मुस्लिम समुदाय पर टिकी है निराश और हताश अखिलेश यादव की नज़र

जो बचा है उसी पर घमासान मचा है!

अखिलेश यादव चुनाव

उत्तर प्रदेश में चुनावी रणभेरी बज चुकी है। सारे राजनीतिक दल चुनावी मैदान में कूद गए हैं। प्रदेश में भाजपा सबसे लोकप्रिय और सबसे मजबूत जनाधार के साथ आगामी चुनाव में जीत का परचम लहराने के लिए तैयार है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस भी पूरे बल से सत्ता में वापसी करने को तैयार हैं। हालांकि, अभी भी उनकी स्थिति ज्यादा मजबूत नहीं है। समाजवादी पार्टी वैचारिक रूप से असंजस में है। चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए अखिलेश यादव तमाम पार्टियों के साथ गठबंधन भी कर चुके हैं।

मुस्लिम वोट बैंक पर है अखिलेश की नजर

वहीं, बाहरी नेताओं के समर्थन से चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले अखिलेश यादव ने तृणमूल कांग्रेस का हाथ थामा है। ममता बनर्जी अखिलेश यादव के चुनाव प्रचार अभियान का हिस्सा बन गई हैं। वह आते ही कांग्रेस पर हमला भी करने लगी। अखिलेश यादव के प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश की यात्रा कर रही ममता बनर्जी ने कहा कि कांग्रेस को यूपी चुनाव में समाजवादी पार्टी का समर्थन करना चाहिए, क्योंकि “मिलेगा कुछ नहीं (वे नहीं जीतेंगे)।”

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बता दें कि अखिलेश यादव ममता को साथ लाकर मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2018 पर आधारित एक लेख ‘अशांति की स्थिति’ में स्पष्ट है कि सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में मुसलमानों की उल्लेखनीय वृद्धि (2018 में 17 प्रतिशत) हुई है। लेखकों ने तर्क दिया है कि मुस्लिम प्रतिनिधित्व का विस्तार हुआ है। ममता बनर्जी की तुष्टीकरण की राजनीति से पूरा देश परिचित है। अखिलेश यादव अपने डूबती नैया को इसी तुष्टीकरण से पार कराना चाहते हैं।

अखिलेश को मिल रहा है ममता का समर्थन

ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी पार्टी ने कांग्रेस को मनाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी। ममता बनर्जी ने कोलकाता हवाई अड्डे पर मीडिया संवाददाताओं से कहा, “मिलेगा कुछ नहीं तो किसी का वोट काटने की जरूरत नहीं है।” उन्होंने कहा, “हमने कोशिश की लेकिन उन्होंने नहीं सुना। अखिलेश यादव चुनाव में अपना पूरा समर्पण दिखा रहे हैं। अगर हर समुदाय, हर मतदाता उनके साथ है, तो उनके जीतने का मौका है।” उनके शब्द ऐसे समय आए हैं, जब गोवा चुनाव को लेकर उनकी तृणमूल और कांग्रेस के बीच नई तनातनी उभरी है। तृणमूल का कहना है कि उसका नेतृत्व गठबंधन के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास पहुंचा, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। वहीं, कांग्रेस ने तृणमूल को एक ‘अविश्वसनीय सहयोगी’ कहा।

तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने बार-बार कांग्रेस से विपक्षी एकता के हित में अपनी एकल लड़ाई छोड़ने का आग्रह किया है लेकिन कांग्रेस के साथ समस्या यह है कि वह विपक्ष में भी सबसे बड़ी पार्टी बनी रहना चाहती है। समाजवादी पार्टी को उनका यह समर्थन एक अलग गुट बनाने की तैयारी है। ममता ने आगे कहा,“मुझे यह देखकर दुख होता है कि कांग्रेस मेघालय और चंडीगढ़ में भाजपा के पक्ष में चुनाव लड़ रही है। हम चाहते हैं कि सभी भाजपा विरोधी मोर्चे एक साथ आएं। लेकिन अगर कोई अन्यथा सोचता है और अहंकारी बने रहता है, तो हमें अपने पथ का खुद  चुनाव करना होगा। क्षेत्रीय दलों को भाजपा को हराने के लिए एक साथ आना चाहिए।” उम्मीद है कि ममता बनर्जी कल अखिलेश यादव के साथ एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करेंगी, इससे पहले कि वह उनके लिए वोट मांगें।

अन्य पार्टियां पलट सकती हैं सपा का जनाधार

बताते चलें कि अखिलेश यादव की जीत का आधार बने मुस्लिम समुदाय को लेकर कुछ दिन पहले ही बसपा प्रमुख मायावती ने कहा था कि “मैं उत्तर प्रदेश के मुसलमानों से पूछना चाहता हूं कि सपा ने आपको कितने टिकट दिए? उन्होंने [मुस्लिम नेताओं] पांच साल तक सपा की सेवा की और अच्छे और बुरे समय में उसके साथ खड़े रहे, लेकिन जब उन्हें [मुसलमानों] को चुनाव में मौका देने की बात आई, तो उन्होंने कई मुसलमानों को मैदान में नहीं उतारा। उन्होंने उन्हें कम टिकट दिया।”

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गौरतलब है कि यूपी में मुसलमानों की आबादी कुल जनसंख्या का करीब पांचवा हिस्सा है, तो यादवों की अनुमानित आबादी 9 से 10 फीसदी के आसपास है। यही 30 फीसदी एकजुट वोट बैंक पिछले दो विधानसभा चुनवों से सपा का सबसे ताकतवर हथियार रहा है। हालांकि, अखिलेश यादव ने मुसलमानों के एक वर्ग में अपनी साख को कायम रखा है। पिछले सालभर में उन्होंने जिस तरह से बसपा और कांग्रेस के कुछ दिग्गज मुस्लिम चेहरों को सपा ने राजनीतिक ठिकाना दिया है, उससे यह संदेश जरूर गया है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का बड़ा तबका अभी भी भाजपा के खिलाफ समाजवादी पार्टी को अपना मुख्य ठिकाना मान रहा है। ऐसे में, अखिलेश यादव की उम्मीद इसी मुस्लिम वोट बैंक पर टिकी हुई है।

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