ये लेख MF Husain से संबंधित है। आम जनमानस में एक प्रचलित भ्रम है कि MF Husain एक कलाकार था, पर ऐसा नहीं है। किसी भी व्यक्ति को किसी परिभाषा और विशेषण से जोड़ने से पहले हमें उसका सूक्ष्म अन्वेषन अवश्य कर लेना चाहिए। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए की क्या वो व्यक्ति इन विशेषणों से अलंकृत होने के योग्य है या हम सिर्फ भेड़चाल में ये उपनाम उसे दे रहे हैं। सबसे पहले कला की परिभाषा देखते है? कला मानवीय कृति से जनित एक ऐसा उत्पाद है, जिसमें तकनीकी दक्षता, सौंदर्य, भावनात्मक शक्ति, विचारों की अभिव्यक्ति, रचनात्मकता या कल्पनाशील प्रतिभा शामिल है।
राष्ट्र और धर्म विरोधी चित्रकारी
MF Husain एक चित्रकार था। उसकी कृति में तकनीकी दक्षता की जगह अक्षमता तथा सौन्दर्य की जगह नग्नता थी। उसकी चित्रकारी विचारों की अभिव्यक्ति की जगह हिन्दू दुराग्रह की कृति थी। उसकी चित्रकारी भावनाओं को उकेरने की जगह भावनाओं के साथ खेलने के लिए प्रोत्साहित करती थी। अगर आपको लगता है कि ऐसा नहीं है तो हम आपको तथ्यों से संतुष्ट कराने की कोशिश करते हैं।
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MF Husain का जन्म 17 सितंबर 1915 को महाराष्ट्र के पंढरपुर में एक सुलेमानी बोहरा परिवार में हुआ था। यद्यपि उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम परिवार में हुआ पर वो हमेशा हिन्दू परवरिश और परिवेश में पुष्पित पल्लवित हुए, जहां एक ऐसी संस्कृति ने उनके सोच और कल्पना को वृहद और विराट ऊँचाइयाँ प्रदान की। उसी संस्कृति ने उनके अंदर के कलाकार को बाहर निकाला। वहीं, एक ऐसी सभ्यता जिसने हुसैन को MF Husain बनाया अन्यथा जिस संस्कृति में उनकी पैदाइश थी, उसमें तो कलाकारों को मौत के घाट उतारने की परंपरा है विशेषकर चित्रकारों को।
चित्रकारी में नग्नता की हदें की पार
ऐसे में, यहां एक प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर जिस संस्कृति ने हुसैन को इतना उपकृत किया, MF Husain ने उसे कैसे चित्रित किया? इसका उत्तर है- नग्नता के साथ। जी हाँ, यही सत्य है। जिस भारत देश ने उनपर इतने उपकार किए उसे हुसैन ने अपने चित्रकारी से अपमानित किया। जिस हिन्दुत्व ने उन्हें अपने गोद में खिलाया और एक चित्रकार बनाया उसका हुसैन ने नग्न प्रस्तुतीकरण किया। 1970 में हुसैन द्वारा कुछ चित्र बनाए गए थे। वो चित्र 1996 में एक हिंदी मासिक पत्रिका ‘विचार मीमांसा’ के ‘एम.एफ. हुसैन: ए पेंटर या बुचर’ शीर्षक से लेख लिखित में छपा। उनके चित्रों ने कथित तौर पर हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया, जिसने 1990 के दशक में उनके खिलाफ विरोध का एक अभियान शुरू किया।
फरवरी 2006 में, हुसैन पर पुनः हिंदू देवी-देवताओं के नग्न चित्र बनाकर ‘लोगों की भावनाओं को आहत करने’ का आरोप लगाया गया। उनके कुछ आपत्तिजनक और हिंदुओं को अपमानित करनेवाले चित्रों के उदाहरण देखिये। उनके एक चित्र में माता सीता को नग्न अवस्था में रावण की जंघा पर बैठे हुए दिखाया गया है, तो दूसरे चित्र में माता सरस्वती को नग्न अवस्था में वीणा बजते हुए। इसके अलावा, इंडिया टुडे के 6 फरवरी 2006 के अंक पर एक राष्ट्रीय अंग्रेजी साप्ताहिक ने ‘आर्ट फॉर मिशन कश्मीर’ शीर्षक से एक विज्ञापन प्रकाशित किया। इस विज्ञापन में एक नग्न महिला के रूप में भारत माता को चित्रित किया गया और उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों पर भारत के राज्यों के नाम उकेरे गए।
भारत को अपनी चित्रकारी से किया अपमानित
वहीं, MF Husain के प्रदर्शनी का आयोजन एक्शन इंडिया की नफीसा अली और अप्पाराव आर्ट गैलरी द्वारा किया गया था। उनकी ऐसी ना जाने कितनी ही चित्रकारी है, जिसमें राष्ट्र और धर्म को अपमानित किया गया है। पाठकजनों को लग रहा होगा कि हुसैन की चित्रकारी विधा ही ऐसी थी तो ऐसा नहीं है। नग्न चित्र तो छोड़ ही दीजिये बल्कि इस्लाम के आदेशों का अक्षरशः पालन करते हुए उन्होंने कभी भी इस्लाम से संबन्धित धार्मिक चित्रकारी नहीं की। उन्हें पता था कि इस्लाम में ऐसा करना हराम है और उन्होंने उसका अक्षरशः पालन भी किया।
वर्ष 2010 में उन्होंनें कतर की राष्ट्रीयता से सम्मानित किया गया और उन्होंने अपना भारतीय पासपोर्ट आत्मसमर्पण कर दिया। कतर की पहली महिला मोजाह बिंट नासिर अल मिस्नेड द्वारा कमीशन किये जाने पर उन्होंने मुख्य रूप से दो बड़ी परियोजनाओं पर काम किया, जिसमें एक चित्रकारी द्वारा अरब सभ्यता के इतिहास को उकेरना था। वैसे अरब को उन्होंने बड़े ही सम्मान के साथ कनवास पर उकेरा।
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हालांकि, हिन्दू अस्मिता और राष्ट्र अपमान के उन पर ढेरों आरोप लगे लेकिन न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया। माफ करिएगा, लेकिन MF Husain कोई कलाकार नहीं थे पर उन्होंने चित्रकारी को हथियार बना भारत और धर्म दोनों को लज्जित और अपमानित करने का कुत्सित प्रयास किया। हुसैन ना तो एक सच्चे भारतीय थे ना ही कोई कलाकार। वो बस एक भगोड़े थे, जो भारत और धर्म को अपमानित कर के भाग गए।