पंजाब कभी सबसे खुशहाल राज्य था। आज इसका ग्लैमर सिर्फ गानों तक सिमट कर रह गया है। पंजाब की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। इसे तत्काल ठीक करने की जरूरत है। लेकिन कोई नहीं जानता कि इसे कैसे ठीक किया जाए। इससे भी बुरी बात यह है कि कोई भी इसे ठीक नहीं करना चाहता। पंजाब में जहां तक नजर जाती है सरसों के खेत चमचमाते हैं – यह वह छवि थी, जिसे आंशिक रूप से बॉलीवुड ने बनाया था लेकिन पंजाब की सच्चाई अब सामने आ चुकी है। कभी देश के टॉप-3 अर्थव्यवस्था वाले राज्यों में रहने वाले पंजाब की स्थिति अब डांवाडोल हो चुकी है। दरअसल, पंजाबी गाने और उनके सिंगर्स का हर कोई दीवाना है। यदि आप पंजाबी संगीत वीडियो देखते होंगे, तो संभवत: आप सबसे महंगी कारों, कपड़ों और सामानों का उपयोग करते हुए देखेंगे। पंजाब में गायकों की बहुतायत है – क्योंकि संगीत वीडियो बनाना और उनकी लोकप्रियता से मोटी कमाई करना आज की दुनिया में एक आसान काम है। पंजाबी गानों में यह अक्सर दिखाया जाता है कि लड़कियों को अच्छी कारों वाले लड़के पसंद आते हैं, जबकि लड़कों को ऐसी लड़कियां पसंद आती हैं जो फैशनेबल हैं, फटी हुई जींस पहनती हैं, बालों को हाइलाइट करती हैं आदि…लेकिन इतने ओवररेडेट पंजाब की सच्चाई उसके ग्लैमर से बिल्कुल अलग है।
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भारत के अमीर राज्यों में से एक था पंजाब
ध्यान देने वाली बात है कि पंजाब एक समय में भारत के सबसे अमीर राज्यों में से एक था। इसकी प्रति पूंजी आय पूरे भारत में तीसरे स्थान पर थी, इससे ऊपर केवल दिल्ली और गोवा थे। इसलिए यदि आकार को ध्यान में रखा जाए, तो पंजाब व्यावहारिक रूप से भारत का सबसे धनी राज्य था। वर्ष 1993 में, एक पंजाबी ने अन्य सभी राज्यों के लोगों के बीच औसतन तीसरी सबसे अधिक आय अर्जित की। वर्ष 2009-2010 में पंजाब 10वें स्थान पर खिसक गया था। एक दशक के भीतर नौ राज्य पंजाब को प्रति व्यक्ति आय सूचकांक में मात देने में सफल रहे। वर्ष 2021 में पंजाब की प्रति व्यक्ति आय 15 राज्यों में सबसे कम थी।
1960 के दशक की हरित क्रांति के प्रभाव त्वरित थे। पंजाब ने कृषि का आधुनिकीकरण किया। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के एक अध्ययन के अनुसार,1971 से 1986 तक पंजाब की कृषि में औसतन 5.07 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसके विपरीत, पूरे भारत में कृषि 2.31 प्रतिशत की दर से बढ़ी, यानी पंजाब में दर्ज की जा रही वृद्धि के आधे से भी कम। दि प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1986-2005 तक पंजाब की कृषि में 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो राष्ट्रीय औसत 2.94 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है। हालांकि, 2006 और 2014-15 के बीच हालात बदतर हो गए। इन वर्षों में इसका उत्पादन केवल 1.6 प्रतिशत बढ़ा, जबकि भारत का औसत 3.5 प्रतिशत था।
पंजाब में समाप्त हो गई है प्रतिस्पर्धा
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पंजाब में उद्योगों को राजनेताओं ने अपने कब्जे में ले लिया है, कई ऐसे क्षेत्र में जिनमें सिर्फ और सिर्फ स्थानीय नेताओं का ही वर्चस्व है! पूरे क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा समाप्त हो गई है और एकाधिकार स्थापित हो गया है। पंजाब, जो कभी प्रवासी श्रमिकों को सबसे अधिक मजदूरी का भुगतान करने वाला राज्य होने के लिए खुद को बेशकीमती समझता था, आज औद्योगिक गिरावट का सामना करना शुरू कर दिया है। डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग के अनुसार, वर्ष 2015 में 16वें स्थान पर रहने वाला पंजाब वर्ष 2017 में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में 20वें स्थान पर पहुंच गया। हालांकि, पंजाब वर्ष 2019 में 19वें स्थान पर पहुंचा लेकिन उसके बाद भी पंजाब की स्थिति में गिरावट जारी है।
इसका मतलब यह है कि पंजाब को एक अनुकूल व्यापारिक गंतव्य के रूप में उद्योग अब नहीं देखते हैं। दुर्भाग्य से कोई भी पंजाब की आर्थिक समस्याओं को ठीक करने को तैयार नहीं है। पंजाब में मतदान अभी हाल ही में संपन्न हुआ है। चुनावी मौसम में सभी राजनीतिक दलों ने पंजाब के लोगों पर मुफ्त उपहारों के वादों की बौछार ऐसे कर दी जैसे कि यह उनका आखिरी चुनाव था। उन्होंने राज्य के भारी कर्ज को लेकर भी वादे किए, जो हाल के अनुमानों के अनुसार 3 लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर गया है।
पंजाब की स्थिति ऐसी है कि जो भी सत्ता में आएगा, वह लोकलुभावन उपायों पर ध्यान देगा, जबकि किसी भी आने वाली सरकार का मुख्य फोकस राज्य के कृषि और निजी क्षेत्रों का तत्काल पुनरुद्धार होना चाहिए। राज्य को निवेश का हब कैसे बनाया जाए, इस बारे में एक स्पष्ट रोडमैप सभी राजनीतिक नेताओं की अलमारी से गायब है। कोई नहीं जानता कि पंजाब को कैसे ठीक किया जाए। राज्य का संगीत उद्योग इसे अनंत काल तक नहीं चला पाएगा! पंजाब की मौजूदा स्थिति को देखकर अब यह प्रतीत होने लगा है कि कभी देश के अन्य राज्यों के लिए उदाहरण रहा पंजाब अब अपने पतन की ओर अग्रसर हो चला है।
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