किसी भी बच्चे के लिए उसका पहला शिक्षण संस्थान उसका घर होता है, दूसरा होता है स्कूल, लेकिन इन दिनों उस परिधि को कई लोग भूल चुके हैं। यही कारण है कि कर्नाटक में चल रहे हिजाब और भगवा गमछे के द्वंद्व में असल मायने में शिक्षा का शोषण हो गया। लड़कियों के शिक्षण संस्थाओं के परिसर में हिजाब पहनने के ऊपर इतना बवाल हुआ जिसका रिएक्शन भगवा गमछा का खेल में आ जाना हुआ। इसी द्वंद्व को समाप्त करने के लिए कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम छात्राओं को हिजाब (हेडस्कार्फ़) पहनने से प्रतिबंधित करने वाले राज्य शिक्षा संस्थानों के फैसले को मान्य करते हुए, कर्नाटक सरकार ने शनिवार को कहा कि “समानता, अखंडता और सार्वजनिक कानून व्यवस्था को बिगाड़ने वाले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।”
इस बात को कोई दरकिनार नहीं कर सकता है कि विद्यालयों, महाविद्यालयों में छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से आते हैं। ऐसे में यदि धार्मिक आडंबर को गढ़ने वाली कुदशित सोच शिक्षण संस्थानों पर हावी होने लगेंगी तो शिक्षा धरी की धरी रह जाएगी और शिक्षण संस्थानों पर भी ताला लगाना पड़ जाएगा। शिक्षण संस्थाओं का मूल उद्देश्य शिक्षा प्रदान करना होता है, वहीं से एक शिक्षा हर किसी को मिलती है कि शिक्षण संस्थानों के भीतर सभी एक समान होते हैं। ऐसे में कर्नाटक में उठे धर्म के विषय ने शिक्षण संस्थानों की अवहेलना की है क्योंकि स्कूल कट्टरता छोड़ना सिखाते हैं, स्कूल कट्टरपंथ का केंद्र नहीं होते हैं।
ज्ञात हो कि, कर्नाटक के कॉलेजों में हिजाब पहनने को लेकर कर्नाटक में छात्राओं द्वारा विरोध अब और अधिक कॉलेजों में फैल गया है। हिजाब पहने लगभग 40 महिला छात्र कर्नाटक के उडुपी जिले के एक तटीय शहर कुंडापुर में भंडारकर आर्ट्स एंड साइंस डिग्री कॉलेज के द्वार पर खड़ी हो गईं, क्योंकि कर्मचारियों ने उन्हें तब तक अंदर जाने से मना कर दिया जब तक कि वे अपने सिर से हिजाब उतार नहीं लेती। 18 से 20 साल के बीच के सभी छात्रों ने यह जानने की मांग की कि प्रशासन ने हिजाब पर प्रतिबंध क्यों लगाया जबकि नियम इसकी अनुमति देते हैं।
इसी का विरोध में बुधवार 2 फरवरी को शिवमोग्गा के भद्रावती में सर एमवी गवर्नमेंट कॉलेज के छात्रों ने भी कक्षा में हिजाब पहनने वाली कुछ छात्राओं का विरोध किया था। इस मामले में प्रबंधन ने राज्य के नए दिशानिर्देशों के तहत छात्राओं को हिजाब पहनकर कॉलेज नहीं आने को कहा। छात्राओं के मना करने पर कई हिंदू लड़के और लड़कियां भगवा गमछा पहनकर कॉलेज आ गए। हालांकि, प्रिंसिपल ने हिंदू संगठनों को ‘भगवा शॉल अभियान’ लागू करने से रोकने के लिए इस मामले में हस्तक्षेप किया।
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अब जब राज्य सरकार ने तूल पकड़ चुके इस मामले में हस्तक्षेप किया तो सभी पक्षों के लिए अब यह मानना वैधानिक रूप से आवश्यक हो जाएगा। राज्य सरकार के अनुसार, कक्षाओं में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है।
कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 की धारा 133 (2) को लागू करते हुए, शिक्षा विभाग (पूर्व-विश्वविद्यालय) की पद्मिनी एसएन के आदेश में कहा गया है कि “छात्रों को कॉलेज विकास समिति या प्रशासनिक की अपीलीय समिति द्वारा चुनी गई पोशाक पहननी होगी।”
