“सोच बदलो, दुनिया अपने आप बदल जाएगी”, यह वाक्य हमने कई बार वाद-विवाद में, कथाओं में, यहाँ तक कि इतिहास की कुछ अनकही गाथाओं में सुना है। परंतु इसे आत्मसात करने का साहस बहुत ही कम लोगों ने किया है।
हाल ही में दिवंगत शास्त्रीय संगीतज्ञ, पंडित जसराज के जन्मदिवस के अवसर पर पीएम मोदी ने एक विशेष ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उन्हे भव्य श्रद्धांजलि अर्पित की। पंडित जसराज कल्चरल फाउंडेशन (Pandit Jasraj Cultural Foundation) के शुभारंभ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि इस संगठन का प्राथमिक उद्देश्य भारत की राष्ट्रीय विरासत कला और संस्कृति की रक्षा करना और इसका विकास और प्रचार करना है। उनके अनुसार, “मुझे जानकर अच्छा लगा कि ये फाउंडेशन उभरते हुए कलाकारों को सहयोग देगी और आर्थिक रूप सक्षम बनने के लिए प्रयास करेगी।”
प्रधानमंत्री मोदी ने आगे ये भी बताया, “संगीत एक बहुत गूढ़ विषय है। मैं इसका बहुत जानकार तो नहीं हूं, लेकिन हमारे ऋषियों ने स्वर और नाद को लेकर जितना व्यापक ज्ञान दिया है, वो अद्भुत है। मुझे खुशी है कि उनकी शास्त्रीय विरासत को आप सब आगे बढ़ा रहे हैं। आज पंडित जसराज जी की जन्मजयंती का पुण्य अवसर भी है। इस दिन पंडित जसराज कल्चरल फाउंडेशन की स्थापना के इस अभिनव कार्य के लिए मैं आप सभी को बधाई देता हूं।”
लेकिन पीएम मोदी वहीं पर नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, “जब टेक्नोलॉजी का प्रभाव हर क्षेत्र में है, तो संगीत के क्षेत्र में भी टेक्नोलॉजी और आईटी का रिवॉल्यूशन होना चाहिए। भारत में ऐसे स्टार्टअप तैयार हों, जो पूरी तरह संगीत को डेडिकेटेड हों, भारतीय वाद्य यंत्रों पर आधारित हों और भारत के संगीत की परंपराओं पर आधारित हों। आज हम काशी जैसे अपनी कला और संस्कृति के केंद्रों का पुनर्जागरण कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति प्रेम को लेकर हमारी जो आस्था रही है, आज भारत उसके जरिए विश्व को सुरक्षित भविष्य का रास्ता दिखा रहा है”
आज हम काशी जैसे अपनी कला और संस्कृति के केन्द्रों का पुनर्जागरण कर रहे हैं, पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति प्रेम को लेकर हमारी जो आस्था रही है, आज भारत उसके जरिए विश्व को सुरक्षित भविष्य का रास्ता दिखा रहा है।
– पीएम @narendramodi pic.twitter.com/Wbedl1a1gM
— BJP (@BJP4India) January 28, 2022
संगीत के क्षेत्र में भारत का अपना अलग, मुखर व्यक्तित्व रहा है। आदिकाल से भारत का वैश्विक संगीत में अतुलनीय योगदान रहा है, और वर्तमान में भी यह योगदान तनिक भी कम नहीं हुआ है। शास्त्रीय संगीत में भारत की एक विशिष्ट पहचान रही है, और सामवेद तो संगीत को ही समर्पित है। कई योद्धाओं के लिए तो संगीत उनके अभ्यास का एक महत्वपूर्ण भाग हुआ करता था, और ये बात मेवाड़ के राजपूतों से बेहतर कौन जान सकता है?
अनेक आक्रमणों के बाद भी हमारी मूल संस्कृति और हमारे भारतीय संगीत पर लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ा। लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण और व्यवसायीकरण की अंधी दौड़ में भारतीय संगीत की रचनात्मकता कहीं गुम हो गई। बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया के सिद्धांत ने मानो भारतीय संगीत का सत्यानाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसके लिए कोई एक स्त्रोत अकेले जिम्मेदार नहीं। सबके हाथ गंदे हैं, इस पाप में।
परंतु अब पीएम मोदी ने दृढ़ संकल्प ले लिया है – जैसे स्मार्टफोन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता आ रही है, वैसे ही शनै:-शनै: संगीत के क्षेत्र का भी कायाकल्प होगा। जो काम पूर्व में विष्णु दिगम्बर पलुस्कर और विष्णु नारायण भातखंडे ने किया, वही कार्य अब एक बड़े स्तर पर पीएम मोदी भारतीय संगीत के लिए करेंगे, और भारतीय संगीत में बदलाव होकर ही रहेगा।