टी एस तिरुमूर्ति ने हिंदुओं के विरुद्ध धार्मिक आधार पर भेदभाव की ओर ध्यान देने और ‘Hinduphobia’ को भी मान्यता देने को कहा
कहते हैं, ‘तेते पाँव पसारिए जेति लांबी सौर’, यानि समय से पूर्व और क्षमता से अधिक की नहीं सोचिये क्योंकि वो किसी को नहीं पचता। लेकिन ये छोटी सी बात आज तक UN के मस्तिष्क में नहीं बैठ पाई है, और इसे स्मरण कराने के लिए भारत ने एक अनोखा मार्ग अपनाया है।
Islamophobia (इस्लाम विरोध या घृणा) और उससे जुड़े शोध, ट्रेंड्स एवं चर्चाओं से हम अनभिज्ञ नहीं है, और भारतीयों को अनेकों बार ऐसे मामलों में अकारण ही अपमानित करने के लिए घसीटा जाता हैl लेकिन दूसरी ओर सनातन धर्म को नीचा दिखाने के लिए वैश्विक स्तर पर जो अभियान चलाया जा रहा है, उसपर सभी मानो चिरनिद्रा में लीन है और कानों में तेल डालकर बैठे हुए हैं। ‘Dismantling Global Hindutva’ जैसी ओछे कॉन्फ्रेंस तो ऐसे होती हैं, जैसे कोई आम वाद-विवाद प्रतियोगिता हो, और विश्व के बड़े-बड़े देश तो छोड़िए, UN तक पलक नहीं झपकाता।
परंतु हाल ही में जब संयुक्त राष्ट्र के एक अफसर ने ‘Islamophobia’ को लेकर भारत को उपदेश देने का प्रयास किया, तो अप्रत्यक्ष रूप से UN को कठघरे में लेते हुए भारत के प्रतिनिधि, टी एस तिरुमूर्ति ने हिंदुओं के विरुद्ध धार्मिक आधार पर भेदभाव की ओर ध्यान देने और ‘Hinduphobia’ को भी मान्यता देने को कहा।
वर्चुअल कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए टी एस तिरुमूर्ति ने कहा, “पिछले दो वर्षों में कई सदस्य देश, अनेक कारणों से, चाहे वह राजनैतिक हो, धार्मिक हो या फिर कुछ और, आतंकवाद को विभिन्न श्रेणियों में बांटना चाहते हैं, जैसे हिंसक उग्रवाद, हिंसक राष्ट्रवाद, दक्षिणपंथी उग्रवाद इत्यादि। यह प्रवृत्ति बहुत ही चिंताजनक है और खतरनाक भी।”
टी एस तिरुमूर्ति वहीं नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, “रोचक बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र के ‘वैश्विक आतंकरोधी रणनीति’ यानि ‘Global Counter Terrorism Strategy’ में केवल Abrahamic पंथ, जैसे इस्लाम, ईसाईयत एवं यहूदी धर्म के अनुयाइयों के विरुद्ध घृणा और भेदभाव का उल्लेख किया गया है। परंतु वर्तमान में गैर-Abrahamic पंथ, जैसे सनातन धर्म [Hinduism], बौद्ध धर्म और सिख धर्म के विरुद्ध भेदभाव का कोई उल्लेख नहीं है। हिन्दूफोबिया जैसी बातें एक गंभीर विषय हैं, और संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों को इस विषय पर चर्चा करनी चाहिए, और इस समस्या का समाधान निकालने में समय नहीं व्यर्थ जाने देना चाहिए!”
पश्चिमी मीडिया को भी आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने ‘दक्षिणपंथी विचारधारा’, ‘हिंसक राष्ट्रवाद’ जैसे विचारधाराओं पर कटाक्ष करते हुए आगे कहा, “ऐसे लेबल लगाना न केवल हास्यास्पद है, अपितु भ्रामक भी! आप जो करना चाह रहे हैं [आतंकियों को गुटों में बांटना], वो सही नहीं है। यदि आप अभी भी नहीं चेते तो हम फिर से 9/11 से पूर्व वाले उसे युग में चले जाएंगे, जहां आतंकी ‘आपके या मेरे आतंकी’ में बंटे होते थे। आतंकी आतंकी होते हैं, वे अच्छे आतंकी या बुरे आतंकी में नहीं बांटे जा सकते। जो ऐसी बात करते हैं, उनका अपना एक निजी एजेंडा है, और इनका बचाव करने वाले भी उतने ही दोषी है जितने ये आतंकी और ‘उनके रक्षक’। हम सुरक्षा परिषद से अनुरोध करेंगे कि ऐसे लोगों से सतर्क रहें, जो ऐसी अनुचित परिभाषाएँ गढ़कर मूल विषय से हमारा ध्यान भटकाने का प्रयास कर रहें हैं!”
सत्य कहें तो टी एस तिरुमूर्ति का यह बयान न केवल एक नए, सशक्त भारत का प्रतीक है, अपितु उन्होंने बिना आचरण की सीमा लांघे UN और परदे के पीछे से उन्हे निर्देश दे रहे उनके स्वामियों को चेतावनी दी है – भारत अपनी संस्कृति से कोई समझौता नहीं करेगा, और न ही इनके उपदेशों को आँख मूंदकर स्वीकारेगा। यह नया भारत हर उस व्यक्ति / राष्ट्र के लिए लड़ेगा जो योग्य है, चाहे कोई उसका समर्थन करे, या नहीं।