित है कि आप तथ्यों को छुपा लेते हैं जबकि एक उत्तरदायि लोकतंत्र होने के नाते हम सूचना की सत्यता में विश्वास रखते हैं।
और पढ़ें: सूरीनाम में हिंदू धर्म: कैसे प्रवासी श्रमिकों ने दक्षिण अमेरिका में बनाया एक मिनी-इंडिया
भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया स्वच्छ भारत अभियान विश्व में चलाया जाने वाला सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान है। इसके तहत भारत सरकार ने 9 करोड़ शौचालय निर्मित कर भारत को खुले में शौच से मुक्त कर दिया। यह संख्या अमेरिका के एक तिहाई जनसंख्या को समाहित करने का ताकत रखती है जिनके नागरिक शायद विश्व की सबसे अधिक प्रदूषण सामग्री फैलाते करती है।
तथ्य और आंकड़े अंतहीन है परंतु शब्द और लेख परिधि की भी अपनी सीमा है। अमेरिका और पाश्चात्य संस्कृति के पुरोधाओं को यह समझना होगा कि यह आज का भारत है, नया परिवर्तित विश्व के मानचित्र पर पूरी शक्ति के साथ उदित होता सनातन भारत अन्यथा वह पीछे छूट जाएंगे। अब वह दिन गए जब पश्चिमी देश भारत को सपेरे और गरेडियों वाले राष्ट्र के नजरिए से देखते थे। 135 करोड़ के मानव संपदा के अद्भुत शक्ति से सजे इस भारत पर 21वीं सदी का वैश्विक भविष्य टिका हुआ है।