“कर्नाटक शिक्षा अधिनियम-1983 के 133 (2) को लागू करना जो कहता है कि कपड़े की एक समान शैली अनिवार्य रूप से पहनी जानी चाहिए। निजी स्कूल प्रशासन अपनी पसंद की वर्दी चुन सकता है, ”आदेश में कहा गया है। “प्रशासनिक समिति द्वारा वर्दी का चयन नहीं करने की स्थिति में, समानता, अखंडता और सार्वजनिक कानून व्यवस्था को बिगाड़ने वाले कपड़े नहीं पहने जाने चाहिए,” यह कहा।
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इस अधिनियम का उद्देश्य “शैक्षणिक संस्थानों के नियोजित विकास, स्वस्थ शैक्षिक अभ्यास की स्थापना, शिक्षा के मानकों में रखरखाव और सुधार और बेहतर संगठन अनुशासन और राज्य में शैक्षणिक संस्थानों पर नियंत्रण को बढ़ावा देने की दृष्टि से प्रदान करना है। छात्रों के मानसिक और शारीरिक संकायों का विकास और शिक्षा के माध्यम से वैज्ञानिक और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण विकसित करना। यह आदेश इस मुद्दे पर कर्नाटक उच्च न्यायालय में निर्धारित सुनवाई से कुछ दिन पहले आया है।
निर्देश में 2017 में आशा रंजन और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला दिया गया था, जिसमें संक्षेप में कहा गया था कि व्यक्तिगत अधिकारों को नकारने से नहीं बल्कि बड़े हितों को बनाए रखने और संस्थानों के बीच संबंध सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत हित पर बड़ा जनहित होता है।
कक्षा में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को लेकर शुरू में उडुपी और चिकमगलूर तक सीमित था, लेकिन अब यह राज्य के अन्य हिस्सों में फैल गया है। विवाद को एक व्यवस्थित साजिश बताते हुए कन्नड़ और संस्कृति मंत्री वी सुनील कुमार ने कहा कि घर से कॉलेज तक हिजाब या बुर्का पहना जा सकता है, लेकिन कक्षा में प्रवेश करने पर सभी को वर्दी में होना चाहिए। पिछले हफ्ते, स्कूली शिक्षा मंत्री बी सी नागेश ने एक समान नीति की योजना की घोषणा की: “क्या होगा अगर कल कोई कॉलेज में शॉर्ट्स में आकर कहे कि यह गर्म है? हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते। कॉलेजों ने अपने नियम बनाए थे और उसका पालन किया जा रहा था। ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित कॉलेज हैं और उनमें से कुछ हिंदू छात्रों को चूड़ी या बिंदी पहनने की अनुमति नहीं देते हैं। किसी ने इस पर सवाल नहीं उठाया क्योंकि यह कॉलेज का फैसला था।
अब यदि कोई भी वर्ग इसे धर्म और मान्यताओं का अनादर या उसकी अवहेलना बताता है, तो कायदे में उसे शिक्षण संसथान छोड़ देना चाहिए क्योंकि हम सब बचपन से यही सीखते आए हैं कि शिक्षण संस्थानों में कोई भी धर्म, जाति, लिंग का भेद नहीं होना चाहिए। ऐसे में हिजाब को स्वीकृति देना इन सभी बिंदुओं को दुलत्ती मार देने जैसा होगा। इसलिए इन सभी वर्गों को यह समझना चाहिए कि शिक्षा लेने के लिए गए छात्रों को मात्र शिक्षा से लेना-देना होना चाहिए। किसी भी तरह की कट्टरता समाज के लिए घातक ही होती है। राज्य सरकार ने सही समय पर सही निर्णय लिया इसकी सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने ऐसे संवेदनशील मुद्दे का राजनीतिकरण होने से बचा लिया, वरना परिणाम बहुत घातक हो सकते थे।