प्रशांत किशोर ने फिर साबित कर दिया कि क्यों वे सबसे खराब राजनीतिक विश्लेषक हैं

नाक कटवाने में विशेषज्ञ हैं प्रशांत किशोर 

प्रशांत किशोर पंजाब

वामपंथी विचारधारा, विशेषकर, उनके ईकोसिस्टम में कई भ्रम और भ्रांतियाँ हैं। पर प्रशांत किशोर का तो शायद ही कहीं कोई तोड़ मिलेगा। नंबरों से खेलने में वे निपुण है, पर मीडिया ने उन्हे कुछ ज्यादा ही सर पर चढ़ा दिया और एक ‘प्रखर चुनावी विशेषज्ञ’ तक का टैग दे दिया है। कुछ तो उन्हे ‘आधुनिक चाणक्य’ तक कहने लगे, परंतु ये सभी मुखौटे एक-एककर हटने लगे हैं, और इसके पीछे के अपरिपक्व, अजीबोगरीब विश्लेषक का वास्तविक स्वरूप सामने आ रहा है।

हाल ही में महोदय ने भाजपा को हराने के लिए अपनी रणनीति एनडीटीवी के माध्यम से सबके समक्ष रखी। उनके अनुसार, भाजपा को ‘2024 में हराना संभव है, और इसलिए क्योंकि भाजपा की लोकप्रियता तीन आधारस्तम्भों पर टिकी है –

प्रशांत किशोर की माने तो यदि भाजपा को 2024 में पराजित करना है तो उन्हे इन विषयों पर चुनौती देनी होगी, जिसके लिए विपक्ष शायद अभी पूरी तरह तैयार नहीं है – 

लेकिन क्या प्रशांत किशोर की यह नीति तर्क से परिपूर्ण है? बिल्कुल नहीं। प्रशांत किशोर के यही विचार बताते हैं कि वे इस समय राजनीति में हास्य का विषय क्यों बने हुए हैं।

प्रशांत किशोर के नीतियों के अनुसार, भाजपा के हिन्दुत्व का मुकाबला हिन्दुत्व से ही किया जा सकता है। इसी प्रकार से राष्ट्रवाद का राष्ट्रवाद और जनहितकारी नीतियों का जनहितकारी नीतियों से। साफ शब्दों में कहे तो कट कॉपी पेस्ट की नीति से प्रशांत किशोर ने भाजपा को हराने का सुझाव दिया था। इसे समझदारी नहीं, प्रथम दर्जे की बेवकूफी कहेंगे। 

इसी बेवकूफी पर TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा ने प्रशांत किशोर की धज्जियां उड़ाते हुए ट्वीट किया, इससे अच्छे समाधान मैं आधी नींद में दे सकता हूँ। भाजपा के हिंदुत्व का मुक़ाबला हिंदुत्व से ही किया जा सकता है, राष्ट्रवाद का राष्ट्रवाद से और जनहितकारी नीतियों का जनहितकारी नीतियों से। अगर विपक्षी पार्टी ये सब करेंगी तो डूप्लिकेट भाजपा लगेंगी और लोग डूप्लिकेट को क्यों वोट देंगे?”

लेकिन प्रशांत किशोर की नीति हास्य का विषय क्यों है? वे भाजपा का उन मोर्चों पर सामना कर रही हैं, जो भाजपा के सबसे मजबूत पक्ष रहे हैं। हिन्दुत्व पर जनता एक डुप्लिकेट को कतई नहीं चुनेंगे, क्योंकि जब ओरिजिनल प्रोडक्ट उपलब्ध हैं, तो डुप्लिकेट से क्यों काम चलायें?

एक और बात भी सर्वव्यापी है – जिसका काम उसी को साजे, दूजा करे तो ठेंगा पावे। भाजपा के अलावा आक्रामक हिन्दुत्व किसी और पार्टी पर कतई नहीं सूट करेगा। विश्वास नहीं है तो जरा कांग्रेस को देख लीजिए। प्रयास किया था गुजरात में, लेकिन अंत में निराशा ही हाथ लगी, और 2019 के लोकसभा चुनाव में जो थोड़ा बहुत भी विधानसभा चुनाव में कमाया था, वह सब गंवा दिया। इसी प्रकार से यदि कोई पार्टी क्षेत्रवाद में विशेषज्ञ हो, जैसे आरजेडी या डीएमके, और फिर वह भाजपा की तरह आक्रामक राष्ट्रवाद का प्रचार करेगी, तो वह न घर की रहेगी, और न ही घाट की।

इसके अलावा कोई भी प्रशांत किशोर के 2017 के उस विशाल अनुभव को नहीं भूला है, जहां उन्होंने कांग्रेस और सपा को उत्तर प्रदेश में जितवाने का प्रयास किया, और उल्टा लाभ हुआ भाजपा का। निस्संदेह लोग कहेंगे कि बंगाल में उनका प्रयोग सफल हुआ, परंतु प्रशांत किशोर अधिकतर वहीं पर दांव लगाते हैं जहां पर विजय की संभावना अधिक हो, लेकिन उत्तर प्रदेश में उनके सारे दावे खोखले सिद्ध हुए, और न कांग्रेस को कुछ प्राप्त हुआ, न सपा को। एक बार फिर उन्होंने अपने मानसिक दिवालिएपन का परिचय देते हुए सिद्ध किया है कि आखिर क्यों वे कोई राजनीतिक विशेषज्ञ नहीं है, और न ही राजनीतिक ज्ञान से उनका दूर-दूर तक कोई नाता है।

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