गोवा में चुनावी बिगुल बज चुका है। गोवा में TMC की उम्मीद तीन व्यापक गणनाओं पर आधारित है। राज्य में पर्याप्त अल्पसंख्यक आबादी, छोटा निर्वाचन क्षेत्र और भाजपा और कांग्रेस से परे की राजनीतिक जगह। गोवा में अल्पसंख्यक आबादी 32% से अधिक है, जिनमें से 25% ईसाई हैं और 8% से कुछ अधिक मुसलमान हैं। पिछले गोवा चुनाव में लगभग 30% सीटों या 11 विधानसभा क्षेत्रों में जीत का अंतर 1,500 वोटों से भी कम था। समग्र चुनाव परिणाम के संदर्भ में, 25% सीटों पर स्थानीय पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की।
ऐसे में यदि TMC को लगता है कि वो ईसाइयों का वोट पा लेगी तो ऐसा नहीं है क्योंकि दक्षिण गोवा में, जो कांग्रेस का गढ़ है, वहां TMC की मौजूदगी के कारण सिर्फ अल्पसंख्यक वोटों का विभाजन होगा। हिंदू, ईसाई और मुस्लिम क्रमशः राज्य की जनसंख्या के 66, 26 और 8.33 प्रतिशत हैं। बीजेपी के 27 विधायकों में से 15 कैथोलिक हैं। इनमें से आठ पूर्व कांग्रेस विधायक हैं जो दक्षिण गोवा से जीते हैं।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को ठंडे बस्ते में डालने के कारण और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पोप फ्रांसिस को भारत आने के निमंत्रण देने के बाद ईसाई समाज भाजपा को वोट देगा इसकी थोड़ी बहुत संभावना है।
भाजपा विधायक सोपटे ने कहा- “प्रधानमंत्री की पोप के साथ बैठक ने एक बहुत अच्छा संकेत दिया है और कैथोलिक समुदाय का भाजपा में विश्वास बढ़ा है। इससे हमें फायदा होगा। TMC कुछ वोटों का बंटवारा भी करेगी, जो अंततः हमारे पक्ष में होगा। इसके साथ-साथ ईसाई समाज राज्य में स्थिरता और विकास चाहता है परन्तु बंगाल चुनाव के बाद TMC की राजनीतिक हिंसा और प्रतिशोध को देखकर ईसाई समाज सकते में है।”
गोवा में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति TMC को तबाह कर देगी। TMC की इस्लामिक धर्मांधता और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति से भी गोवा की जनता अवगत हैं। गोवा के लोगों को पता है की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के चक्कर में TMC राष्ट्रहित और क्षेत्रीय पहचान की भी तिलांजलि देने में देर नहीं करती। इसका उदाहरण बंगाल में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाकर TMC पहले ही दे चुकी है। अतः वो कभी TMC के पक्ष में नहीं जायेंगे।
प्रभावशाली उम्मीदवार की कमी
29 अक्टूबर 2021 को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी गोवा चुनावी यात्रा की शुरुआत की थी। परंतु अभी तक TMC के पास ना तो कोई जनाधार वाला नेता है और ना ही कोई करिश्माई और प्रभावी चेहरा है। गोवा का चुनाव भी TMC सिर्फ मोदी विरोध और तुष्टिकरण के नाम पर लड़ रहीं है। ममता को चुनावी चेहरा बताया जाना भी हास्यास्पद हैं क्योंकि ममता कोई राष्ट्रीय नहीं बल्कि क्षेत्रीय नेता है। अतः, एक क्षेत्रीय बंगाली नेता के नाम पर गोवा की जनता वोट कर दे, ऐसा कम ही प्रतीत होता है।
हालांकि, गोवा चुनाव में लाइमलाइट बटोरने के लिए बंगाल की तर्ज पर ही TMC ने टेनिस के दिग्गज खिलाड़ी लिएंडर पेस और अभिनेता से नेता बनी नफीसा अली को पार्टी में शामिल किया है। पर, TMC को याद रखना चाहिए की पिछले चुनाव में लगभग 30% सीटों या 11 विधानसभा क्षेत्रों में जीत का अंतर 1,500 वोटों से भी कम था। समग्र चुनाव परिणाम के संदर्भ में, 25% सीटों पर स्थानीय पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। ममता गोवा को बंगाल समझने की भूल कर रहीं है, जहां जनता नेता के नाम पर अभिनेता चुन लेती है। इसे देखकर लगता है गोवा की गलाकाट राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में TMC के पास कोई प्रभावशाली उम्मीदवार नहीं है।
वहीं, लुइज़िन्हो फलेरियो गोवा के सबसे अलोकप्रिय नेताओं में से हैं और अगर वह चुनाव लड़ते हैं तो लौघबलेनी रूप से हार जाएंगे। इसलिए, TMC कई अन्य क्षेत्रों के लोगों के दरवाजे खटखटा रही हैं, उनमें से कुछ हास्यास्पद भी है, जैसे की संगीतकार लकी अली। ऊपर से लकी अली ने भी TMC की पेशकश ठुकरा दी थी।
गोवा में TMC जमीनी स्तर पर नहीं है। सब कुछ प्रशांत किशोर की कंसल्टेंसी द्वारा चलाया जाता है। वे भाजपा सरकार की व्यापक सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने और कुछ सीटें जीतने की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन हकीकत में इसकी संभावना बहुत कम है। उनकी (आई-पीएसी/TMC) रणनीति काम नहीं कर रही है। गोवा में TMC की राजनीतिक चर्चा सिर्फ मीडिया में है न कि जमीन पर।
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एक पहलू और भी है कि, गोवा में आम आदमी पार्टी की उपस्थिति ममता के मार्ग को अत्यंत कठिन बना देगी। आप न सिर्फ ममता के साथ अल्पसंख्यक वोटों का बंटवारा करेगी बल्कि सत्ता विरोधी वोटों को भी बंटेगी। ऊपर से केजरीवाल की राजनीतिक छवि ममता से ज्यादा सशक्त है। अरविंद केजरीवाल ने ममता का मखौल उड़ाते हुए कहा था की उनकी पार्टी गोवा चुनाव के लिए दौड़ में नहीं है।
केजरीवाल ने पणजी में मीडिया से कहा था कि “केवल मीडिया के लोग ही TMC को इतना फुटेज दे रहे हैं। मुझे लगता है कि TMC के पास आज का 1 प्रतिशत वोट शेयर भी नहीं है। वह पार्टी तीन महीने पहले गोवा आई है। लोकतंत्र इस तरह से काम नहीं करता है। लोकतंत्र में, आपको कड़ी मेहनत करनी होगी और लोगों के बीच काम करना होगा।”
प्रशांत किशोर ने ममता की महत्वाकांक्षाओं को पर लगा दिए है। ऊपर से बंगाल विधानसभा के चुनाव ने उनमें और जान भर दी है। वो समझ नहीं पा रहीं की बीजेपी सिर्फ इसलिए हारी क्योंकि उसके पास बंगाल में संगठन नहीं था। ममता बनर्जी को समझना होगा कि अभी भी वो एक क्षेत्रीय बंगाली नेता से अधिक कुछ भी नहीं हैं।