विशेष अदालत ने बीते दिन शुक्रवार 18 फरवरी को वर्ष 2008 के अहमदाबाद सीरियल बम धमाकों के 49 आरोपियों में से 38 को दोषी करार दिया और उन्हें मौत की सजा सुनाई। फैसला ऑनलाइन दिया गया, क्योंकि सभी आरोपी देश की विभिन्न जेलों में थे। अहमदाबाद में सिलसिलेवार धमाकों को बेंगलुरु धमाकों के एक दिन बाद 26 जुलाई 2008 को अंजाम दिया गया था। उस दिन अहमदाबाद सहित गुजरात के 14 स्थानों पर विस्फोट किए गए, जिसमें 56 लोगों की जान चली गई और 200 से अधिक घायल हो गए थे। इंडियन मुजाहिद्दीन ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी। ध्यान देने वाली बात है कि यूपीए के शासन काल में इस आतंकी संगठन का बोलबाला था और पूरे भारत में इसके लिंक थे, जिसने देश में कई हमलों को अंजाम दिया था।
1100 से अधिक गवाहों से पूछताछ के बाद हुआ फैसला
ध्यान देने वाली बात है कि अहमदाबाद आतंकी हमले को इंडियन मुजाहिद्दीन ने “2002 के गुजरात दंगों का बदला” करार दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने पीड़ितों के परिजनों को 1 लाख रुपये की सहायता की घोषणा की। गुजरात सरकार ने परिवारों को 5 लाख रुपये की सहायता दी थी। अहमदाबाद में विस्फोटों के बाद 20 प्राथमिकी दर्ज की गई। 26 जुलाई, 2008 को अहमदाबाद में हुए आतंकी हमले के कुछ दिनों बाद शहर के विभिन्न हिस्सों से बम बरामद होने पर सूरत में 15 प्राथमिकी दर्ज की गई। सभी 35 प्राथमिकी मर्ज होने के बाद अदालत ने मामले की सुनवाई शुरू की। पुलिस ने अपने आरोप पत्र में दावा किया है कि स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया के पूर्व सदस्यों ने इंडियन मुजाहिद्दीन का गठन किया था। खबरों के अनुसार, लगभग 100 सिमी कार्यकर्ता साजिश में शामिल थे, जिनमें से 75 से अधिक गुजरात और शेष अन्य राज्यों से थे।
इस मामले में पहली गिरफ्तारी 15 अगस्त 2008 को हुई थी। विस्फोट के मास्टरमाइंड आजमगढ़ के मुफ्ती अब्दुल बशीर इस्लाही को 16 अगस्त को 9 सिमी कार्यकर्ताओं के साथ गिरफ्तार किया गया था। तब से 49 आरोपियों में से किसी को भी नियमित जमानत नहीं मिली है। एकमात्र आरोपी जो अस्थायी जमानत पर बाहर था, वह नावेद कादरी है, जिसे एक्यूट सिज़ोफ्रेनिया का पता चलने के बाद रिहा कर दिया गया था। यह मामला काफी विवादों में रहा। ध्यान देने वाली बात है कि इस घटना के 24 आरोपियों ने 213 फुट की सुरंग खोदकर जेल से भागने की कोशिश की थी। पिछले हफ्ते विशेष अदालत ने विस्फोटों के सिलसिले में 49 लोगों को दोषी ठहराया और 28 को बरी कर दिया। जिसके बाद बीते दिन शुक्रवार का फैसला सुनाए जाने से पहले 1,100 से अधिक गवाहों से पूछताछ की गई और फैसला सुनाया गया।
इस इस्लामी संगठने ने लगातार किए कई बड़े धमाके
आपको बता दें कि इंडियन मुजाहिदीन एक इस्लामी आतंकवादी समूह है, जिसका यूपीए के दौर में पूरे भारत में भयंकर पकड़ थी। यह गैरकानूनी स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का अंग है। इस समूह में निचले स्तर के सिमी गुर्गे शामिल थे। इंडियन मुजाहिदीन ने भारत में एक के बाद एक कर कई हमलों को अंजाम दिया था, जिनमें…
- 2007 उत्तर प्रदेश बम विस्फोट
- 2008 जयपुर बम विस्फोट
- 2008 बेंगलुरु सीरियल ब्लास्ट
- 2008 अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट
- 2008 दिल्ली बम विस्फोट
- 2010 पुणे बमबारी
- 2010 जामा मस्जिद पर हमला
- 2010 वाराणसी बमबारी
- 2011 मुंबई सीरियल ब्लास्ट
- 2013 बोधगया विस्फोट आदि शामिल हैं
यूपीए सरकार की भूमिका की होनी चाहिए जांच
हालांकि, मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से देश में आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगी है, लेकिन सरकार को इंडियन मुजाहिद्दीन से जुड़े अन्य मामलों पर ध्यान देना जरुरी है। जिन सभी मामलों में आतंकी संगठन के सदस्यों को दोषी नहीं ठहराया गया है, केंद्र सरकार को इसे सुनिश्चित करने के लिए तेज गति से काम करना चाहिए। सरकार और जांच एजेंसियों को अपने कार्यकाल के दौरान ऐसे कट्टरपंथी संगठनों से निपटने में यूपीए सरकार की भूमिका को भी देखना चाहिए।
ध्यान देने वाली बात है कि यूपीए के शासन में इंडियन मुजाहिद्दीन के हमले कैसे हुए? यह जानना आवश्यक है कि इंडियन मुजाहिदीन की सक्रियता उस वर्ष के साथ मेल खाती है, जब कांग्रेस केंद्र में सरकार का नेतृत्व कर रही थी? और ऐसा क्यों है कि भारत के लोगों द्वारा यूपीए को सत्ता से बाहर करने के बाद इंडियन मुजाहिदीन गुमनामी में चला गया?
क्या उस समय सरकार ने आतंकियों पर लगाम लगाया था? जवाब है बिल्कुल नहीं! भारत के मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपनी छवि चमकाने के लिए, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए ने ऐसे संगठनों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का हर संभव प्रयास किया, जो आम भारतीयों को दैनिक आधार पर आतंकित कर रहे थे। एक समय था जब अपने घरों से बाहर निकलने वाले भारतीयों को यकीन हो जाता था कि वे शायद कभी वापस नहीं आएंगे, क्योंकि उनके शहर में बम फटना आम हो गया था।
UPA ने दे रखी थी खुली छूट!
यूपीए के दौर में कम से कम 18 बड़े आतंकी हमलों से भारत दहल उठा था, जिनमें असंख्य नागरिकों की मौत हो गई थी। और यह सिर्फ भारत के मेट्रो शहरों का आंकड़ा है! इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यूपीए सरकार ने किस तरह आतंकियों को खुली छूट दे रखी थी! यह वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले हुए यासीन भटकल की गिरफ्तारी थी, जिसने इंडियन मुजाहिदीन को गंभीर नुकसान पहुंचाया। यासीन भटकल प्रतिबंधित संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन का संस्थापक था। जिसे वर्ष 2016 में हैदराबाद की NIA अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। यासीन पर भारत में 10 से अधिक अलग-अलग बम विस्फोटों में सीधे तौर पर शामिल होने का आरोप है।
कई लोग तर्क दे सकते हैं कि इंडियन मुजाहिदीन अतीत का अवशेष है। लेकिन भारत में जितने भी हमले हुए, उसके पीछे इस संगठन का हाथ पाया गया, ऐसे में इसके सभी सदस्यों को फांसी की सजा सुना दी जाए, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वर्ष 2008 के अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट के दोषियों को फांसी की सजा एक शुरुआत है। अब मोदी सरकार को यूपीए शासन के साथ अपने समानांतर संचालन के अलावा, संगठन द्वारा किए गए अन्य हमलों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
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