हम सभी जानते है कि जनता भोली होती है। पर, दिल्ली की जनता तो कुछ ज्यादा ही भोली निकली और यह भोलापन फ्री-फ्री 1008 बार फ्री ढोंगपुरुष केजरीवाल जी महाराज के लिए वरदान साबित हुआ! विकास और मुफ्तखोरी के लालच में हम बनते गए और वो बनाते गए और बदले में हम उन्हें चुनाव जीताते गए। अब जब वो पूरे देश में चुनाव लड़ रहे हैं, तो सबसे बड़ा प्रश्न ये उठता है कि लोकपाल, भ्रष्टाचार और विकास के नाम पर केजरीवाल को वोट देनेवाली दिल्ली की भोली जनता को क्या मिला? उत्तर है चमचमाती हुई दारू की बोतल। इसी विकास का प्रबंध करने के लिए फ्री पुरुष केजरीवाल ने दिल्ली में शराब की बिक्री पूरी तरह निजी हाथों में सौंप दी है।
और पढ़ें: केजरीवाल के प्रधानमंत्री बनने के सपने को बर्बाद कर रहे हैं कुमार विश्वास!
केजरीवाल ने दिल्ली को ही ठेका बना दिया है
नई आबकारी नीति के तहत राजधानी को 32 जोन में बांटकर 849 लाइसेंस आवंटित किए गए हैं। इसके तहत प्रत्येक जोन में 8-9 वार्ड हैं और प्रत्येक वार्ड में 4 दारू की दुकानें खोलने की योजना है, अर्थात् हर जोने में 26-27 दारू की दुकानें संचालित होगी। हर इलाके में आसानी से शराब उपलब्ध हो, इसके लिए दिल्ली के वार्डों को जोन में विभाजित किया गया है। केजरीवाल के इस अथक प्रयास से विकास का अभूतपूर्व मॉडल स्थापित होगा, जिससे दिल्ली को 1,152 शराब के ठेके मिलेंगे, जहां से आपको सस्ती, सुंदर और मस्ती से भरी हुई बोतल मिल जाएगी, जिसे दिल्ली की जनता फ्री के मिले पानी में मिलाकर एक बड़ा पेग तैयार करेगी और फिर फ्री के AC में बैठकर ‘फ्री पुरुष’ का महिमामंडन करेगी और कहेगी, ‘अजी, लोकपाल जाए तेल लेने, हम तो आम आदमी हैं जी। शाम को 6 पेग के बाद हमें और क्या चाहिए? और सबसे बड़ी बात दारू पीने से खांसी भी तो दूर होती है।’
आपको पता है दिल्ली में 280 म्यूनिसिपल वार्ड हैं। वर्ष 2015 तक राजधानी में केवल 250 शराब के ठेके थे। यानि 30 वार्ड ऐसे भी थे, जहां शराब की कोई दुकान नहीं थी। लेकिन विकास पुरुष केजरीवाल की कृपा से न सिर्फ हर गली-कूचे, टोले-मोहल्ले और स्कूल-अस्पताल, बल्कि मंदिर-मस्जिद के पास भी आपको ठेका और उस ठेके के ठेकेदार नशे में धुत मिल जाएंगे। पहले दिल्ली में ठेका हुआ करता था, अब केजरीवाल ने दिल्ली को ही ठेका बना दिया है। बड़ा, वृहद और विराट ठेका!
और पढ़ें: झूठ के पुलिंदे पर टिका है अरविंद केजरीवाल का शिक्षा मॉडल !
