केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 12,000 करोड़ की हरित ऊर्जा के ‘Golden Quadrilateral’ को मंजूरी दी

अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में महाशक्ति बनेगा भारत!

ग्रीन इनर्जी कॉरिडोर चरण-II

Source- TFI

ग्रीन इनर्जी कॉरिडोर चरण-II: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का एक सपना था- देश की सड़कों और नहरों को जोड़ना। पर, उनके उत्तराधिकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ उनके सपने को वृहद स्वरूप दिया, बल्कि उनके स्वप्न को विचारधारा में परिवर्तित कर भारत के एकता और अखंडता को मजबूत करते जा रहे हैं। अगर आप अपने चारो ओर देखें, तो भारत सिर्फ भौगोलिक रूप से ही एक नहीं, बल्कि प्रशासनिक और सांस्कृतिक रूप से भी मोदी सरकार द्वारा एकीकृत किया जा रहा है। एकीकृत जीएसटी, आयुष्मान योजना, भारतमाला सब इसी स्वप्न को वास्तविक करनेवाली परियोजनाओं के नाम हैं। अब इसी कड़ी में मोदी सरकार भारत के ऊर्जा संसाधन और संचयन को एकीकृत कर रही है।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को सात राज्यों में अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं से उत्पन्न बिजली को निकालने के लिए पारेषण लाइनों (Transmission Lines) को बिछाने हेतु 12,031 करोड़ रुपये के निवेश को मंजूरी दी है। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने संवाददाताओं से कहा कि ग्रीन इनर्जी कॉरिडोर चरण-II नामक परियोजना के तहत 2026 के खत्म होने से पहले 10,750 किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनें बिछाई जाएंगी।

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देश के इन 7 राज्यों को मिलेगा लाभ

मोदी सरकार के ग्रीन इनर्जी कॉरिडोर चरण-II योजना की कुल अनुमानित लागत 12,031.33 करोड़ रुपये है, जिसमें परियोजना लागत की 33 प्रतिशत (लगभग 3970.34 करोड़ रुपये) के बराबर केंद्रीय वित्तीय सहायता (CFA) भी शामिल है। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 12,000 करोड़ रुपये की लागत से इंट्रा-स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम के तहत ग्रीन इनर्जी कॉरिडोर के दूसरे चरण को मंजूरी दी गई है। ग्रीन इनर्जी कॉरिडोर चरण-II योजना से देश भर में 10,750 किलोमीटर लंबी सर्किट ट्रांसमिशन लाइनों का निर्माण किया जाएगा और 20 गीगावॉट बिजली की निकासी में मदद मिलेगी।

तमिलनाडु, गुजरात, केरल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश सहित सात राज्यों को इस योजना से लाभ होने की उम्मीद है। यह योजना 2030 तक 500 GW अक्षय ऊर्जा उत्पन्न करने की भारत की योजना का एक महत्वपूर्ण घटक है। जर्मनी के स्वामित्व वाला निवेश और विकास बैंक समूह KfW ग्रीन इनर्जी कॉरिडोर चरण-II योजना के लिए ऋण प्रदान करेगा। यह विश्व का सबसे बड़ा राष्ट्रीय विकास बैंक है।

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि 2021-22 से 2025-26 वित्तीय वर्षों के 5 वर्षों के दौरान यह ट्रांसमिशन सिस्टम बनाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि पहले चरण का 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। पहले चरण का परिव्यय 10,142 करोड़ रुपये था। बयान में आगे कहा गया है कि केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) इंट्रा-स्टेट ट्रांसमिशन शुल्क को ऑफसेट करने और बिजली की लागत को कम रखने में मदद करेगा। इस प्रकार, सरकारी समर्थन अंततः अंतिम उपयोगकर्ताओं को लाभान्वित करेगा। बयान के अनुसार, यह परियोजना देश की दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा में भी योगदान देगी और कार्बन फुटप्रिंट को कम करके पारिस्थितिक रूप से सतत विकास को बढ़ावा देने में मददगार साबित होगी।

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भारत को ऊर्जा स्तर पर स्वावलंबी बनाएगी यह योजना

इसके अलावा, परियोजना बिजली और अन्य संबंधित क्षेत्रों में कुशल और अकुशल दोनों कर्मियों के लिए बड़े प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा करेगी। यह योजना जीईसी चरण- I के अतिरिक्त है, जो पहले से ही आंध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिलनाडु में ग्रिड एकीकरण और आरई के लगभग 24 गीगावॉट बिजली निकासी के लिए कार्यरत है। यह इसी साल पूरा होने की उम्मीद है।

आपको बता दें कि इस परियोजना के चरण-I में 9,700 सर्किट किलोमीटर पारेषण लाइनें (Transmission Lines) और 22,600 एमवीए क्षमता के सब स्टेशन  निर्मित किए गए, जिनकी अनुमानित लागत 10,141.68 करोड़ रुपये है और जिसमें सीएफए 4,056.67 करोड़ रुपये है। ग्रीन इनर्जी कॉरिडोर चरण-II योजना न सिर्फ भारत को ऊर्जा स्तर पर स्वावलंबी बनाएगी, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा के माध्यम से पर्यावरण को भी सुरक्षित रखेगी। यह परियोजना ऊर्जा महाशक्ति की ओर भारत के बढ़ते कदम की परिचायक है।

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