हमने अशनीर और कोटक कर्मचारी विवाद के बारे में गहन शोध किया, आखिरकार अशनीर ग्रोवर दोषी कैसे हैं?

आखिर उन्हें कठघरे में खड़ा क्यों किया जा रहा है?

अशनीर ग्रोवर

Source- TFIPOST

एक मर्सिडीज का एक बाइसिकल से सामना होता है, ट्रैफिक सिग्नल पर दोनों रुकते हैं, परंतु साइकिल अपना संतुलन खो देता है और मर्सिडीज का भारी नुकसान हो जाता है। स्वाभाविक तौर पर मर्सिडीज का चालक निकलकर खूब अभद्र भाषा में बाइकर से बात करता है। स्वाभाविक भी है, क्योंकि ट्रैफिक सिग्नल पर संयम बरतना जरुरी होता है, परंतु इसी बीच कोई मर्सिडीज चालक द्वारा ‘गरीब’ बाइकर पर ‘चिल्लाते’ हुए वीडियो बनाता है। यह वीडियो वायरल हो जाता है, गरीब बाइकर को देश की दुआएं मिलती हैं और मर्सिडीज वाले की कोई विशेष गलती न होते हुए भी उसे सभी ताने और उलाहने सुनने पड़ते हैं और कुछ ऐसा ही अशनीर ग्रोवर और कोटक बैंक के साथ हुआ है। जिन्हें केवल इसलिए निशाने पर लिया जा रहा है, क्योंकि वो अमीर है और अभी आरोपों के घेरे में हैं।

लेकिन यह अशनीर ग्रोवर हैं कौन? ये इतने चर्चा में क्यों रहते हैं? अब अगर सोनी पर स्टार्टअप आधारित रियलिटी शो ‘शार्क टैंक इंडिया’ देखा है, तो इसके प्रमुख जजों में से एक और Bharat Pay के संस्थापक अशनीर ग्रोवर के बारे में भी सुना होगा। आपने ये भी देखा ही होगा कि वो कैसे व्यक्ति हैं – ढीठ, मुँहफट, विनम्रता से जिनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं। लेकिन ये भारत के सबसे सफल Entrepreneurs में से एक हैं और ये चाशनी लगाकर अपने विचारों को व्यक्त नहीं करते। जो भी इनके मन में होता है, वो खुलकर बोलते हैं और जो उद्यमी इनके दृष्टि में योग्य नहीं होता, उसे वह मुंह पर अस्वीकार करते हैं।

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जानें क्या है पूरा मामला?

तो आखिर विवाद किस बात का है? हाल ही में अशनीर ग्रोवर पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने कोटक महिंद्रा बैंक के एक कर्मचारी से अभद्र भाषा में बातचीत की है। जिस ‘मर्सिडीज़ बनाम साइकिल’ के सिद्धांत के बारे में बात हुई, यहां उसका अक्षरश: पालन हुआ। अमीर हैं, तो निस्संदेह गलत ही होगा, ऐसी ही रीति है न? पर क्या यही सत्य है? क्या वो वास्तव में अपने ऊपर लगाए ‘गुंडई’ के आरोपों के दोषी हैं?

असल में अशनीर ग्रोवर ने नाइका नामक स्टार्टअप के आईपीओ में उसके लुभावने प्रीमियम को देखते हुए 500 करोड़ रुपये का निवेश किया। परंतु कोटक बैंक ने अशनीर ग्रोवर की ओर से उन शेयर्स को खरीदा ही नहीं। यानी जो 79 प्रतिशत प्रीमियम अशनीर को मिल सकता था, उससे उन्हें वंचित कर दिया गया। यूं समझिए कि एक कोच के लाख मेहनत के बाद भी एक स्टार खिलाड़ी ने एक महत्वपूर्ण टूर्नामेंट के फाइनल में घटिया प्रदर्शन कर उन्हें उस गौरव से, उस लाभ से वंचित कर दिया।

अब ऐसे में तो आप उस व्यक्ति से शायद ही विनम्रता से बात करें और यही हुआ। आवेश में आकर अशनीर ग्रोवर कोटक बैंक के कर्मचारियों पर टूट पड़ें और उन्होंने एवं उनकी पत्नी ने लगभग बैंक को इस बात के लिए नोटिस भी भेजा कि बैंक ने उनसे अपर्याप्त धनकोष की जानकारी छिपाई। कोटक बैंक ने जवाब में अशनीर ग्रोवर के आरोपों के खंडन में कोई ठोस प्रत्युत्तर भी नहीं दिया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि गलती पूरी तरह से अशनीर की नहीं है।

Bharat Pay का प्रबंधन भी साथ देने से हिचकिचा रहा

परंतु क्या इसके लिए अशनीर के साथ जो हुआ या जो हो रहा है, वो उचित है? क्या आवेश में लिए गए एक निर्णय के आधार पर किसी व्यक्ति को सूली पर चढ़ाना न्यायोचित है? इतना अन्यायी तो हमारा न्यायतंत्र भी नहीं होता, जो आवेश में किये गए अपराध पर भी विचार करने के लिए तर्कों और विचारों को अपने मुकदमे में स्थान देता है। तो फिर किस आधार पर अशनीर ग्रोवर को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है? क्या वो धनवान हैं, इसीलिए? इस पूरे प्रकरण के चलते अब अशनीर न घर के रहे और न ही घाट के। उनका साथ देने से उनकी अपनी कंपनी Bharat Pay का प्रबंधन भी हिचकिचा रहा है, जिसके कारण अशनीर मार्च तक लंबे अवकाश पर हैं। मीडिया के फैलाए भ्रमजाल और गरीब बनाम अमीर के इस अजीबोगरीब लड़ाई में नुकसान सिर्फ उद्यमिता का ही नहीं, अपितु अशनीर ग्रोवर का भी हो रहा है। वो निस्संदेह व्यक्तित्व से कोई सर्वगुण सम्पन्न नहीं है, परंतु जिस प्रकार से उन्हें कठघरे में लाया जा रहा है, वो भी न्यायोचित नहीं है।

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