Singhs and Hasans: कैराना में हिंदू मुस्लिम विभाजन का केंद्र रहा है यह ‘परिवार’ !

एक ही परिवार के दो हिस्से हैं सिंह और हसन!

सिंह और हसन

Source- TFI

सिंह और हसन परिवार– महाभारत में पांडवों को अपने भाइयों के विरुद्ध युद्ध करना पड़ा था। इतिहास में हमें कई बार एक चीज सुनने को मिलती है कि कुर्सी के लिए एक भाई की दूसरे भाई से लड़ाई हो गई है या एक ने दूसरे को मार डाला। दूसरी चीज यह है कि राजनीति का स्वरूप जैसा भी हो, कहीं का भी हो, स्वार्थ सिद्धि राजनीति का अटल सत्य है। राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता, एक-दूसरे को नीचा दिखाने के बाद ही लोग आगे बढ़ते हैं। मौजूदा समय में यहीं स्थिति कैराना के सबसे मजबूत परिवारों के बीच हो गई है।

जी हां! आप बिल्कुल सही समझ रहे हैं, हम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में स्थित उसी कैराना की बात कर रहे हैं, जहां से साल 2013 में हिंदुओं ने बड़ी संख्या में पलायन किया था। यहां सांप्रदायिक दंगों के बाद हिंदुओं ने अपनी सुरक्षा के लिए पलायन का रास्ता अपनाया था। अब यहां पर मौजूद 2 मजबूत परिवार सिंह और हसन अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा के कारण एक दूसरे के आमने-सामने आकर खड़े हो गए हैं, लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि दोनों परिवार एक ही खानदान से सम्बंध रखते हैं। अब भाजपा के उम्मीदवारों की सूची से यह सियासी लड़ाई और गहरी हो गई है।

दरअसल, भाजपा ने यूपी चुनाव के लिए 107 उम्मीदवारों के नाम के साथ अपनी पहली सूची जारी की है। भाजपा ने कैराना से अपने उम्मीदवार के रूप में दिवंगत सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को चुना है। यह वही सीट है, जहां से  सपा के टिकट पर मौजूदा विधायक नाहिद हसन भी चुनाव लड़ रहे हैं। यह वही हसन परिवार है, जिसके वजह से कैराना से बड़े स्तर पर हिंदुओ का पलायन देखा गया था।

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एक ही परिवार के दो हिस्से हैं सिंह और हसन

बताया जाता है कि कैराना के राजनीतिक वंश, हसन और सिंह किसी समय पर एक ही खाप के तहत एक परिवार से तालुक्क रखते थे। यह बात करीब 120 साल पहले की है। हसन बनाम सिंह की लड़ाई में शामिल दोनों गुट किसी समय बाबा कलसा के नेतृत्व वाले एक राजपूत परिवार का हिस्से थे। इनके पूर्वजों में से एक ने जब इस्लाम की ओर रुख किया, तब प्रतिद्वंद्विता शुरू हो गई, जो आज तक जारी है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक कैराना के एक वृद्ध सुहैब अंसारी ने कहा, ”दोनों परिवार गुर्जर समुदाय के कलश्यान खाप से ताल्लुक रखते हैं, जो 84 गांवों में फैला हुआ है। कुछ साल पहले तक हुकुम सिंह हिंदू गुट के नेता थे, जबकि मुनव्वर मुस्लिमों के नेता थे। यह वही मुनव्वर हैं, जो नाहिद के पिता है। आज स्थिति यह है कि 1990 से लेकर अबतक राज्य विधानसभा और केंद्रीय लोकसभा में इसी परिवार का दबदबा रहा है। दशकों के दौरान दोनों गुटों ने विभिन्न समयों पर अपनी राजनीतिक ठिकानों को बदल दिया है, लेकिन यह लड़ाई हमेशा सिंह बनाम हसन ही रहा है। अब जब हुकुम सिंह और मुनव्वर हसन दोनों की मृत्यु हो चुकी हैं, तो दोनों परिवारों के बीच लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भी अगली पीढ़ी में चली गई है।”

मुनव्वर हसन के बेटे नाहिद ने यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में हुकुम सिंह की बेटी मृगांका को हराया था। जिसके बाद मुनव्वर हसन की विधवा, तबस्सुम हसन ने 2018 के लोकसभा उपचुनावों में मृगांका पर जीत हासिल की थी। वर्ष 2019 में पारिवारिक चक्र तब टूट गया, जब लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा इस सीट के लिए एक “बाहरी” प्रदीप चौधरी को लेकर आई, जिन्होंने अंततः तबस्सुम हसन को हराया। अब मृगांका सिंह एक बार फिर हसन वंशज के खिलाफ खड़ी हो गई हैं। मृगांका ने कहा, “मैं पार्टी की आभारी हूं कि उसने मेरे पिता की कड़ी मेहनत को पहचाना है। मैं उनकी विरासत को जारी रखूंगी।”

1990 से चल रही है यह राजनीतिक लड़ाई

ध्यान देने वाली बात है कि 1990 के दशक की शुरुआत में इस राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की शुरूआत हुई थी और अब यह अगली पीढ़ी में भी जारी है। हुकुम सिंह ने 1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर) के टिकट पर पहली बार यूपी विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। 1985 में, उन्होंने पाला बदल लिया और कांग्रेस के टिकट पर कैराना विधानसभा सीट जीत ली। वर्ष 1991 में हुकुम सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे तथा वो कैराना में मुनव्वर हसन से हार गए और इसके साथ ही वंशवाद की प्रतिद्वंद्विता शुरू हो गई। वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में हवा भाजपा के पक्ष में थी और हुकुम सिंह कैराना सीट जीतकर भगवा पार्टी में चले गए। हुकुम सिंह ने वर्ष 2012 तक भाजपा के उम्मीदवार के रूप में इस सीट को बरकरार रखा था। इस दौरान हसन अलग-अलग समय पर सपा, बसपा और रालोद के साथ रहे।

मुनव्वर हसन की मृत्यु के बाद हसन की पत्नी तबस्सुम हसन ने बसपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव 2009 से प्रतिद्वंद्विता शुरू की थी। आपको बता दें कि मुनव्वर हसन की वर्ष 2008 में हरियाणा के पलवल में एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उन्होंने इससे पहले 1996 में सपा उम्मीदवार के रूप में लोकसभा में कैराना का प्रतिनिधित्व किया था। वहीं, वर्ष में 2009 में तबस्सुम हसन ने हुकुम सिंह को हराकर लोकसभा में प्रवेश किया था।

परिवार में बढ़ते ही दूरियां!

हुकुम सिंह 2014 में बसपा और हसन परिवार से सीट छीनने में सफल रहे, क्योंकि हसन परिवार के करीबी मुनव्वर हसन के भतीजे नाहिद हसन ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। मोदी लहर ने हुकुम सिंह को कैराना लोकसभा सीट बड़े अंतर से जीतने में मदद की। 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद, हुकुम सिंह ने यूपी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद यूपी विधानसभा उपचुनाव में नाहिद हसन और हुकुम सिंह के भतीजे अनिल चौहान के बीच वंशवादी मुकाबला देखने को मिला था।

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में दोनों परिवारों में बंटवारा देखने को मिला।  हुकुम सिंह द्वारा जब अपनी बेटी मृगांका सिंह को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में प्रचारित किया गया, जब भतीजे अनिल चौहान ने भाजपा से निराश होकर, राष्ट्रीय लोक दल में शामिल होने का फैसला लिया। इसी बीच मुनव्वर हसन के भाई अनवर और कंवर अलग-अलग समय तक सपा और बसपा के साथ रहने के बाद राष्ट्रीय लोकदल में शामिल हो गए थे।

लेकिन कैराना लोकसभा उपचुनाव 2018 दो प्रतिस्पर्धी राजनीतिक राजवंशों के लिए पारिवारिक एकता का समय था। चाचा हुकुम सिंह की मृत्यु के बाद अनिल चौहान परिवार के साथ भाजपा में लौट आए। उन्होंने लोकसभा उपचुनाव में चचेरी बहन मृगांका सिंह के लिए प्रचार किया था। दूसरी ओर हसन परिवार से कंवर हसन मूल रूप से कैराना लोकसभा उपचुनाव में चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन अंततः रालोद नेता जयंत चौधरी के साथ बैठक के बाद उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया। कंवर हसन ने मृगांका सिंह के खिलाफ भाभी बेगम तबस्सुम हसन के समर्थन की घोषणा की थी।

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आज क्या है स्थिति?

मौजूदा समय में 60 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले कैराना में आज हसन बनाम सिंह की लड़ाई जटिल हो गई है। नाहिद हसन की हाल ही में गिरफ्तारी हुई है। यह वही नाहिद हसन हैं, जिसने इलाके में रहने वाले मुसलमानों से उन दुकानदारों का बहिष्कार करने का आग्रह किया था जो भाजपा समर्थक हैं। आज फिर यह लड़ाई सिंह बनाम हसन है। एक ही परिवार के दो सदस्य, जो हमेशा से एक दूसरे के खिलाफ थे, आज वह सपा बनाम भाजपा की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि भी यह लड़ाई हसन परिवार बनाम सिंह परिवार की है।

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