दुनिया में इस्लामीकरण के बढ़ते प्रभाव के बीच वैश्विक विमर्श में यह विषय सबसे अधिक चर्चा में रहता है कि इस्लामिक ताकतों को रोकने का और उनके कट्टरपंथी दृष्टिकोण से सामान्य लोगों को बचाने का कोई उपाय है अथवा नहीं। यूरोप से लेकर सम्पूर्ण अफ्रीका, एशिया और हमारे भारत तक, इस्लामिक शक्तियों का बढ़ता प्रभाव और उनकी उग्रता सभी देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुकी है। किसी सरकार अथवा संगठन द्वारा इस्लामीकरण का विरोध करने पर उसे इस्लामोफोबिक घोषित कर दिया जाता है। साथ ही सरकारी स्तर पर इस्लामीकरण के विचार को दबाने के लिए होने वाले प्रयासों की नकारात्मक प्रतिक्रिया मुस्लिम युवकों में भी देखने को मिलती है।
इन परिस्थितियों में बड़ा प्रश्न यह है कि इस समस्या के समाधान का सबसे सटीक उपाय क्या है? इसका उत्तर मुस्लिम महिलाओं की जागृति है। जी हां! इस्लाम अपने मूल स्वरूप में महिला विरोधी है। कुरान और शरिया दोनों में महिलाओं के लिए की गई टिप्पणियां एवं उनके लिए बनाए गए नियम, किसी बर्बर समाज की विचारधारा को प्रतिबिंबित करते हैं।
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महिला विरोधी है इस्लाम!
पिछले कुछ वर्षों में यह चलन देखने को भी मिला है कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा उन पर होने वाले अत्याचारों का विरोध किया जा रहा है। भारत की बात करें, तो यहां भी मुस्लिम महिलाओं के विरोध के कारण ही सरकार को तीन तलाक के इस्लामिक नियम को निरस्त करने का कानून बनाना पड़ा था। गौरतलब है कि इस्लाम में महिलाओं को पुरुष के अधीनस्थ नागरिक के समान समझा जाता है! इस्लाम पुरुषों को एक समय पर चार निकाह की अनुमति देता है। हलाला की प्रथा से सभी परिचित हैं, जिसका प्रयोग करके एक मुस्लिम स्त्री के साथ उसके शौहर के अतिरिक्त कई मामलों में उसके शौहर के अब्बा, भाई, मौलवी आदि लोगों द्वारा जबरन संबंध बनाए जाते हैं।
वहीं, इस्लाम में मौजूद मुताह निकाह और मिस्यार जैसी परंपराएं वेश्यावृत्ति और निकाह के बाद भी अन्य लोगों से शारीरिक संबंध रखने को अनुमति देती हैं! महत्वपूर्ण बात यह है कि मुस्लिम स्त्री के लिए अपनी इच्छा से किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध बनाने का कोई नियम शरीयत में नहीं है। कुरान महिलाओं की पिटाई को जायज़ मानता है एवं उसके लिए पूरे नियमों का उल्लेख है, जिसके अंतर्गत थप्पड़ मारने से लेकर डंडे से पीटने तक, पिटाई के चरणबद्ध नियम लिखे हुए हैं।
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मुस्लिम महिलाएं ही तोड़ सकती है इनका दंभ
बताते चलें कि कुरान में स्वयं मुसलमानों के पैगंबर मोहम्मद ने यह कहा है कि महिलाओं के पास पुरुषों से आधी बुद्धि होती है। इस्लाम मानता है कि एक पुरुष के बयान की विश्वसनीयता एक स्त्री के बयान से दोगुनी है, एक पुरुष को झूठा साबित करने के लिए कम से कम 2 स्त्रियों का उसके विरुद्ध बयान करना आवश्यक है। ये सभी तथ्य कुरान का हिस्सा हैं।
यदि अन्य धर्म की कोई महिला मुस्लिम पुरुष के साथ निकाह करती है, तो उसे निकाह के पूर्व इस्लाम अपनाना होगा। बिना इस्लाम अपनाए निकाह करने वाली महिला की संतान को कुरान के अनुसार अवैध माना जाएगा। उसे संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलेगा। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि भारत का मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस बकवास नियम को कानूनी मान्यता देता है!
इन सभी महिला विरोधी नियमों को तोड़ने की शक्ति मुस्लिम महिलाओं के पास ही है। उनके विरोध में उतरने पर वामपंथी और उदारवादी विचारधारा के लोगों द्वारा महिलाओं का विरोध भी नहीं किया जा सकेगा और न ही उनपर इस्लामोफोबिक होने के आरोप लगाए जा सकेंगे। जो लोग वास्तव में इस्लामीकरण के विस्तार को रोकना चाहते हैं, उन्हें मुस्लिम महिलाओं में जनजागृति अभियान चलाना ही होगा।
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