चुनावी मौसम आते ही बाहर आये राजनीतिक मेंढक, कभी इधर-कभी उधर

किसी को बेटे के लिए, तो किसी को बहु के लिए चाहिए टिकेट!

राजनीतिक जीवन में कोई भी सगा नहीं होता है। हर पार्टी की अपनी एक सोच होती है। हर पार्टी अपनी उस विचारधारा पर काम करना चाहती है। खैर, विचारधारा पर काम करना एक चीज है, चुनाव जीतना दूसरी। भाजपा भी इस सत्य से दूर नहीं है। भाजपा भी चाहती है कि हर जगह उसकी सरकार बने।

ऐसे बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आपको ऐसे लोगों का संगठन चाहिए जो पार्टी के साथ विचारों में बंधे हो। बिना ऐसे लोगों के आप एक बड़े लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। उसके पीछे का तर्क यह है कि हर व्यक्ति स्वार्थी होता है और आप सबकी वफादारी खरीद नहीं सकते हैं।

संगठन के प्रति निष्ठा बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि आप ढंग से वैचारिक प्रशिक्षण करें और आगे बढ़ते रहे। भाजपा कई बार यही पर मात खा जाती है। यही पर कई बार वह ऐसे नेताओं को अपने पार्टी से टिकट दे देती है जो खुद किसी दूसरे पार्टी से आये हैं।

ऐसे अवसरवादी नेताओं की वजह से भाजपा की छवि बुरे तरीके से प्रभावित होती है। इससे पहले हम भाजपा की बात करें, हम आपको कुछ नेताओं के नाम बताते हैं जो अपने परिवार के सदस्यों के लिए टिकेट की मांग पर आड़े हैं-

हरक सिंह रावत-

रविवार को भाजपा द्वारा हरक रावत को छह साल के लिए निष्कासित करने के बाद, वह दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं और पार्टी में फिर से शामिल होने के लिए कांग्रेस के आला अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं। वह अपने लिए और अपनी बहू अनुकृति गुसाईं के लिए भी टिकट मांगते रहे हैं। दोनों मुद्दों पर फैसला अभी बाकी है। हरक सिंह रावत पिछले चार चुनावों में तीन निर्वाचन क्षेत्रों और दो अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ने के बावजूद कई सीटों पर अपनी पकड़ साबित करते हुए विजयी हुए हैं। वह गढ़वाल में ठाकुरों के बीच लोकप्रिय हैं, लेकिन उनकी ये लोकप्रियता भाजपा की ही देन है।

हरक ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1991 में पौड़ी (अविभाजित यूपी में) से भाजपा के टिकट पर जीता और कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने। 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड बनने के बाद इस हिमालयी राज्य में चार विधानसभा चुनाव हुए। 2002 और 2007 में हरक ने लैंसडाउन से जीत हासिल की। 2012 में, वह रुद्रप्रयाग चले गए और जीते। 2017 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर कोटद्वार से जीत हासिल की।

इतना सब करने के बाद अब क्या कर रहे हैं हरक सिंह रावत? रावत काँग्रेस पार्टी में शामिल होने के लिए हरीश रावत से लाख बार माफी मांगने तक को तैयार हैं। हरक सिंह रावत के 2016 में उनके द्वारा छोड़ी गई पार्टी में संभावित पुन: प्रवेश पाने के लिए, उत्तराखंड सरकार में भाजपा के पूर्व मंत्री ने कहा कि वह “एक लाख बार माफी मांगने को तैयार हैं। अगर पुनर्वास के लिए इतना ही काफी है तो मैं वह करने को तैयार हूं। हरीश मेरे लिए एक बड़े भाई की तरह हैं और पुष्कर सिंह धामी एक छोटे भाई की तरह हैं। अगर जरूरत पड़ी तो मैं अपने बड़े भाई के सामने एक लाख बार भी माफी मांगूंगा।”

रीता बहुगुणा जोशी-

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अभी यूपी में तीन मंत्रियों सहित कम से कम 10 विधायकों के इस्तीफे के झटके से उबर रही थी कि इलाहाबाद की सांसद रीता बहुगुणा जोशी ने मंगलवार को सार्वजनिक रूप से अपनी लोकसभा सदस्यता छोड़ने की पेशकश के बाद भाजपा को एक और झटका दिया।

