‘बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है, हर शाख पर उल्लू बैठें हैं अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा।’ लोकलुभावन वादे, झूठे आडंबरों में आकंठ डूबे अरविंद केजीरवाल के शिक्षा मॉडल को ध्वस्त करने के लिए वो स्वयं ही काफी हैं। दिल्ली को लंदन-पेरिस के समकक्ष बनाने वाले दावों के प्रणेता अरविंद केजरीवाल ने असल में दिल्ली को दिल्ली भी नहीं रहने दिया है। उनके झूठ से दिल्ली की जनता त्रस्त हो चुकी है। इस बार मामला उनके कथित शिक्षा मॉडल और दिल्ली के आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से जुड़ा हुआ है, जो केजरीवाल के झूठ के साम्राज्य में सेंध लगाते दिख रहा है।
आंगनवाड़ी सेविकाओं का जारी है प्रदर्शन
बीते 17 दिन से दिल्ली के सिविल लाइन पर केजरीवाल के आवास से मात्र 500 मीटर की दूरी पर आंगनबाड़ी महिला कार्यकर्ताओं और सहायिका संघ के आह्वान पर प्रदर्शन चल रहा है। विषय है, बीते 5 वर्षों से वेतन में लेश मात्र भी बढ़ोत्तरी न होना। यह तब है जब केजरीवाल अन्य चुनावी राज्यों में बड़ी-बड़ी घोषणाएं और शिगूफ़े छोड़ते नज़र आ रहे हैं। वर्ष 2013-14 में 49 दिन की सरकार चलाने वाले अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस से मनमुटाव होने पर सरकार गिराना बेहतर समझा था। इस पर उनका तर्क था कि कांग्रेस उसे ठीक ढंग से सरकार चलाने नहीं दे रही थी।
उसके बाद वर्ष 2015 हो या 2020 दोनों बार अरविंद केजरीवाल की सरकार को प्रचंड बहुमत मिला था, वो इसलिए ही मिला था क्योंकि अरविंद केजरीवाल में अपने घोषणापत्र में किसी की भी सोच से परे होकर कई बड़े और झूठे वादे कर डाले थे! फिर वो चाहे गेस्ट टीचर को परमानेंट करने की बात हो या वेतन बढ़ोत्तरी की, लोगों ने इसी के चलते केजरीवाल पर विश्वास करते हुए बार-बार 67 और 62 जैसे जादुई आंकड़े दिए। लेकिन आज यही वोटर स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहा है, क्योंकि उसको केजरीवाल के आवास के बाहर बैठकर अपनी मांगें पूरी करने और वेतन बढोत्तरी के लिए अपने 3-3 वर्ष के बच्चे के साथ प्रदर्शन करना पड़ रहा है।
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केजरीवाल सरकार ने आंखें क्यों मूंद ली है?
बीते 7 वर्षों में, जिस प्रकार केजरीवाल-सिसोदिया ने दिल्ली के शिक्षा मॉडल की चर्चा विश्वस्तरीय विद्यालयों से जोड़ते हुए की है, असल में हाल उसके बिलकुल उलट है। ज्ञात हो कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया अब तक जिस बात को कहते नहीं थकते कि “आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों-शिक्षिकाओं को ग्रूम करने के लिए विदेश भेजती है।” यदि उन्हें विदेश भेजने के लिए राजस्व खर्च करने की कुव्वत सरकार की है, तो 17 दिन से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं जिनका वेतन बीते 5 वर्ष से नहीं बढ़ा है, उनपर केजरीवाल सरकार ने आंखें क्यों मूंद ली है?
आंगनबाड़ी महिला कार्यकर्ताओं के अनुसार दिल्ली में काम कर रही आंगनवाड़ी वर्कर को हर माह 9600 रुपए और हेल्पर को 5000 रुपए मिलते हैं। उनके तर्क हैं कि कोरोना महामारी के बाद से काम में तेजी और जिस प्रकार काम में एकदम से वृद्धि आई है, उसके अनुसार दिया जा रहा मानदेय बिलकुल भी उचित नहीं है। वहीं, प्रदर्शनकारियों की मांग है कि आंगनवाड़ी कार्यकताओं को कम से कम 25 हजार रुपये और हेल्पर्स को 20 हजार रुपये मासिक मानदेय दिया जाए।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन कर रही आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता बदसलूकी भी करते दिख रहे हैं! राजधानी दिल्ली में आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों के धरना प्रदर्शन के बीच कुछ महिलाकर्मियों ने आम आदमी पार्टी के कार्यकतार्ओं पर बदसलूकी करने का आरोप लगाया है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने मामले का संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस भी जारी कर दिया है।
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ये पब्लिक है सब जानती है!
