मुस्लिम तुष्टीकरण की आड़ में कांग्रेस के हाथ से फिसल जाएगा ‘कुमाऊं’

कांग्रेस अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है!

मुख्य बिंदु

देश में कांग्रेस का शासन विभिन्न राज्यों से धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। कांग्रेस के पास आज गिने-चुने राज्यों में अपनी सत्ता को बचाए रखने के अलावा कुछ नहीं है। उत्तराखंड में चुनाव होने हैं और कांग्रेस राज्य में अपने प्रभुत्वकारी विधानसभा सीटों (कुमाऊं) पर नजरे गड़ाए हुए है। यह सत्य है कि एक लंबे अरसे से उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में अवैध मुस्लिम अप्रवासियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इनमें से अधिकांश घुसपैठिए हैं पर इन्हें अपना वोट बैंक बनाने के लिए कई सेक्युलर झंडा उठाने वाली राजनीतिक पार्टियां फ़िज़ूल की घोषणाएं करने में जुटी हुई हैं। इससे न केवल कांग्रेस अपने प्रभाव वाले कुमाऊं क्षेत्र में स्थापित बड़े वोट काडर को खो देगी बल्कि सियासत में स्वयं को ही दुलत्ती मारकर सत्ता की दावेदारी से बाहर हो सकती है।

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उत्तराखंड में दिखा कांग्रेस का मुस्लिम प्रेम

दरअसल, उत्तराखंड के सियासी अखाड़े में एक बयान चर्चा में है, जिसको लेकर सियासी गलियारों में हलचल मच गई है। मुस्लिम यूनिवर्सिटी को लेकर एक बयान के बाद CM पुष्कर सिंह धामी और पूर्व CM हरीश रावत आमने-सामने आ गए हैं। यह बयान देहरादून जिले के सहसपुर निवासी कांग्रेस अकील अहमद का बताया जा रहा है। इस मामले को लेकर भाजपा ने अपने सोशल मीडिया पेज पर अकील अहमद को कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए जाने का लेटर अपलोड किया है।

इस लेटर में कहा गया है कि अकील अहमद और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बीच समझौता राज्य में मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना को लेकर हुआ है। बता दें कि कांग्रेस को यदि हिन्दू वोट नहीं मिल रहे तो वह मुस्लिम वोट पर अपना नजर गड़ाए रखती है ताकि कैसे न कैसे करके सत्ता में वापसी की जाए। यही कारण है कि कांग्रेस कभी भी अवैध घुसपैठियों और मुस्लिम अप्रवासियों के विरुद्ध एक बार भी मुंह नहीं खोलती है क्योंकि उसके खिलाफ कुछ भी बोलना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। गौरतलब है कि अकील अहमद ने सहसपुर विधानसभा क्षेत्र से अपना नामांकन वापस लेने के लिए जो शर्त रखी थी, उसमें से एक यह शर्त थी कि कांग्रेस सरकार आने पर उत्तराखंड में मुस्लिम विश्वविद्यालय का निर्माण किया जाएगा।

तुष्टीकरण की राजनीति से होगा कांग्रेस का विध्वंस

वहीं, अकील ने वायरल वीडियो में कहा कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और उत्तराखंड कांग्रेस इकाई के प्रमुख देवेंद्र यादव ने उनकी मांग को मान लिया है, जिसके परिणाम स्वरुप मैंने अपना नामांकन वापस लिया है। वहीं, इस बयान पर उत्तराखंड के CM पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि “कांग्रेस के पास ‘चार धाम-चार काम’ यही हैं, वे उत्तराखंड में मुस्लिम विश्वविद्यालय बनाएंगे। यह कांग्रेस का चाल और चरित्र रहा है कि वो एक अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े व्यक्ति को मनाने के लिए अनेक बहुसंख्यकों को ताक पर रख देती है।” 

भाजपा के प्रवक्ता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने एक वीडियो ट्वीट किया, जिसमें अकील अहमद कह रहे हैं कि हरीश रावत के साथ उनकी सहमति इस बात पर बनी है कि राज्य में मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाई जाएगी। अकील अहमद आगे बोल रहे हैं कि हरीश रावत ने उनसे कहा है कि अगर वे CM बने तो सारा काम हो जाएगा। दूसरी ओर, भाजपा ने सवाल उठाया है कि देवप्रयाग में संस्कृत विश्वविद्यालय के निर्माण का विरोध करने वाले उत्तराखंड में मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते हैं। फिलहाल अकील अहमद का बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है।

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ज्ञात हो कि ये वही कांग्रेस के नेता हैं, जो दक्षिण में संस्कृत विश्वविद्यालय खोलने के प्रस्ताव को बेवकूफी बताते आए हैं। संस्कृत जिनके लिए बेवकूफी और परिहास का स्त्रोत है, और उर्दू जिनके लिए आराध्य है, वो कभी भी इस देश की सांस्कृतिक विरासत को आगे नहीं बढ़ा सकते। फिर चाहे वो देवभूमि उत्तराखंड के हरीश रावत हों या कर्नाटक के नटराज गौड़ा। इन सभी की रूढ़ मानसिकता और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति  सत्ता प्राप्ति की बजाए इन्हें गर्त में ही लेकर जाएगी!

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