आज आम भारतीयों के भोजन में चावल और गेहूं मुख्य खाद्यान्न के रूप में शामिल हो चुका है। किंतु वास्तविकता यह है कि यह दोनों अन्न पिछले कुछ दशकों में भारतीयों के भोजन का मुख्य अवयव बने हैं। ऐतिहासिक रूप से भारतीयों के भोजन में जौ, बाजरा, ज्वार, रागी जैसे मोटे अनाज शामिल थे। आज भारत विश्व में गेहूं और चावल का प्रमुख निर्यातक देश है। यह सही समय है, जब भारत मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ाए और निर्यात शुरू करे। भारत सरकार का मानना है कि किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) भारत को दुनिया का मोटे अनाज का केंद्र बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार “संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ घोषित किया है, जिसका उद्देश्य बदलती जलवायु परिस्थितियों में अनाज के स्वास्थ्य लाभों और खेती के लिए इसकी उपयुक्तता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।”
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मोटे अनाज के सेवन के हैं कई फायदे
अपनी खाद्यान्न समस्या को समाप्त करने के लिए भारत ने 1960 के दशक में हरित क्रांति पर कार्य शुरू किया। हरित क्रांति करने के लिए विदेशों से कृषि के तरीके सीखे गए। हरित क्रांति ने देश के खाद्यान्न संकट को बहुत सीमा तक कम किया, किंतु इसने गेहूं और चावल के उत्पादन को बढ़ावा दिया, जिन्हें सिंचाई के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त यूरिया के प्रयोग के कारण कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
इसके विपरीत मोटे अनाज की बात करें, तो इनकी खेती के लिए अधिक जल की आवश्यकता नहीं होती है। इनका उत्पादन अपेक्षाकृत कम तकनीकी के प्रयोग में भी हो सकता है। यही कारण है कि सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही मोटा अनाज भारतीयों के भोजन का प्रमुख अवयव था। किंतु हरित क्रांति ने मोटे अनाज को भारतीयों की थाली से दूर कर दिया।
जिस अनाज को हम साढ़े छह हजार साल से खा रहे थे, उससे हमने मुंह मोड़ लिया और आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज की तरफ वापस लौट रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार मोटे अनाज के सेवन से हमें स्वस्थ वसा, विटामिन ई, बी विटामिन, फाइटोकेमिकल्स और एंटीऑक्सिडेंट मिलते हैं। मोटा अनाज रक्त में शुगर लेवल को नियंत्रित रखता है, कोलेस्ट्रोल की समस्या नहीं होने देता, छोटे ब्लड क्लोट नहीं बनने देता, जो प्रायः हार्टअटैक का कारण बनते हैं। मोटे अनाज में मैग्नीशियम, सेलेनियम और कॉपर जैसे आवश्यक तत्व पाए जाते हैं।
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पूरी दुनिया में हो रही मोटे अनाज की डिमांड
पिछले दिनों आयुष मंत्रालय के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने भी मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर बल दिया। पीएम मोदी ने कहा था कि “आज हम देखते हैं कि जिस भोजन को हमने छोड़ दिया, उसको दुनिया ने अपनाना शुरू कर दिया। जौ, ज्वार, रागी, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, ऐसे अनेक अनाज कभी हमारे खान-पान का हिस्सा हुआ करते थे। लेकिन ये हमारी थालियों से गायब हो गए। अब इस पोषक आहार की पूरी दुनिया में डिमांड है।”
वस्तुतः हर वह भोज्य पदार्थ जिसे भारतीयों द्वारा पारंपरिक रूप से हजारों वर्षों से खाया जाता रहा था किंतु कथित आधुनिकता की नकल के कारण जिन भोज्य पदार्थों को भारतीयों ने तिरस्कृत किया, उसे आज पश्चिम में वैज्ञानिक खोजों के आधार पर स्वीकार किया जा रहा है। घी को क्लेरिफाइड बटर के नाम पर, हल्दी दूध को उसके अंग्रेजी नाम पर इस्तेमाल किया जा रहा है। गोबर के उपले से लेकर, पत्तल, गोबर और भूसे का लेप, मोटा अनाज, लगभग पूरा भारतीय ग्रामीण परिवेश, पश्चिम ने अपनाना शुरू कर दिया है और हम अभी भी सोए हुए हैं।
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