‘योगी के आतंक का राज’, यूपी में भाजपा के क्लीन स्वीप हेतु लेफ्ट ने शुरू किया अभियान

ईश्वर करे ऐसे शत्रु सबको मिले!

आतंक का राज

भारत में पत्रकारिता के स्वर्णिम युग को वामपंथियों ने अपने पैरों तले दबा दिया है, अर्थात वामपंथी मीडिया पत्रकारिता के नाम कुछ भी करने को तैयार है। पीत पत्रकारिता (Yellow Journalism) पत्रकारिता का एक टर्म है, जिसमें सही समाचारों की अनदेखी कर सनसनी फैलाने वाले समाचार या पाठकों का ध्यान आकर्षित करने वाले शीर्षकों का अधिक प्रयोग किया जाता है। इसे समाचार पत्र या मैगजीन की बिक्री बढ़ाने के उद्देश्य से प्रयोग में लाया जाता हैै। अगर इसे दूसरे शब्दों में कहा जाये तो एजेंडा धारी पत्रकारिता। दरअसल, वामपंथी और एजेंडा धारी पत्रिका द कारवां ने अपने जनवरी संस्करण में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हिंसा का पुजारी करार देते हुए उनके शासनकाल को आतंक का राज बताया है।

हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, वर्ष 2017 में वामपंथियों का विश्व स्तरीय मीडिया गुट New York Times ने भी योगी आदित्यनाथ को आतंकी संगठन हिन्दू युवा वाहिनी का सरगना कहा था। कहा जा सकता है कि इस स्तर की पत्रकारिता से वामपंथी मीडिया को कुछ मिलने वाला नहीं है अपितु वे तो चुनाव से पहले CM योगी के नाम को और प्रचलित कर रहे हैं ताकि भाजपा के चुनाव जीतने की राह आसन हो सके।

द कारवां की घृणित मानसिकता

द कारवां ने अपनी पत्रिका के मुख्य पृष्ठ पर योगी आदित्यनाथ की भगवा परिधान पहने एक छायाचित्र को प्रकाशित किया है, जिसपर भगवा रंग से बड़े शब्दों में लिखा गया है- Adityanath’s Regim Of Terror (आदित्यनाथ के आतंक का राज)। वहीं, आतंक का राज लेख को द कारवां के पत्रकार धीरेन्द्र के झा ने लिखा है। ऐसे में, वामपंथी मीडिया की विचारधारा यह स्पष्ट करती है कि ये हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने और कट्टरपंथी कृत्यों को उकसाने का काम कर रही हैं। भारत बहुसंख्यक हिन्दू राष्ट्र होने के साथ ही एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र भी है, जहां विभिन्न धर्मों को समान माना जाता है। वहीं, द कारवां जैसे वामपंथी मीडिया की इस तरह की रिपोर्टिंग से स्पष्ट हो जाता है कि ये वामपंथी धर्म विशेष पर प्रहार कर रहे हैं।

और पढ़ें : CM योगी का अनुकरणीय कदम: ‘माफियाओं से जब्त की गई जमीन पर गरीबों के लिए बनेगा मकान’

कहा जाता है कि पत्रकारिता में नैरेटिव का अहम योगदान होता है। नैरेटिव मुख्यतः एक कहानी या घटना का लेखा-जोखा होता है किन्तु नैरेटिव के नाम पर ये वामपंथी मीडिया ग्रुप्स विरोधी तत्वों को बढ़ावा दे रहे हैं। हालांकि, जिस योगी आदित्यनाथ को द कारवां ने हिंसा का पुजारी करार दिया है, वह भली-भांति इस तथ्य से परिचित है कि पिछले पांच वर्षों के शासन काल में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रदेश के माफियाओं को जेल के सलाखों के पीछे पहुंचाया है। साल 2021, जनवरी तक के आंकड़ों के अनुसार योगी सरकार में कुल 11,930 मुकदमे माफियाओं के नाम पर दर्ज किये गए हैं। 

CM योगी ने उत्तर प्रदेश को बनाया ‘उन्नत प्रदेश’

आपको बता दें कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत (312 सीटों पर) के बाद उत्तर प्रदेश में सत्ता की बागडोर संभालने और प्रदेश में व्याप्त अराजक तत्वों को मिटाने की जिम्मेदारी चयनित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौपीं गयी, जिसका उन्होंने निर्वहन भी किया है। इतना ही नहीं अपितु जब योगी सत्ता में आये तब प्रदेश में गुंडागर्दी और दहशत का माहौल इतना ख़राब था कि आये दिन राष्ट्रीय मीडिया चैनलों में उत्तर प्रदेश की नकारात्मक खबरें छाई रहती थी। अगर एक नजर राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो के इन आकड़ों पर डालें तो स्पष्ट हो जायेगा कि कैसे योगी सरकार ने प्रदेश में अपराध पर नकेल कसने की कोशिश की है।

राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो के अनुसार वर्ष 2016 में जब सपा की सरकार थी तब उत्तर प्रदेश के कुल अपराधों में हत्या-4889, अपहरण-15898, बलात्कार-4816, बलात्कार का प्रयास-1958, बलवा- 8018, लूट-4502, डकैती-284, गंभीर वारदातें-65090 के मामले दर्ज किये गए। वहीं, अगर वर्ष 2020 के आकड़ों की बात करें तो हत्या-3468, बलात्कार-2317, बलवा-5376, लूट- 1384, डकैती-85, कुल FIR- 3,52,651 दर्ज किये गए हैं।

वहीं, एक समय (वर्ष 2015-16) में उत्तर प्रदेश को देश का बीमारू राज्य कहा जाता था क्योंकि प्रदेश की अर्थव्यवस्था का बंटाधार करने वाली सपा सरकार महज 10.90 लाख करोड़ की GDP से प्रदेश का गुज़ारा कर रही थी। फिर जब योगी आदित्यनाथ की सरकार आई तब प्रदेश की GDP में उछाल आया और यह 21.73 लाख करोड़ हो गई।  साथ ही उत्तर प्रदेश अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में पांचवे पायदान से ऊपर उठकर दूसरे पायदान पर आ गया है। 

असली आतंकियों को भेजा जेल

इसके अलावा पिछली सरकार में भू-माफियायों को खुली छूट प्राप्त थी, जिसका फायदा उठाकर वे प्रदेश में आतंक फैलना का कार्य करते थे। प्रदेश के दो सबसे बड़े अपराधी अतीक अहमद और आजम खान के कुकृत्यों को सपा सरकार ने दरकिनार करते हुए केवल अपने वोटे बैंक पर ध्यान केन्द्रित किया। परिणामस्वरूप, वर्ष 2017 के चुनाव में उत्तर प्रदेश की जनता ने आतंक के साये में ढलने के बजाये भाजपा को चुना। फिर क्या था? जब योगी सत्ता में आये तो सबसे पहले उन्होंने एक नियोजित योजना के अनुसार अतीक अहमद और आजम खान जैसे माफियाओं के लिए जेल की चारदीवारी में रहने का बंदोबस्त कराया और बंदोबस्त इतना जबरदस्त था कि वे अपने अपराधों की गिनती करते-करते पूरी जिंदगी जेल में काट देंगे किन्तु वहां से बाहर आना असंभव प्रतीत होता है। 

नासमझ और वामपंथी मीडिया की एजेंडाधारी रिपोर्टिंग

लिहाजा, द कारवां की पत्रिका में योगी आदित्यनाथ की संवैधानिक छवि और उनके शासनकाल को आतंक का राज कहना निरर्थक है। यहां एक और मसला है कि द कारवां जैसे वामपंथी मीडिया समूह अपने कार्यों के माध्यम से हिन्दू-विरोधी भावनाओं का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। विशेष तौर पर ये हिन्दुओं की चेतना के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। वहीं, द कारवां के कुकृत्य को कई हिन्दुओं ने सोशल मीडिया पर लताड़ा है। भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा ने लिखा कि यह साबित होता है कि “जिहादियों और इस्लामिक आतंकियों के बाप हैं योगी!” वहीं, पत्रकार प्रदीप भंडारी ने लिखा है कि “जितनी मदद ऐसी मैगज़ीन करती हैं भाजपा की उतनी कोई नहीं कर सकता।। 2002 दंगों  के बाद ऐसी ही पदवी PM नरेंद्र मोदी को भी दी गई थी। सब जानते हैं उसके बाद क्या हुआ।”

और पढ़ें : जब मुलायम ने फंसाया था योगी को: CM योगी बनाम अखिलेश के झगड़े की जड़ें अतीत से जुड़ी हैं

ऐसे में, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर इस तरह के अपशब्दों का प्रयोग करके द कारवां ने ना सिर्फ एक संवैधानिक पद की गरिमा को ठेस पहुंचाया है अपितु हिन्दू समुदाय को भी लज्जित करने का प्रयास किया हैद कारवां की एजेंडाधारी रिपोर्टिंग से देश की जनता भली-भांति परिचित है। अंततः ये वही वामपंथी हैं, जो मुस्लिम कट्टरपंथियों के हक़ में धारदार रिपोर्टिंग करते हैं किन्तु जब हिन्दुओं से जुड़ा कोई मामला आता है तब इनकी रिपोर्टिंग का आधार मामले को बूझे बिना हिन्दुओं को ही टारगेट करने का होता है।

Exit mobile version