ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो कपड़ा उद्योग भारत की पहचान हुआ करता था। सिंधु घाटी सभ्यता के समय से भारतीय लोगों ने अपने समय की सभी महान सभ्यताओं को भारत में बने कपड़ों का निर्यात किया है। ब्रिटिश शासन के आने से पहले भारत यूरोप को रेशम व कपास के बने कपड़े, जिन पर बुनकरों द्वारा शिल्पकारी की जाती थी, उसका निर्यात करता था। किंतु ब्रिटिश शासन काल में विभिन्न औपनिवेशिक नीतियों के कारण भारत का कपड़ा उद्योग चौपट हो गया। अब भारत सरकार भारत की इस पहचान को पुनः वैश्विक मंच पर स्थापित करने की तैयारी में है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार देश का वार्षिक कपड़ा निर्यात अगले पांच साल में मौजूदा 40 अरब डॉलर से बढ़कर 100 अरब डॉलर पर पहुंच सकता है। कपड़ा सचिव उपेंद्र प्रसाद सिंह ने यह बात कही है। सिंह ने कपड़ा निर्यात संवर्द्धन परिषद (AEPC) के 44वें स्थापना दिवस को संबोधित करते हुए कहा कि देश के परिधान उद्योग को अपने स्तर और आकार को बढ़ाने के लिए एकीकरण पर ध्यान देना चाहिए और उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का लाभ उठाना चाहिए।
काम पर लग गई है मोदी सरकार
वर्तमान समय में भारत कपड़ा निर्यात के मामले में विश्व में छठे स्थान पर आता है। भारत सरकार की योजना है कि भारत को एक क्लॉथ एक्सपोर्टर की तरह स्थापित किया जाए। इसके लिए केद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में पांच वर्षों में कुल 4,445 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ 7 पीएम मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल (PM-MITRA) पार्क स्थापित करने को मंजूरी दी है। इस योजना के अंतर्गत एक स्थान पर ही कताई, बुनाई, प्रसंस्करण/रंगाई और छपाई से लेकर परिधान निर्माण आदि काम हो सकेंगे। इसके अतिरिक्त वर्ष 2021 में मोदी सरकार ने पीएलआई योजना के अंतर्गत कपड़ा क्षेत्र को 10,700 करोड़ रुपए का आर्थिक सहयोग देने का निर्णय किया था। यह सहयोग अगले 5 वर्षों में दिया जाएगा।
भारत के कपड़ा उद्योग के विस्तार का लाभ आम बुनकरों व कारीगरों को भी मिले, इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने बुनकरों और कारीगरों को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के माध्यम से जोड़ने और प्रौद्योगिकी का लाभ दिलाने की योजना भी बनाई है। भारत का हथकरघा उद्योग ब्रिटिश शासन में पूरी तरह चौपट हो गया था। औपनिवेशिक तंत्र के अंतर्गत भारत को कपास का निर्यात करना पड़ता था, जिसका प्रयोग ब्रिटिश मिलों में कपड़ा बनाने के लिए होता था। हालांकि, विपरीत परिस्थितियों के बाद भी भारतीय बुनकरों ने अपने हस्त कौशल को मरने नहीं दिया। अब उचित यह होगा कि सरकार इसे आगे बढ़ाए और भारत के टेक्सटाइल सेक्टर के विकास में इस पहलू को भी जोड़ा जाए।
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भारत की सॉफ्ट पावर में होगी वृद्धि
कपड़ा उद्योग से आर्थिक लाभ के साथ ही भारत को अपनी सॉफ्ट पावर बढ़ाने का मौका भी मिल सकता है। यदि भारत सबसे बड़ा का बड़ा निर्यातक देश बनता है और भारतीय कंपनियां विश्व की बड़ी कपड़ा निर्माता कंपनियों में शामिल हो जाती है, तो भारतीयों के पास यह शक्ति होगी कि वह दुनिया के ड्रेसिंग सेंस में बदलाव ला सके। यह भी एक ऐसा पहलू है, जिस पर कार्य करने से भारत की सॉफ्ट पावर बढ़ेगी। कपड़ा उद्योग को लेकर जो संभावनाएं व्यक्त की जा रही है, वह एक अकेला उदाहरण नहीं है। वस्तुतः पूरी दुनिया मानती है कि अगले एक दशक तक भारत अभूतपूर्व गति से विकास करने वाला है। यह विकास देश को आर्थिक लाभ पहुंचाएगा ही, किंतु इसका प्रयोग व्यापक रूप से अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर भारतीयता के प्रभाव को बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए। जिस प्रकार पश्चिमी देशों में पहना जाने वाला पैंटशर्ट और सूट आज पूरी दुनिया के संभ्रांत वर्ग की पहचान है, वैसे ही भारत को अपने पारंपरिक परिधान को वैश्विक स्तर पर फैशन ट्रेंड के रूप में स्थापित करना चाहिए।