“विदेशी हस्तियों को बधाई संदेश”, PM मोदी वो दांव खेल रहे हैं जो किसी भारतीय PM ने कभी नहीं खेला

PM मोदी उन विदेशी हस्तियों का समर्थन जुटा रहे हैं, जिन्हें भारत से प्रेम है!

मोदी पत्र

जीवन में समस्या नहीं होती, होता है तो सिर्फ अवसर। यह विचारधारा आपको तनिक अजीब प्रतीत हो सकती है, परंतु बुद्धिमान वही है, जो विकट से विकट संकट में भी समाधान ढूंढ निकाले, और ये बात भारत के वर्तमान PM नरेंद्र मोदी पर शत-प्रतिशत लागू होती है। हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी ने गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर कई विदेशी हस्तियों को अपने हस्ताक्षर किये शुभकामना पत्र भेजे।

इनमें केविन पीटरसन, जॉन्टी रोड्स और क्रिस गेल जैसे चर्चित क्रिकेटर, गड साद जैसे विचारक, एशले रिंडसबर्ग जैसे प्रख्यात लेखक, क्रिज़टॉफ इवानेक जैसे शोधकर्ता, केन जकरमैन एवं एलन रोसलिंग जैसे संगीतज्ञों एवं उद्यमी इत्यादि शामिल थे, जिनका भारत से काफी गहरा जुड़ाव रहा है, और उन्होंने भारत के बारे में कुछ न कुछ सकारात्मक ही कवर किया है –

 

पीएम मोदी ने इस माध्यम से आजादी के अमृत महोत्सव को एक वैश्विक आयाम देने का प्रयास किया है। जल्द ही भारत अपनी स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ मनाएगा, जिसके लिए पीएम मोदी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, और ऐसे पत्र उसी का एक महत्वपूर्ण भाग है। लेकिन, एक और बात है, जो बहुत लोग नहीं समझ पाए, और जिसके पीछे पीएम मोदी की सूझ-बूझ स्पष्ट झलकती है।

ऐसे में ऐसे व्यक्तियों का समर्थन जुटाना, जिनका भारत से जुड़ाव क्षणिक या कृत्रिम न हो, अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। जिन लोगों से पीएम मोदी ने वार्तालाप करने का प्रयास किया है, उससे इतना स्पष्ट है कि वह अपनी एक वैकल्पिक टास्क फोर्स तैयार कर रहे हैं, जो वामपंथियों को उन्ही के अस्त्र से, उन्ही के गढ़ में पराजित कर सके। गड साद और एशले रिंडसबर्ग हो, या फिर जॉन्टी रोड्स एवं केविन पीटरसन, ये ऐसे लोग हैं, जिनकी फैन फॉलोइंग लाखों में है, और यदि समय पर इनकी आवश्यकता पड़ी, तो इनका समर्थन भी बहुत मायने रखेगा। इसका संकेत पीएम मोदी ने तभी दे दिया था जब उन्होंने विश्व आर्थिक फोरम के सम्मेलन में भारत की ओर वैश्विक ताकतों द्वारा उछले जा रहे कीचड़ की ओर बातों ही बातों में संकेत दिया था। 

अब जितने भी व्यक्तियों को पीएम मोदी ने पत्र भेजा, क्या उनमें से कोई भी ऐसा है, जो वामपंथी हो? इसका क्या संबंध है? ज़रा स्मरण कीजिए 2021 के उस क्षण को, जब कृषि कानून के विरोध मेँ रिहाना, मिया खलीफा, ग्रेटा थंबर्ग, जॉन कुसैक जैसे वामपंथी कलाकार सामने आए। एक कानून के विरोध में ये लोग भारत की छवि और भारत की संप्रभुता तक को निशाने पर लेने लगे थे। पर हमारी प्रतिक्रिया इनके उत्तर में क्या रही है? सुई पटक सन्नाटा, यानि परिणाम नगण्य!

लेकिन पीएम मोदी की नीति ऐसी नहीं है। वे भली-भांति जानते हैं कि लोहा ही लोहे को काटता है। राजनीति में दो प्रमुख शक्तियां होती है – हार्ड पावर और सॉफ्ट पावर। हार्ड पावर का स्पष्ट अर्थ सैन्य शक्ति और अर्थ से है। परंतु सॉफ्ट पावर भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जिसपर बहुत ही कम देश ध्यान देते हैं, और भारत अब उन देशों में शामिल होना चाहता है, जिनके लिए उनका सॉफ्ट पावर भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी उनकी हार्ड पावर यानि सैन्यबल, और ऐसी दूर दृष्टि किसी और भारतीय प्रधानमंत्री ने शायद ही पूर्व में दिखाई होगी।

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