भारत ने बीते सात वर्षों में अपनी सेनाओं को ‘आत्मनिर्भर‘ होते हुए देखा है। जो सैन्य अधिकारी हमेशा 10 जनपथ के आदेश के बिना एक कदम नहीं बढ़ा पाते थे, आज उन सैन्य अधिकारियों को अपने निर्णय लेने की स्वतंत्रता है! आज भारत से सटे सभी सीमावर्ती देश, जिनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश प्रमुख हैं, उनके बॉर्डरों पर सेना अपना खूंटा गाड़कर बैठी हुई है और यही कारण है कि घुसपैठियों के दिन लद गए हैं।इसी क्रम में सेना के भविष्य को सुरक्षित और कर्मठ बनाए रखने के लिए हाल ही में कुछ बड़ी नियुक्तियां की गई है। इन नियुक्तियों से यह अवश्य प्रतीत होता है कि अनुभवी होने के साथ-साथ सैन्य अधिकारियों का प्रतिभावान होना भी काफी ज़रूरी है। ध्यान देने वाली बात है कि सेना के नए सह-सेना प्रमुख के तौर पर पूर्वी कमान के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल मनोज पांडे ने जहां एक ओर पदभार संभाला है, तो वहीं दूसरी ओर उनकी जगह अब लेफ्टिनेंट जनरल आर पी कलीता ने ले ली है।
दरअसल, भारतीय सेना अब उम्रदराज़ होने की प्रतीक्षा न करते हुए प्रतिभावान और सैन्य कौशल के धनी अधिकारियों का प्रमोशन करने में ढिलाई नहीं बरतना चाहती है, क्योंकि जबसे सीडीएस जनरल बिपिन रावत की असमय मृत्यु हुई थी, सेना के लिए यह बड़ी रिक्तता का आभास करा रही थी। यही कारण है कि केंद्र सरकार द्वारा अब नए सीडीएस की प्रक्रिया आगे बढे, उससे पूर्व सेना इससे जुड़े सभी पदों को नियमित करना उचित समझ रही है। मनोज पांडे को उपसेना प्रमुख बनाने का अर्थ यह है कि उन्हें आने वाले समय में सेना प्रमुख का प्रबल दावेदार माना जा रहा है, क्योंकि आने वाले 30 अप्रैल को एम एम नरवणे रिटायर होने जा रहे हैं, इसलिए कथित तौर पर उनके उत्तराधिकारी की खोज पहले ही पूर्ण कर ली गई है।
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लेफ्टिनेंट जनरल पांडे ने कई मोर्चे पर किया है बेहतरीन काम
गौरतलब है कि लेफ्टिनेंट जनरल मनोज पांडे ने अपने कार्यकाल में न सिर्फ सभी तरह के इलाकों में काम किया है, बल्कि आतंकवाद के मोर्चे पर भी बेहतरीन काम करते हुए अपनी उपयोगित साबित की है। उन्हें परम विशिष्ट सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल, चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कमेंडेशन और GOC-in-C कमेंडेशन से दो बार सम्मानित किया जा चुका है। यह उपलब्धियां और सेवा मेडल इस बात की ओर संकेत देते हैं कि उपसेना प्रमुख के तौर पर लेफ्टिनेंट जनरल पांडे की नियुक्ति बहुत ही जायज़ है। उनसे पहले लेफ्टिनेंट जनरल चंडी प्रसाद मोहंती उपसेना प्रमुख थे, जिनकी बीते सोमवार 31 जनवरी को रिटायरमेंट हो गई है।
31 जनवरी को खाली होने वाला एक और पद उत्तरी सेना के कमांडर का था, क्योंकि उस दिन लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी सेवानिवृत्त हुए। जोशी की जगह लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी को नियुक्त किया गया है। ध्यान देने वाली बात है कि अपने 40 वर्ष के कार्यकाल में लेफ्टिनेंट जनरल जोशी ने भारतीय सेना में अनेक अहम पदों पर सेवाएं दी। सैन्य कमांडर नियुक्त किये जाने से पहले वह थलसेना के उपप्रमुख थे। द्विवेदी को अति-विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया जा चुका है और इस बार उनकी नियुक्ति भारत-चीन सीमा पर चल रहे विवादों के बीच की गई है, ताकि चीन को सबक सिखाया जा सके।
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इनकी नियुक्तियों ने भी किया सबका ध्यान आकर्षित
आपको बता दें कि बीते सोमवार को डिफेंस इंटेलीजेंस एजेंसी (डीआईए) के महानिदेशक, लेफ्टिनेंट जनरल केजीएस ढिल्लन रिटायर हुए। वो रक्षा मामलों में बहुत माहिर अधिकारी रहे हैं। श्रीनगर स्थित चिनार कोर के कमांडर रहे, लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लन अपने ‘कितने गाजी आए और कितने चले गए’ डