विराट कोहली को बनना था अगला तेंदुलकर, लेकिन बन गए विनोद कांबली

प्रतिभा तो भरपूर थी, लेकिन घमंड ने काम खराब किया!

हाल ही में संपन्न फ़्रीडम सीरीज़ के पश्चात विराट कोहली ने टेस्ट कप्तानी से हटने का निर्णय लिया है। एक महत्वपूर्ण पोस्ट में उन्होंने इस बात की घोषणा करते हुए कहा, “बीते सात सालों से लगातार कड़ी मेहनत और हर रोज टीम को सही दिशा में पहुंचाने की कोशिश रही। मैंने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया और कोई भी कसर नहीं छोड़ी। हर चीज को किसी समय रुकना पड़ता है और मेरे लिए भारत की टेस्ट कप्तानी छोड़ने का यह सही समय है।”

 

अब विराट कोहली के इस निर्णय पर क्या प्रतिक्रियाएँ आई, और जनता ने कैसा व्यवहार किया, इसपर तो बहुत लंबी चर्चा हो सकती है, परंतु आज हम बात करेंगे उस विराट कोहली की, जो देश के सबसे करिश्माई खिलाड़ी बन सकते थे, लेकिन आज उनकी प्रतिभा और उनका नेतृत्व दोनों ही संदेह के घेरे में है। एक समय इनकी तुलना सचिन तेंदुलकर से होती थी, परंतु आज इनमें और विनोद कांबली में अब कोई विशेष अंतर नहीं रहा, सिर्फ इसके कि विराट का रिकॉर्ड विनोद कांबली से काफी बेहतर है।

ऐसा क्यों? इसका प्रारंभ उस क्षण से होता है, जब आक्रामकता और प्रतिभा के आधार पर विराट कोहली को 2016 के मध्य में भारतीय टीम की कमान सौंपी गई। ये वो समय था जब भारतीय टीम विश्व की सबसे खतरनाक और सबसे दमदार टीमों में से एक बन चुकी थी, और उसे इस मंच तक पहुंचाने वाले महेंद्र सिंह धौनी को लगने लगा था कि अब उन्हे नए नेतृत्व के हाथों में कमान सौंपनी चाहिए। तब भारतीय टीम के कोच की जिम्मेदारी अनिल कुंबले ने संभाली थी, और स्थिति भी नियंत्रण में थी।

इसी समय प्रादुर्भाव हुआ विराट कोहली का, जो एक आक्रामक और कुशल बल्लेबाज़ के रूप में विश्व प्रसिद्ध थे। कई लोगों को उनमें सचिन तेंदुलकर की छवि दिखने लगी, और उनके कुछ प्रारम्भिक रिकॉर्ड इसी ओर संकेत भी दे रहे थे। ताबड़तोड़ रन बनाने और आक्रामकता से टीम को विजय की ओर ले जाने में मानो विराट कोहली, सौरव गांगुली और वीरेंद्र सहवाग जैसे खिलाड़ियों से भी मीलों आगे निकल चुके थे। 2017 का प्रारम्भिक सत्र इसी की ओर संकेत दे रहा था, और वेस्टइंडीज़ के दौरे पर विजय प्राप्त कर विराट ने अपनी प्रथम परीक्षा मानो distinction से उत्तीर्ण की।

जैसे-जैसे कोहली का कद बढ़ने लगा, वे एक उत्कृष्ट बल्लेबाज़ के रूप में और निखरने लगे। उसी वर्ष कुल मिलाकर 2800 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय रन बनाने में विराट कोहली सफल रहे, और उसी वर्ष 30 की आयु से पूर्व 10,000 रन पूरे करने वाले प्रथम क्रिकेटर बने। हालांकि, भारत को चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में पराजय का सामना करना पड़ा, और विराट कोहली के व्यवहार पर भी प्रश्न उठे, पर उनके प्रदर्शन के कारण कम ही लोग उन पर उंगली उठा पाए।

विराट कोहली का कद दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगा और जल्द ही वे भारत के सबसे करिश्माई खिलाड़ियों की सूची में शामिल हो गए। 2018 में वे विजय प्रतिशत में सौरव गांगुली को भी पीछे छोड़ने लगे, और दक्षिण अफ्रीका में वनडे सीरीज़ जीतकर उन्होंने इतिहास रच दिया। उसी वर्ष ऑस्ट्रेलिया को प्रथम बार ऑस्ट्रेलिया में पराजित कर उन्होंने इतिहास रच दिया, और फिर विराट कोहली देश के लिए एक लीजेंड बन गए।

