आतंकियों के सपोर्ट में देश को नीचा दिखाने पर तुला वामपंथी पोर्टल ‘द प्रिंट’!

और कितना गिरोगे ?

द प्रिंट

Source- TFIPOST

भारत के वामपंथी मीडिया संस्थानों ने देश हित से जुड़े मुद्दों पर अपनी काफी भद्द पिटाई ली है, जिसका नतीजा ये है कि अब ये सभी संस्थान दर्शकों की नजरों से ओझल हो चुके हैं, और टीआरपी की सूचियों से गायब हो चुके हैं। ऐसे में ये सभी इंटरनेट के जरिए अपना प्रोपेगेंडा चला रहे हैं। इस घटती लोकप्रियता के बावजूद इन लोगों ने अपनी जहर बांटने की नीति नहीं छोड़ी है। इसी बीच वामपंथी मीडिया पोर्टल द प्रिंट ने एक बार फिर कुछ ऐसा किया है, जिसे लेकर बवाल मचा हुआ है और उसे जमकर लताड़ लगाई जा रही है।

द प्रिंट की ‘जिहादी’ मानसिकता!

दरअसल, द प्रिंट ने अपने लेख में लिखा है कि कम से कम 40 भारतीय जो ISIS में शामिल हुए थे, वो मध्य-पूर्व एशिया के जेल शिविरों में हैं और उनके घर वापसी का कोई रास्ता नहीं है। इस वामपंथी मीडिया पोर्टल ने अपने लेख के माध्यम से यह दिखाने की कोशिश की है कि जिन जिहादियों ने अपने आतंकवादी करियर को आगे बढ़ाने के लिए भारत छोड़ दिया है, वो अब परिस्थिति के शिकार है। यह लेख अपने भावपूर्ण शब्दों से पाठकों को प्रभावित करने का प्रयास करते हुए लिखा गया है।

द प्रिंट ने अपने लेख में लिखा है कि “एक सिविल इंजीनियर का बेटा तलमीजुर रहमान लंबे समय से कुवैत में बसा था फिर हैदराबाद अपने घर वापस आ गया, उसकी टेक्सास के कॉलिन कॉलेज से कंप्यूटर साइंस की डिग्री लगभग पूरी हो गई। फिर वर्ष 2014 उसने मुंबई से इस्तांबुल के लिए एक उड़ान पकड़ी और इस्लामिक स्टेट में शामिल हो गया।”

द प्रिंट ने रहमान की पूरी बैकस्टोरी दी, लेकिन उसने आसानी से उस हिस्से को छोड़ दिया कि कैसे रहमान धीरे-धीरे कट्टरपंथी हो गया और उसने सब कुछ छोड़कर एक आतंकवादी संगठन में शामिल होने का निर्णय लिया था। ध्यान देने वाली बात है कि ऐसी घटनाएं रातोंरात नहीं होती। यह तब होता है जब द प्रिंट जैसे पोर्टल आतंकवादियों का मानवीकरण करने का प्रयास करते दिखते हैं!

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भारत सरकार की नीति पर उठाया सवाल

इसके अलावा, द प्रिंट ने जिहादियों को देश में नहीं घुसने देने वाली भारत की नीति पर सवाल उठाया है। इस पोर्टल ने लिखा, “बंदियों को मुक्त करने के लिए सीरिया में जेल शिविरों पर जिहादी हमलों के बीच, कैदियों के प्रत्यावर्तन की मांग नहीं करने का भारत का निर्णय बढ़ती चिंता का कारण बन रहा है।” द प्रिंट की यह कारिस्तानी उसके आतंक प्रेम को प्रदर्शित करता है। उसने अपने लेख में लोगों को आतंकियों से भावनात्मक रूप से जोड़ने का पूरा प्रयास किया है। साथ ही मारे गए आतंकियों की विधवा  पत्नियों के उदार चरित्र को भी बताया गया है। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि जिहादियों की पत्नियों को भी पता था कि उनके पति किस तरह की गतिविधियों में शामिल होते हैं।

गौरतलब है कि हम भारतीय काफी लंबे समय तक आतंकवाद के शिकार रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से देश के इन वामपंथी पोर्टलों के पास देश की सुरक्षा से ज्यादा, जिहादियों की पत्नियों के लिए दया है। द प्रिंट चाहता है कि भारत एक आतंकवादी संगठन के जिहादियों को शरण दे, जो खुलेआम भारतीय मुसलमानों को अपने साथी देशवासियों को आतंकित करने के लिए उकसा रहा है।

आपको बता दें कि जनवरी में, ISIS की प्रचार डिजिटल पत्रिका वॉयस ऑफ हिंद ने “हिंदुओं से बाबरी वापस ले लो” शीर्षक से एक नया संस्करण जारी किया। ISIS के मुखपत्र के कवर में लिखा गया कि “यदि आप मुस्लिम हैं, तो आपको आतंकवादी होना चाहिए, इसलिए उन्हें आतंकित करें …।” ISIS पत्रिका ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के खिलाफ विस्तार से बात की। इसने ‘एक तरह की सजा की मांग की, जो हिंदुओं की आने वाली पीढ़ियों को याद रहे।’ इसने भारतीय मुसलमानों को भारत सरकार के खिलाफ हिंसक जिहाद छेड़ने का आह्वान किया।

द प्रिंट को है आतंकियों से प्यार!

जैसा कि TFI द्वारा पहले भी बताया गया है कि वर्ष 2020 में, इस्लामिक स्टेट के गुर्गों की विधवा पत्नियां, जिन्हें कुख्यात केरल मॉडल द्वारा कट्टरपंथी बनाया गया था, वे भी भारत लौटना चाहती थी। केरल की सभी महिलाओं ने वर्ष 2016-18 में अफगानिस्तान के नंगरहार की यात्रा की। उनके आतंकी पति अफगानिस्तान में अलग-अलग हमलों में मारे गए थे। वे अब विधवा हैं और नवंबर-दिसंबर 2019 से अफगानिस्तान की जेलों में बंद हैं। उस समय, अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय के प्रमुख अहमद जिया सरज ने कहा था कि अफगान सरकार कैदियों को निर्वासित करने के लिए भारत सहित 13 देशों के साथ बातचीत कर रही है। उस समय भी, इन वामपंथी मीडिया पोर्टलों ने आईएसआईएस के आतंकवादियों लिए अपने आंसू छलकाए थे।

आपको बता दें कि ये जिहादी और आतंकियों की विधवा पत्नियां देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं। इस्लामवादी आतंकवाद पर पीएम मोदी की ‘जीरो-टॉलरेंस पॉलिसी’ शालीनता के लिए कोई जगह नहीं छोड़ती है। एजेंसियां जानबूझकर प्रतिक्रिया करने में धीमी रही हैं, क्योंकि आईएसआईएस से लौटने वालों के साथ हमेशा एक बड़ी चिंता बनी रहती है। पिछले कुछ महीनों में, राजधानी दिल्ली और उसके आसपास IED मिली है, जिसने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। सरकार इन जिहादियों को अनुमति देकर स्थिति को और जटिल नहीं बना सकती। द प्रिंट जैसे कुत्सित मानसिकता वाले वामपंथी पोर्टल ने आतंकवादियों के सहानुभूति के लिए जो लेख लिखा है उससे उसकी कुंठित मानसिकता झलकती है!

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