हिजाब विवाद: क्यों आपको अपने आदर्शों को बुद्धिमानी से चुनने की आवश्यकता है

हिजाब की जगह यूनिफॉर्म चुनो!

मुस्लिम हिजाब

अक्सर हमारे मन में एक सवाल कचोटता है कि आखिर क्या कारण है मुस्लिम समाज हमेशा उन लोगों को अपना नायक और प्रतिनिधि चुनता है, जो भारत दर्शन के विरोधी हैं या फिर उनमें भारत विरोध की छवि प्रतिबिंबित एवं परिलक्षित होती रहती है? आजादी के पहले कुछ लोगों ने मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली खान और अल्लामा इकबाल को अपना नेता चुना जबकि गफ्फार खान जैसे नेताओं को ठुकरा दिया गया। हाल के कुछ वर्षों में भी मुस्लिम समाज को दिग्भ्रमित कर और हिंदू कट्टरता का भ्रम जाल फैलाकर ऐसी ही कुत्सित विचारधारा रखने वाले लोगों को मुस्लिम समाज का नायक बनाया जा रहा है। इन्हीं गलतियों के कारण उमर खालिद, सरजील इमाम और डॉक्टर कफील खान जैसे लोग उभरकर राष्ट्रीय परिदृश्य पर आ चुके हैं। जब इनसे काम न बना तब मुस्लिम समाज के कुछ पितृसत्तात्मक कट्टरपंथियों ने मुस्लिम माताओं और बहनों को दिग्भ्रमित कर आगे कर दिया।

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हिजाब के आगे शिक्षा को ताक पर रखने की कोशिश

इसी कारण शफूरा जरगर और बिकलिस बानो‌ का नाम उभरकर सामने आया। अब यह लोग और अधिक निकृष्ट आचरण पर उतर आए हैं और इन्होंने स्कूल जाती हुई बच्चियों को अपना ढाल बना लिया है। मुस्लिम संगठन पहले हिजाब और फिर किताब जैसे नारों से इनके मन में जहर भर रहे हैं। इसी कड़ी में ‘जय श्री राम’ का नारा लगाते बच्चों के सामने ‘अल्लाह हू अकबर’ बोलने वाली मुस्कान को नायिका की तरह पेश किया जा रहा है।

एक तरफ बच्चों को जहां सामाजिक समरसता एवं समानता ड्रेस कोड और अनुशासन जैसे गुणों का पाठ पढ़ाना चाहिए वहां मुस्कान को आगे लाकर हिजाब और रूढ़िवादी विचारधारा को फैलाने का प्रयास किया जा रहा है। खबर है कि जमीयत ने उसके लिए 5 लाख की इनामी राशि की भी घोषणा कर दी है जबकि स्वयं मुस्कान जब भी बाहर जाती हैं, अपने दोस्तों के साथ घूमती-फिरती है, तब वह बिना हिजाब के होती हैं।

मुस्लिम संगठन एक ओर हिजाब को धार्मिक ड्रेस कोड और कुरान की अनिवार्यता के रूप में पेश करते हुए जहां मुस्कान को नायिका बताने तुले हुए हैं, वहीं मुस्लिम बच्चियों को यह समझना चाहिए कि कैसे यूनिफॉर्म पहनने वाली लड़कियां उनके समाज की नायिका बनने के योग्य हैं। तो आइए, हम उन मुस्लिम बच्चियों को उन नायिकाओं से अवगत कराते हैं, जो ड्रेस पहनने के साथ-साथ और मुस्लिम बच्चियों का आदर्श बनने का माद्दा न रखते हुए पूरे भारत के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

1. कैप्टन सरिया अब्बासी

समानता के आधार पर मुस्लिम महिलाएं भी अब हर कोने में महत्वपूर्ण पद धारण कर रही हैं। ऐसा ही एक उदाहरण कैप्टन सरिया अब्बासी हैं, जिनकी तस्वीर भारत के पूर्वी क्षेत्र में चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा की रक्षा करते हुए सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है। तवांग सेक्टर में संघर्षरत LAC के पास आर्मी एयर डिफेंस रेजिमेंट के साथ एक सैन्य कमांडर के रूप में तैनात अब्बासी बहादुरी और राष्ट्रवाद का प्रतीक हैं। उन्हें अरुणाचल प्रदेश में तवांग क्षेत्र के पास वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ अग्रिम स्थान पर तैनात उन्नत L-70 वायु रक्षा तोपों का संचालन करते हुए देखा जा सकता है। उनकी यूनिट उन्नत L-70 तोपों से लैस होने वाली देश की पहली Air Defence रेजिमेंट में से एक है।

2. लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी

सिग्नल कोर की लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी ने 2016 में आयोजित आसियान प्लस बहुराष्ट्रीय क्षेत्र प्रशिक्षण अभ्यास फोर्स-18 में भारतीय सेना के एक प्रशिक्षण दल का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी बनने का दुर्लभ गौरव हासिल कर इतिहास रच दिया। अभ्यास के लिए उपस्थित सभी आसियान प्लस टुकड़ियों में एकमात्र महिला अधिकारी थी। भारतीय सेना के सिग्नल कोर के एक अधिकारी, 35 वर्षीय कुरैशी को भारतीय दल का नेतृत्व करने के लिए शांति रक्षक प्रशिक्षकों के एक पूल से चुना गया था। 2006 में, उन्होंने कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान में काम किया और पिछले छह वर्षों से PKO से जुड़ी हुई हैं। वह गुजरात की रहने वाली हैं और उन्होंने बायो-केमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री हासिल की है।

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ऐसे में, हमारी मुस्लिम बच्चियों को किसी कट्टर संगठन के भ्रमजाल में न फंसते हुए ऐसी नायिका को अपना मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत चुनना चाहिए। अब्बासी और कुरेशी जैसी मुस्लिम महिला जवानों ने ना सिर्फ यूनिफॉर्म पहन रखा है पर यह हिजाब से सुंदर, आकर्षक और गौरवान्वित करनेवाला परिधान भी है।

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