नोएडा में एक लड़की ने अपनी मां को ही मार डाला, डरावना दिख रहा पाश्चात्य संस्कृति से प्रेरित यह नया भारत

अब समय आ गया है कि हमें अपनी पुरातन संस्कृति की ओर लौट जाना चाहिए!

crime scene

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आये दिन हम समाचार पत्रों और न्यूज़ मीडिया के माध्यम से पूरे देश में होनेवाले वीभत्स और हृदयविदारक घटनाओं से अवगत होते रहते हैं। आज का दिन भी उससे अछूता नहीं है। एक ऐसी ही हृदयविदारक घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया है। खबर है कि नोएडा सेक्टर 77 में रविवार की रात एक लड़की ने अपनी 30 साल के माँ की पैन से पीट-पीटकर हत्या कर दी। पुलिस ने बताया कि महिला पति से अलग होने के बाद अपनी 14 साल की बेटी के साथ रहती थी। इस बच्ची ने अपनी माँ पर लोहे के पैन से 22 बार प्रहार किया। वो ग्रेटर नोएडा के एक फर्म के आपूर्ति विभाग में काम करती थी। देश के हर जागरूक नागरिक को इस दिल दहला देने वाली खबर के पीछे का कारण जानना चाहिए कि आखिर ऐसा क्या कारण रहा, जो एक बच्ची को ऐसा क्रूर कदम उठाना पड़ा?

प्रारंभिक जांच में पता चला है कि बच्ची की मां ने उसे बर्तन धोने में अपनी मदद करने के लिए कहा। इसी बात पर क्रोधित होकर बच्ची ने अपनी मां को ही मार डाला। अब आप सोचेंगे की ‘अरे यार, ऐसी खबरें तो आये दिन आती ही रहती हैं’ और फिर इस कृत्य की विभीषिका के प्रति अपनी आंखे मूंद लेंगे। न तो आप इसके पीछे का वास्तविक कारण जानना चाहेंगे और न ही इसको रोकने के उपाय पर ध्यान देंगे। वैसे अगर आप इसे एक आम खबर की तरह देख अज्ञानता और उदासीनता का चादर ओढ़े रखना चाहते हैं, तो आपके जानने लायक बस दो ही तथ्य बचें है।

प्रथम तो ये है कि उस बच्ची ने साक्ष्य छिपाते हुए पुलिस को बताया की, जब वो घर आई तब उसकी मां खून से लथपथ पड़ी हुई थी और अस्पताल ले जाने दौरान उसकी मौत हो गयी। दूसरा तथ्य ये है कि सीसीटीवी फुटेज खंगालने और पड़ोसियों से जांच पड़ताल करने के उपरांत तथ्य सामने आया कि हत्या बच्ची ने ही की है और उसे तत्काल बाल सुधार गृह भेज दिया गया। एक आम इंसान के लिए खबर यहीं खत्म हो जाती है, लेकिन एक जागरूक और सुधारवादी नागरिक के लिए यह खबर अब प्रारंभ होती है।

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समय आ गया है कि अब अपनी संस्कृति की और लौट जाएं

हमारे पुरखों ने हमें हमेशा समझाया है कि अगर समाज पतन की ओर उन्मुख होने लगे, तो हमें अपनी संस्कृति और शास्त्रों की ओर देखना चाहिए, क्योंकि वो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जीतने कल थे। आपको विश्वास नहीं हो रहा, तो रामचरित मानस का एक श्लोक सुनिए:- सुनू जननी सोई सूत बड़भागीजो मातु पिता वचन अनुरागी, तुलसीदास जी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को इंगित करते हुए लिखते हैं कि जब माता कैकयी ने राम को दशरथ वचन और उसके अनुपालन हेतु वन जाने का आदेश सुनाया तब राम ने क्या कहा?

इस दोहे के माध्यम से तुलसीदास ने कहा है कि कैकयी का आदेश सुनते ही राम आनंद से झूमने लगे और उन्होने कहा, कि हे मां! माता-पिता के चरणों में प्रेम करना तो फिर भी सरल है, लेकिन वह पुत्र दुनिया में सबसे सौभाग्यशाली है, जिसे अपने माता-पिता के वचन से प्रेम करने का अवसर प्राप्त होता है। राम अपने अधिकारों और अपने प्रति हो रहे अन्यायों के खिलाफ प्रतिकार करने के बजाए कैकयी को धन्यवाद देने लगते हैं, क्योंकि उन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनने का अवसर दिया।

अब आज के परिप्रेक्ष्य में सोचिए। क्या हमारे बच्चे ऐसे हैं और अगर ऐसे नहीं हैं तो आखिर क्या कारण हैं? इसका एकमात्र कारण है आधुनिकता की अंधी दौड़ में पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने की प्रवृति और सबसे बड़ी बात इसे सिर्फ हमारे बच्चे ही नहीं अपना रहे हैं, बल्कि इसे हमने अपनी परवरिश में भी समाहित कर दिया है। हम बड़े शान से बताते हैं कि हमारा बच्चा अंग्रेज़ी में बोलता है, सुनता है, खाता-पीता और यहां तक कि अंग्रेजी में ही सोचता भी है। रामायण, महाभारत, शास्त्र, वेद, उपनिषद, काव्य, गीता-ज्ञान और पुराण नहीं, बल्कि अंग्रेज़ी में ‘poem’ याद करता है।

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अंग्रेज़ जैसा पहनता है, अंग्रेज़ जैसा बोलता है, अंग्रेज़ जैसा खाता है और यहां तक कि हमारा बस चले, तो हम उसे अंग्रेज़ बोलने में भी कोई गुरेज न करें। हमारे संस्कार और परवरिश भी उसी स्तर और तरीके की होती जा रही है, जैसे कोई भारतीय माता-पिता नहीं, बल्कि अंग्रेज़ डैडी उन्हें पाल रहा हो। ऊपर से हमारी परवरिश के अलावा सोशल मीडिया के युग ने भारतीय बच्चो के मस्तिष्क में पश्चिमी विचारों की गहरी जड़ें जमा दी है। बच्चों की सोशल मीडिया तक पहुंच है। बच्चों का मन मस्तिष्क अत्यंत कोमल और कोरा होता है। जो उसपर लिखा जाएगा, वही उसपर छप जाएगा और यह अमिट छाप लंबे समय तक बनी रहेगी।

पाश्चात्य संस्कृति से बाहर निकलना ही होगा

आजकल के बच्चे अपना ज़्यादातर समय मोबाइल-टीवी, दोस्त और मां-बाप के साथ बिताते हैं। अब आप स्वयं सोचिए, इनमें से कौन सा व्यक्ति, भारत की गौरवशाली संस्कृति, विचार या फिर वेद से अवगत हो सकते हैं। उनके माता-पिता स्वयं उनमें भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना और पाश्चात्य संस्कृति के प्रति गौरव का भाव भर देते हैं। रही सही कसर पूरी करने के लिए हम कच्ची उम्र में उन्हें मोबाइल थमाकर अंग्रेज़ बनाने वाले विद्यालय में भेज देते हैं। तो हमें क्या मिलेगा, आप स्वयं समझ सकते हैं! इसका परिणाम यह होता है कि माता-पिता का अपने बच्चों पर कोई अधिकार नहीं रह जाता और माता-पिता के अधिकारों को खारिज कर स्वतंत्रता या यूं कहें कि उनसे छुटकारा पाना उनके नैतिकता में शामिल हो जाता है। और इसी के परीणिति स्वरूप वो बार-बार अपने मां-बाप के शिक्षाओं की अवहेलना करने लगते हैं और कभी-कभी उनकी हत्या तक कर देते हैं, क्योंकि हम और आपने बचपन में उन्हें राम, कृष्ण, भीष्म और अभिमन्यु की कहानी तो सुनाई नहीं होती।

आपको एक श्लोक का उदाहरण देते हैं, जिससे आपको parenting के प्रति हमारे पुरखों के दृष्टिकोण का पता चलेगा-

लालयेत्पञ्च्वर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत्
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत् 

अर्थात् 5 वर्षों तक पुत्र को अत्यंत लाड़ प्यार से पालना चाहिए। 10 वर्षों तक उसे शिक्षा, उपदेश और कर्तव्य का पाठ पढ़ाना चाहिए। ध्यान रहें, यहाँ ताड़ना का अर्थ मारने पीटने से नहीं है। और जब बच्चा 16 साल से अधिक आयु का हो जाये, तब उससे मित्रवत व्यवहार करना चाहिए।पर, शायद हम इन चीजों को भूल चुके हैं, इसीलिए हमारे बच्चे भी भटक रहे हैं। स्वयं सोचिए, ऐसा है कि नहीं?

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