एक प्रसिद्ध कहावत है कि जब भी आप अपने घर में किसी को रखें तो सोच समझकर रखें, पूरी जांच पड़ताल कर के रखें, क्योंकि किसी की नियत और पहचान उसके माथे पर तो लिखी नहीं होती। जरा सोचिए, अगर कोई इंसान आपके घर में पहचान छिपाकर किसी गलत नीयत या उद्देश्य से घुस जाता है, तो यह कितना खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसा ही कुछ हुआ है टाटा द्वारा अधिग्रहित एयर इंडिया के साथ। एयर इंडिया का कायाकल्प करने के लिए केंद्र सरकार ने उसे टाटा को बेच दिया। टाटा ने उसके कुशल संचालन और प्रबंधन के लिए जिसे नियुक्त किया था वो हैं सीईओ इलकर आयसी (Ilker Ayci)।
जांच में जुटा गृह मंत्रालय
आयसी का जन्म 1971 में इस्तांबुल, तुर्की में हुआ था। वो पहले तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन के सलाहकार थे, जो बाद में 1994 से 1998 तक इस्तांबुल के मेयर बनें। उन्होंने वर्ष 2015 से 2022 तक टर्किश एयरलाइंस के अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवा दी थी और उन्हें एयरलाइन का कायाकल्प करने का श्रेय दिया गया था। आयसी के पास बिल्केंट विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन में डिग्री है। उन्होंने इस्तांबुल में मरमारा विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मास्टर्स भी किया है। उनकी इसी योग्यता को देखते हुए उनकी नियुक्ति की गई, पर अब इसके पीछे की भयावहता को देखिए।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने बीते रविवार को कहा था कि गृह मंत्रालय एयर इंडिया के नवनियुक्त सीईओ इलकर आयसी (Ilker Ayci) की पृष्ठभूमि की “पूरी तरह से” जांच करेगा। हालांकि, घटनाक्रम से परिचित लोगों का कहना है कि किसी भी भारतीय कंपनी के प्रमुख पदों पर नियुक्त होने पर सभी विदेशी नागरिकों के पृष्ठभूमि की जांच की जाती है। ऐसे में नवनियुक्त सीईओ और एमडी के लिए भी यही प्रक्रिया होगी और सुरक्षा मंजूरी की प्रक्रिया तभी शुरू होगी, जब गृह मंत्रालय को टाटा समूह या नागरिक उड्डयन मंत्रालय से आइसी पर कोई संचार प्राप्त होगा। उनकी पृष्ठभूमि की जांच के लिए खुफिया एजेंसी, रॉ से भी मदद लेने की उम्मीद है।
और पढ़ें: ‘खलीफा’ एर्दोगन ने आधिकारिक तौर पर तुर्की में ‘एकदलीय तानाशाही’ घोषित किया
आतंकी फंडिग करने वाले समूह से आयसी का लिंक
आखिर ऐसा क्यों हुआ? दरअसल, आयसी तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन के करीबी सहयोगी रहे हैं और तुर्की के राष्ट्रपति पाकिस्तान के करीबी समर्थक हैं। आयसी 1994 से एर्दोगन से जुड़े हुए हैं, जब वो इस्तांबुल के मेयर बने थे। उस समय, आयसी को उनका सलाहकार नियुक्त किया गया था। एर्दोगन के साथ अपने जुड़ाव के अलावा आयसी तुर्की निवेश सहायता और संवर्धन एजेंसी के पूर्व अध्यक्ष भी थे, जिसने यासीन अल-कादी द्वारा निजी निवेश और उद्यमों को बढ़ावा दिया था और जो कथित तौर पर अल-कायदा का फाइनेंसर था।
आपको बता दें कि आयसी ने 18 अगस्त, 2013 को गुप्त रूप से अल-कादी से मुलाकात भी की थी और उन्हें ताप विद्युत संयंत्रों के निजीकरण के लिए निविदाओं में बोली लगाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अल-क़ादी को तत्कालीन प्रधानमंत्री एर्दोगन को अपनी प्रस्तुति से पहले परियोजना की तैयारी पूरी करने के लिए कहा। ध्यान देने वाली बात है कि TURGEV एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो ह्यूमैनिटेरियन रिलीफ फाउंडेशन (IHH) के साथ गठबंधन में काम करता है। उस पर अल-कायदा, चेचन अलगाववादियों, ISIS और हमास जैसे आतंकी समूहों को फंडिंग करने का आरोप भी लगते आया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मालदीव में IHH को अल-कायदा और ISIS के साथ संबंध के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। आयसी इस बोर्ड सदस्य में से भी एक थे। उनके इसी जुड़ाव को देखकर गृह मंत्रालय के कान खड़े हो गए हैं। शायद इसीलिए गृह मंत्रालय अब उनकी योग्यता को छोड़कर उनकी शुचिता और सत्यनिष्ठा की जांच पड़ताल में जुट गई है।
और पढ़ें: अपनी ‘नागरिकता’ को बेचकर अर्थव्यवस्था बचाने की नाकाम कोशिश कर रहा है तुर्की