दिल्ली में हर 9 हजार की आबादी पर एक ठेका
ध्यान देने वाली बात है कि दिल्ली की आबादी 1.9 करोड़ है। इसमें लगभड़ 65 प्रतिशत आबादी अर्थात् 1.15 करोड़ की आबादी 18-65 वर्ष के बीच है। यही आबादी दारू की सबसे बड़ी उपभोक्ता भी है और इन्हीं के विकास के लिए केजरीवाल ने न सिर्फ आबकारी नीति में परिवर्तन किया, बल्कि ठेकों का निजीकरण भी किया और साथ ही 1152 ठेके खोलने की योजना भी बनाई। इसके साथ ही केजरीवाल सरकार ने दारू पीनेवाले लोगों की उम्र 25 से घटाकर 21 तक कर दी है। हां, वो और बार बात है कि इतने दिनों में ट्रैफिक से जूझ रही दिल्ली को एक भी फ्लाइओवर नहीं मिला, पर दारू तो मिली। इतनी मिली की अगर पीने वालों की जनसंख्या और ठेकों के हिसाब से गुणा-गणित लगाया जाए, तो दिल्ली में हर 9 हज़ार की आबादी पर एक ठेका उपलब्ध है।
धारावी के बाद दिल्ली की मलिन बस्तियों को देश के सभी महानगरों में सबसे गंदी बताई जाती हैं। 69 वें राष्ट्रीय सेवा योजना दौर के तहत दिल्ली में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि राजधानी में लगभग 6,343 मलिन बस्तियां थी, जिनमें दस लाख से अधिक घर थे, जहां इसकी कुल आबादी का 52 प्रतिशत निवास करता था। DUSIB की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में लगभग 22% लोग अभी भी खुले में शौच करते हैं।
दिल्ली में शहरी गरीबों की दुर्दशा
दिल्ली दुनिया का छठा सबसे बड़ा महानगर है और फिर भी, इसका एक तिहाई निवास झुग्गी बस्तियों का हिस्सा है, जिनके पास कोई बुनियादी संसाधन नहीं है। सरकारी अधिकारियों द्वारा बिना किसी उचित योजना के शहर बेतरतीब ढंग से विकसित हो गया है। शहर की आधी से अधिक आबादी झुग्गी-झोपड़ियों में रहती है, जिन्हें सबसे बुनियादी जरूरतें भी उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। गंदा जमा पानी, बंद नालियां, संकरी गलियां, तंग घर और कचरे के ढेर राष्ट्रीय राजधानी में मलिन बस्तियों की कुछ विशेषताओं में से हैं। सैनिटरी खराब है और पानी की आपूर्ति अनियमित है। पर, झुग्गी-झोपड़ी और स्लम में रहनेवाली इस आधी आबादी को बुनियादी सुविधाएं मुहैया करने के बजाए विकास पुरुष ने इन्हें दारू थमा दी है, ताकि ये लोग उनके उस वादे को भी भूल जाएं, जिसमें उन्होंने इन बस्तियों का कायाकल्प करने का वादा किया था।
वर्ष 2020 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, अधिकांश परिवारों ने बताया था कि यदि लॉकडाउन लंबे समय तक जारी रहा तो वे भूखे मर जाएंगे। सभी आर्थिक गतिविधियों के बंद होने के कारण दिल्ली में रिवर्स माइग्रेशन की लहर देखी गई, जब हजारों प्रवासी श्रमिक अपने गृह नगरों को वापस चले गए। लगभग 70 प्रतिशत झुग्गीवासियों का रोजगार छीन गया। पिछले कुछ महीनों में उनके कर्ज-बकाया में 12 प्रतिशत वृद्धि और मजदूरी में 10 प्रतिशत की कटौती ने उनकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी, लेकिन केजरीवाल ने शराब की दुकान खोल दी।
और पढ़ें: केजरीवाल का वित्तीय ज्ञान यानी ‘काला अक्षर भैंस बराबर’
झूठ के पुलिंदे पर टिकी हुई है केजरीवाल सरकार
केजरीवाल शासन के दो स्तंभ शिक्षा और स्वास्थ्य रहे हैं, पर यह पूरी चालाकी से फैलाया गया भ्रम है। मोहल्ला क्लीनिक आज भी दवाई, मास्क की कमी, लंबित वेतन और ढहते बुनियादी ढांचे से जूझ रहे हैं। मूल रूप से यह गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की सुविधावाला अस्पताल है, जिसे केजरीवाल ने री-ब्रांडिंग कर के पेश कर दिया। जहां तक स्कूल की बात है तो घोषणापत्र में वादा किए गए 500 नए स्कूलों में से केवल 30 ही स्कूल बन पाये, लेकिन केजरीवाल ने मात्र 8,000 नए क्लासरूम बनाकर शिक्षापुरुष का ढ़ोल पीट दिया। आपको बता दें कि सरकारी स्कूल में बुनियादी सुविधाओं और पानी एवं शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय आप सरकार की खिंचाई भी कर चुकी है।
70 बिन्दु के अपने घोषणापत्र का 7 प्रतिशत पूरा करने में भी केजरीवाल विफल रहें है। ऊपर से उन्होंने न सिर्फ लोकपाल बल्कि शराब के मामले में भी उन्होंने अपने गुरु अन्ना को धोखा दिया। एक ओर दिल्ली जहां प्रदूषण, पानी, आधारभूत संरचना, ट्रैफिक, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्लम से जूझ रही है, वहीं केजरीवाल ताहिर हुसैन और अमानतुल्लाह खान जैसे दंगाइयों के बल पर चुनाव जीत रहे हैं। उन्होंने फ्री सेवा के नाम पर जनता को रिश्वत देकर मत पाने के कृत्य का सरकारीकरण कर दिया है। शर्म आनी चाहिए, ऐसे नेताओं को!