स्कूली शिक्षा को दुरुस्त करने से लेकर स्कूलों की जर्जर हालात को ठीक कर उन्हें विश्वस्तरीय बताने वाली सरकार को शायद यह नहीं पता कि यह पब्लिक है और ये सब जानती है। दो-चार स्कूलों की हालत ठीक कर लिपाई-पुताई करने को शिक्षा में क्रांति नहीं कहते हैं। बता दें, पटपड़गंज विधानसभा में स्थित मंगलम के सरकारी स्कूल में स्विमिंग पूल बनाने के बाद से उस स्कूल को ऐसे प्रचारित किया किया गया जैसे आजतक किसी स्कूल में तरणताल था ही नहीं। जमीनी हकीकत वहां के छात्र बताते है कि ग्राउंड की जगह को कम करके स्विमिंग पूल बना तो दिया, पर असल में एक नए छात्र को स्विमिंग सीखने या सीखाने की कोई पहल नहीं की गई। आरटीआई में सरकारी स्कूलों की लिपाई-पुताई और एक कमरे पर आए खर्चे के बारे में सुनकर आम जनता की घिग्घी बंध गई। सरकार ने अनुमान लगाते हुए एक कमरे के रेनोवेशन के लिए 25 लाख की राशि स्वीकृत की थी। इसपर सरकार के अपने तथ्य थे, पर आप और हम सब जानते हैं कि कितना भी कुछ हो जाए, एक कमरे को व्यवस्थित करने के लिए 25 लाख रुपए तो नहीं ही लगेंगे।
हिल रही हैं केजरीवाल सरकार की जड़ें
जिस प्रकार चुनावी राज्यों में केजरीवाल एंड कंपनी वादों का पिटारा और ढ़ोल बजा रहे हैं, शीघ्र ही यह ढ़ोल स्वत: फट भी जाएगा, क्योंकि ये सरकार जहां शासन में है वहां की हालत तो काफी खराब है। जिस प्रकार आंगनबाड़ी की महिला कार्यकर्ताओं के साथ केजरीवाल सरकार व्यवहार कर रही है और 17 दिन में टस से मस होती नहीं दिख रही है, वो वास्तव में उनकी कुंठित मानसिकता को प्रदर्शित करता हैं। आज भी अरविंद केजरीवाल पंजाब और अन्य चुनावी राज्यों में डटे पड़े हैं, पर दिल्ली स्थित सरकारी आवास के बाहर बैठी महिला आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की सुध लेने वाला न उनका कोई मंत्री है और न ही पार्टी का कोई नुमाइंदा। इससे यही पता चलता है कि अरविंद केजरीवाल का शिक्षा मॉडल ढकोसला है और सत्ता प्राप्ति उनका अंतिम लक्ष्य, जिसके लिए वो लोगों को फ्री का झुनझुना पकड़ाने से पीछे नहीं हटते।
अब बात निकली है तो दूर तलक भी जाएगी। चर्चाएं तो यह भी है कि केजरीवाल सरकार के पास मौलानाओं को देने के लिए 15000 का वेतन तो है पर कोरोना महामारी में घर-घर जाकर वैक्सीनेशन कर रिकॉर्ड सूचीबद्ध करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के वेतन को बढ़ाने में केजरीवाल सरकार की जड़ें हिल रही हैं।
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विज्ञापनों पर पैसा फूंकने के अलावा कुछ नहीं किया
यह सर्वविदित है कि अरविंद केजरीवाल की सरकार ने हर वर्ग और विषय के लिए बजट निर्धारित किया है पर जब उसके अनुपालन और वितरण की बात आती है, तो एक ही जगह सारा राजस्व लग जाता है वो है “विज्ञापन।” पूरे कोरोनाकाल में जब दिल्ली के लोग घरों में कैद थे, आम आदमी पार्टी ने विज्ञापनों पर पैसा फूंकने का काम किया! ऐसा ही हाल दिल्ली में स्मॉग टॉवर के उद्घाटन के समय भी हुआ, उसका उद्घाटन तो हुआ लेकिन उसका संचालन आज भी न जाने कौन से मुहूर्त का इंतज़ार कर रहा है।
निराधार बातों से लबरेज़ और मनगढ़ंत आंकड़ों की पराकाष्ठा पार करने वाली अरविंद केजरीवाल की सरकार ने पूरे शासन में अपने उल्लू को सीधा करने के अतिरिक्त कुछ नहीं किया! यही वजह है जो आज आंगनबाड़ी महिला कार्यकर्ताओं को अपने नन्हें-मुन्ने 3-3 वर्ष के बच्चों के साथ वेतन बढ़ोत्तरी के लिए सिविल लाइन पर धरना देना पड़ रहा है, परन्तु सुनवाई अब भी नहीं है क्योंकि साहब चुनाव में मदमस्त हैं और दिल्ली त्रस्त है!