अगर पार्टी आगामी राज्य विधानसभा चुनावों में उनके बेटे को लखनऊ छावनी सीट से मैदान में उतारती है तो रीता बहुगुणा जोशी अपनी लोकसभा सीट छोड़ने को तैयार हैं।

मीडियाकर्मियों से बात करते हुए जोशी ने कहा, “वह (पुत्र मयंक जोशी) 2009 से काम कर रहे हैं और उन्होंने इसके लिए (लखनऊ कैंट से एक टिकट) आवेदन किया है लेकिन अगर पार्टी ने प्रति परिवार केवल एक व्यक्ति को टिकट देने का फैसला किया है, तो मयंक को टिकट मिलने पर मैं अपनी वर्तमान लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दूंगी।”

जोशी की टिप्पणी राज्य चुनावों से पहले पार्टी छोड़ने की अफवाहों के बीच आई है और इसे अपने बेटे के लिए टिकट सुरक्षित करने के लिए एक दबाव की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।

हालांकि, उन्होंने कहा कि वह पार्टी नहीं छोड़ रही हैं। “मैंने यह प्रस्ताव भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखा था और वैसे भी हमेशा भाजपा के लिए काम करता रहूंगी। पार्टी मेरे प्रस्ताव को स्वीकार करने या न करने का विकल्प चुन सकती है। मैंने कई साल पहले ही घोषणा कर दी थी कि मैं चुनाव नहीं लडूंगी।”

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह के टिकट के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह इसके हकदार हैं और वह इसके बारे में शिकायत नहीं कर रही हैं। जबकि उन्होंने कहा कि वह प्रति परिवार एक टिकट के पार्टी के शासन का सम्मान करती हैं, सुश्री जोशी ने कहा कि भाजपा में कई लोगों ने इसे प्राप्त किया है।

 

 

बंगाल और भाजपा नेता-

बंगाल में तो भगौड़े भाजपा नेताओं की असली हैसियत दिखती है। इस साल मई में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में प्रचंड जीत के साथ ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटने के बाद से, भाजपा नेता कल्याणी सहित कम से कम पांच विधायक टीएमसी में शामिल हो गए। पूर्व केंद्रीय मंत्री और पार्टी सांसद बाबुल सुप्रियो ने भी टीएमसी का दामन थाम लिया है।

कोलकाता के एक होटल में टीएमसी में शामिल होने के बाद कल्याणी ने कहा, “भाजपा में अच्छे प्रदर्शन का कोई ऑडिट नहीं होता है। केवल साजिश होती है। आप सिर्फ साजिश से चुनाव नहीं जीत सकते। चुनाव जीतने के लिए आपको विकास की जरूरत है।”

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पार्टी की होती है मिट्टी पलीद-

इन बातों से क्या सार निकलता है? सार यह निकलता है कि पैराशूट पॉलिटिक्स करने वाले लोग भाजपा में आते हैं, उनको पार्टी से एक पैसे का वैचारिक लगाव नहीं होता है। वह भाजपा में बस इसलिए आये हैं क्योंकि अभी वो मजबूत दल है।

ऐसे बहुत से लोग आपको मिल जाएंगे, जो 2014 और 2019, उत्तरप्रदेश में 2017 में शामिल हुए हैं। यह लोग बस निजी स्वार्थ के लिए भाजपा में आते हैं और भाजपा अपनी कमजोरी दिखाते हुए तुरन्त उन्हें सम्मान भी दे देती है।

कोई भी नेता जो दूसरे पार्टी से भाजपा में शामिल होता है, उसको तुरन्त सम्मान दे देना, उस व्यक्ति की तौहीन है जो भाजपा का झंडा उठाए गांवों में प्रवास कर रहा होता है।

ऐसे में समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं की निष्ठा संगठन में कम होती है। दूसरी बात यह है कि पार्टी कभी भी वाशिंग मशीन नहीं होनी चाहिए। कोई भी नेता जो अपने पुराने इतिहास के साथ भाजपा में शामिल होता है और जिसके खिलाफ आप भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण की लड़ाई लड़ रहे हो, वह आपके पार्टी में आता है तो वह अच्छा नहीं हो जाता है। ऐसे भगौड़े नेताओं से भाजपा की जमीनी छवि बहुत ज्यादा प्रभावित होती है।

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