परंतु वो कहते हैं, ‘सबै दिन न होत एक समान।’ विराट कोहली की आक्रामकता में कोई कमी नहीं थी, परंतु यदि कमी थी तो एकाग्रता और अनुशासन की। यह महत्वपूर्ण टूर्नामेंट में स्पष्ट दिखने लगा, और चैंपियंस ट्रॉफी में हुआ, वो तो ट्रेलर मात्र था, क्योंकि पहले विश्व कप 2019 और फिर 2021 के विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप फाइनल में जिस प्रकार अवसर होते हुए भी भारत औंधे मुंह गिरा, वो अपने आप में बताने के लिए पर्याप्त है कि विराट कोहली में कुशल नेतृत्व की भारी कमी थी। वे आक्रामक तो थे, परंतु उस आक्रामकता को सही दिशा देना तो कतई नहीं जानते थे। यूं ही नहीं सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स कोहली को ‘Chokli’ की उपाधि देने लगे।

अब आते हैं मूल मुद्दे पर – विराट विनोद कांबली की प्रतिमूर्ति कैसे हैं? विनोद कांबली और विराट में कोई विशेष अंतर नहीं है– दोनों ही बेहद प्रतिभावान और आक्रामक बल्लेबाज़ थे, दोनों के रिकॉर्ड बहुत बेहतरीन थे। विनोद कांबली तो भारतीय क्रिकेट के आधार स्तम्भ कहे जाने वाले ‘सचिन तेंदुलकर’ के साथ खेले और लगभग उन्ही के साथ भारतीय क्रिकेट में आए। लेकिन आज सचिन की चारों ओर जयजयकार होती है और विनोद कांबली, जो उनसे कहीं ज्यादा प्रतिभावान और बेहतरीन थे, उनको कोई भी नहीं पूछता।

ऐसा क्यों? कारण साफ है – सफलता को कभी भी अपने सर पर मत चढ़ने दें। लेकिन यही गलती पहले विनोद कांबली ने की, और वही काम विराट कोहली ने किया। घमंड और wokeness ने उनके अंदर के सीखने की कला और विकास को रोक दिया। TFIPost ने इसी विषय पर प्रकाश डालते हुए अपने विश्लेषणात्मक अध्ययन में कहा था, “जब लोगों को लगने लगा कि कप्तान के तौर पर महेंद्र सिंह धोनी के सन्यास लेने का समय आ चुका है, तो 2016 में विराट कोहली के लिए मार्ग साफ़ हो गया। यहीं से विराट कोहली का व्यक्तिगत उदय भी प्रारंभ हुआ, और चारित्रिक पतन भी। इसके संकेत 2017 के चैम्पियंस ट्रॉफी में ही मिल गए थे, जब अवसर भी था और स्थिति भी अनुकूल थी, परन्तु इसके बाद भी भारत आश्चर्यजनक रूप से पाकिस्तान से पराजित हुआ, और सिर्फ पराजित नहीं हुआ, भारत मानो पूर्णतया लज्जित होकर स्टेडियम से निकला। लेकिन कोहली के चेहरे पर न कोई लज्जा थी, और न ही कोई पश्चाताप की भावना।”

और पढ़ें : कोहली की 10 साल में कमाई इज्ज़त हवा हो गई देखते-देखते

विराट कोहली की जब तुलना सौरव गांगुली से उनके चाटुकार करते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे हीरे की तुलना कोयले से की जा रही हो। सौरव के कारण आज भारतीय क्रिकेट टीम सर उठाकर दुनिया में घूम सकती है, ये वो व्यक्ति है जिसने भारत को दुनिया भर में जीतना सिखाया, और हर व्यक्ति के अंदर का विजेता बाहर निकाला। जिस व्यक्ति के कारण देश को ज़हीर ख़ान, आशीष नेहरा, महेंद्र सिंह धोनी, वीवीएस लक्ष्मण, राहुल द्रविड़, अजीत अगरकर, वीरेंद्र सहवाग, इरफान पठान इत्यादि जैसे दमदार खिलाड़ी मिले हों, उसे अब ट्रोल्लर्स बताएंगे कि क्रिकेट कैसे संभालना चाहिए?

आज जब विराट कोहली को कप्तानी से हटना पड़ा है, तो कोई भी उनके इस निर्णय से दुखी नहीं है। ये गर्व का नहीं शर्म का विषय है, जिसके लिए स्वयं विराट कोहली दोषी है। एक समय ये सचिन तेंदुलकर की जिम्मेदारियों को ‘संभालने’ चले थे, लेकिन अंत में वे विनोद कांबली के चमकाए गए वर्जन से अधिक कुछ नहीं निकले।

Exit mobile version