रूस और यूक्रेन के बीच जंग अपने निर्णायक दौर में है या फिर ये द्वितीय शीत युद्ध की शुरुआत है। कुछ लोग इसे तृतीय विश्व युद्ध का आरंभ भी मान रहे हैं, लेकिन अभी उस पर कुछ कहा नहीं जा सकता। क्या आपको 2014 का वो दौर याद है, जब रूस में क्रीमिया का विलय हो गया, जो तब तक एक यूक्रेनी क्षेत्र था। क्रीमिया के विलय से सेवस्तोपोल के बंदरगाह शहर पर रूसी नियंत्रण स्थापित हो गया, जिसने सोवियत रूस के पूर्वी यूरोपीय अभियान की शुरुआत की। रूस में क्रीमिया का विलय कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी। यह काफी महत्वपूर्ण सैन्य अभियान था, जिसने मास्को पर पश्चिम प्रतिबंधों को और बढ़ा दिया।
जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया, तो उस समय भारत को इन मामलों से कोई लेना देना ही नहीं था। भारत ने इस संदर्भ में क्या कहा, क्या किया, किसको समर्थन किया, संयुक्त राष्ट्र में कैसे मतदान किया, किसका पक्ष लिया, इन प्रश्नों के न तो कोई मायने थे और न ही कोई प्रासंगिकता। वैश्विक मामलों में भारत की बात को पश्चिम ज्यादा महत्व नहीं देता था, अर्थात् अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत की कोई ताकत नहीं थी। पर, यह आठ साल पहले था, जब कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन मौजूदा समय में स्थिति इससे बिल्कुल अलग है।
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वैश्विक राजनीति की धुरी बन गया है भारत
जब से मोदी सरकार भारत में सत्ता में आई है, अंतरराष्ट्रीय मंच पर हमारे राष्ट्र के बारे में धारणा नाटकीय रूप से बदल गई है। अब हम वैश्विक राजनीति में न सिर्फ सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, बल्कि एक तरह से इसकी धुरी बन चुके हैं। पीएम मोदी ने समय-समय पर विभिन्न मंचों से भारत का प्रतिनिधित्व किया है और हमारे देश की ताकत का एहसास दुनिया को कराया है। शायद, इसीलिए इस समय उनकी एक कथन की प्रासंगिकता समझ में आती है, जब उन्होंने कहा था कि हम 135 करोड़ की आबादी वाले देश हैं।
किसी की इतनी ताकत नहीं कि हम पर दबाव बना सके, बल्कि हम दूसरे पर दबाव बनाने का माद्दा रखते हैं। आज की वैश्विक राजनीति में भारत का कद ऐसा है कि स्लोवेनिया के पीएम और जर्मन नेवी चीफ भी अपने-अपने मकसद के लिए भारत को चुनते हैं। यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद पुतिन हमारे पीएम से बात करते हैं, तो महाभारत की दुहाई देकर यूक्रेन भारत से मदद की गुहार लगाता है। इतना ही नहीं, बाइडन और यूरोपीय संघ भी हमारा पक्ष जानने को आतुर है। निस्संदेह देश न सिर्फ हम वैश्विक राजनीति की धुरी, बल्कि वैश्विक संबंधों का पुल भी बन गया है।
भारत पर टिकी है पश्चिम की नजर
संयुक्त राज्य अमेरिका चाहता है कि भारत रूस को छोड़ दे और यूक्रेन के पक्ष में खुले तौर पर बात करे। यूरोप भी यही चाहता है। यूक्रेन भारत से कीव और मास्को के बीच एक शांतिदूत की भूमिका निभाने के लिए अनुरोध कर रहा है। रूस यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है कि वह भारत के साथ पक्षपात न करे और यह कि मोदी सरकार अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के प्रयास में मास्को का समर्थन करती रहे। भारत को रूस के पक्ष में बनाए रखने के लिए यूक्रेन पर युद्ध की घोषणा करने के बाद व्लादिमीर पुतिन ने अपना पहला फोन कॉल प्रधानमंत्री मोदी को किया था।
भारत ने UNSC के उस प्रस्ताव पर मतदान करने से परहेज किया, जिसमें यूक्रेन में रूस की आक्रामकता के लिए कार्रवाई शुरू करने की मांग की गई थी। इसलिए, पश्चिमी देश भारत को प्रभावित करने में विफल रहे हैं और नई दिल्ली ने जरूरत के समय में रूस का समर्थन कर अपने संतुलित और स्वतंत्र कूटनीतिक पक्ष को बनाए रखा है। पर, पश्चिम को भी भारत से उम्मीदें ज्यादा हैं। पश्चिमी देश भारत को अपने पक्ष में करना चाहते हैं, क्योंकि इससे रूस के खिलाफ मजबूती मिलेगी। नाटो सहित संयुक्त राज्य के नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था, रूस के खिलाफ सभी प्रमुख लोकतंत्रों को एकजुट करना चाहती है। लेकिन ऐसा प्रयास हमेशा के लिए एक सपना बना रहेगा, जब तक कि भारत रूस विरोधी कोरस में शामिल नहीं हो जाता।
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पीएम मोदी के नेतृत्व में बदली स्थिति
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत एक महाशक्ति के रूप में उभरा है। पिछले आठ वर्षों में सभी प्रमुख देशों और उनके नेताओं के साथ पीएम मोदी की व्यक्तिगत पहुंच ने विश्व मंच पर नई दिल्ली की स्थिति को मजबूत किया है। पीएम मोदी भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए काम कर रहे हैं, वो एक मजबूत रक्षा निर्माण उद्योग का निर्माण कर रहे हैं और साथ ही आत्मनिर्भर बनने के भारत के प्रयासों का नेतृत्व कर रहे हैं। इसने भारत को दुनिया भर में बड़े पैमाने पर सम्मान देने के लिए प्रेरित किया है। आज भारत एक ऐसी शक्ति है, जिसकी आवाज मायने रखती है। इसलिए, पश्चिम चाहता है कि भारत, चीन और रूस के खिलाफ एकजुट और दुर्जेय मोर्चे का नेतृत्व करे।
ध्यान देने वाली बात है कि पश्चिम यह भी मानता है कि अगर कोई एक शक्ति है जो यूक्रेन में हिंसा को रोकने में मदद कर सकती है, तो वह भारत है। नई दिल्ली मास्को को प्रभावित कर सकती है। व्लादिमीर पुतिन के साथ पीएम मोदी के निजी संबंध हैं। ऐसे में क्रेमलिन भारत की सलाह को नजरअंदाज नहीं कर सकता। यही कारण है कि भारत ने क्रेमलिन के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह की बातचीत में हिंसा को तत्काल समाप्त करने का आह्वान किया है।
भारत निभा सकता है अहम भूमिका
नई दिल्ली के सभी प्रमुख विश्व शक्तियों विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जर्मनी के साथ विशेष संबंध हैं। इसलिए, जब मास्को यूक्रेन में अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर ले, तब रूस और पश्चिम के बीच सामान्य स्थिति बनाने में भारत एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। विश्व की सभी छोटी बड़ी शक्तियां, महाशक्तियां और यहां तक कि चीन भी भारत के एक-एक कदम पर नजर बनाए हुए हैं। एक समय था, जब यही अमेरिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वीजा देने से इनकार कर चुका था और आज स्थिति इतनी बदल गई है कि यही अमेरिका और पूरा विश्व भारत से स्थिति सामान्य और संतुलित करने के लिए मदद की गुहार लगा रहे हैं। कांग्रेस के काल में हमारी विदेश नीति ढुलमुल और दिग्भ्रमित थी, परंतु जब से नरेंद्र मोदी सत्ता में आए हैं, ऐसा लगता है मानों भारत की विदेश नीति को परिभाषित करने के लिए वो फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं।
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