स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में शामिल होने के पीछे उनका Personality Cult दोषी है

इलेक्शन के युग में दलबदलुओं की कोई गारंटी नहीं है!

स्वामी प्रसाद मौर्य

उत्त्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के तारीखों की घोषणा के होने बाद प्रदेश की राजनीति में सियासी उलट-फेर का दौर जारी है। हाल ही में, पांच वर्ष पूर्व बसपा छोड़ भाजपा में शामिल हुए भाजपा सरकार के पूर्व श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा का दामन छोड़ चुके हैं। वहीं, अटकलें लगाई जा रही हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य या तो अलग पार्टी बना कर सपा के साथ गठबंधन करेंगे अथवा अपने समर्थकों सहित सपा में शामिल हो जाएंगे। स्वामी प्रसाद के पार्टी छोड़ने के बाद कई अन्य नेताओं के पार्टी छोड़ने की अटकलें लगाई जा रही थी। हालांकि, जिन नेताओं को लेकर अटकलें लगाई जा रही थी उनमें से बहुत से नेताओं ने मीडिया में बयान जारी कर ऐसी अफवाह का खंडन किया है।

स्वामी प्रसाद मौर्य ने छोड़ा भाजपा का दामन

अपने राजनीतिक करियर में स्वामी प्रसाद बसपा से चार बार विधायक रह चुके हैं। भाजपा में आने के बाद उन्हें वैसा ही सम्मान मिलने की उम्मीद थी किंतु भाजपा में उनसे बहुत योग्य नेताओं की उपस्थिति के कारण उनका कद हमेशा कम ही रहा। वहीं, योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े नेता के व्यक्तित्व ने स्वामी प्रसाद को अपनी राजनीतिक शक्ति के विस्तार का अवसर नहीं दिया। स्वामी प्रसाद की नाराजगी का एक कारण केशव प्रसाद मौर्य की भाजपा में ऊंची स्थिति भी है। केशव प्रसाद मौर्य भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं, जो ना केवल मौर्य समाज के बड़े नेता हैं बल्कि गैर यादव OBC मतदाताओं में उनकी अच्छी पकड़ भी है। ऐसे में, उनकी मौजूदगी में स्वामी प्रसाद मौर्य का कद बढ़ नहीं सकता था।

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बता दें कि BJP के अनुसार, स्वामी प्रसाद के पार्टी छोड़ने की जानकारी पहले से थी। इसलिए भाजपा के किसी बड़े नेता ने या केंद्रीय नेतृत्व ने स्वामी प्रसाद के साथ संपर्क नहीं किया है। स्वामी प्रसाद दलबदलु नेता हैं, जो प्रायः हवा का रुख देखकर अपना पाला बदलते हैं। संभवत उनका चुनावी गणित यह कह रहा है कि BJP पुनः सत्ता में नहीं वापस आने वाली है। देखा जाए तो पिछले उत्तर प्रदेश में किसी दल के लिए दुबारा जीतकर सत्ता में वापसी करना असंभव माना जाता है। अंतिम बार कांग्रेस ने 1985 में ऐसा किया था।

वहीं, मौर्य सपा में शामिल होंगे या फिर भाजपा का दामन छोड़ने के बाद वे भाजपा की छवि पर प्रश्न उठाएंगे इस पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनके साथ अपनी फोटो ट्वीट कर कहा, ”अगर किसी ने मुझे ट्वीट कर धन्यवाद किया है तो मैं धन्यवाद करता हूं, लेकिन मुझे जाना कहां है, यह निर्णय कार्यकर्ताओं से मिलकर होगा। अंतिम निर्णय कल शाम तक आ जाएगा, जिसे मैं 14 जनवरी को सुना दूंगा।”

भाजपा से किनारा कहीं व्यक्तिगत कारण तो नहीं

स्वामी प्रसाद मौर्य का भाजपा से नाता तोड़ना उनके व्यक्तिगत स्वार्थ और सत्ता के लोभ को प्रदर्शित करता है। दरअसल, स्वामी प्रसाद के बेटे उत्कृष्ट मौर्य ने रायबरेली के ऊँचाहार सीट से वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रतिनिधित्व किया था किन्तु वो उस सीट से हार गए थे, जिसके बाद भाजपा ने भी उन्हें दरकिनार कर दिया था। ऐसे में, यह स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए उनके व्यक्तित्व की लड़ाई है, जिसमें वह भाजपा से दूर होकर अपना और अपने बेटे के राजनीतिक करियर का सुरक्षित करना चाहते हैं।

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लेकिन यह भी सत्य है कि उत्तर प्रदेश को पहले कभी योगी आदित्यनाथ जैसा मुख्यमंत्री नहीं मिला था। ना ही उत्तर प्रदेश में पिछले कई दशकों से ऐसी कोई सरकार आई थी, जिसने पूरे 5 वर्ष शासन किया हो और उसपर घोटाले का एक भी आरोप ना लगा हो। स्वामी प्रसाद अथवा उनके जैसे अन्य नेताओं का भाजपा छोड़ना भाजपा के लिए चिंता का विषय नहीं है क्योंकि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का कद इतना बढ़ चुका है कि एक-दो छोटे नेताओं की बगावत का अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। योगी आदित्यनाथ को पराजित करने के लिए अखिलेश यादव को उनके व्यक्तित्व के समान करिश्माई व्यक्तित्व बनाना होगा, जो अखिलेश के लिए अगले 10 वर्षों में भी संभव नहीं है।

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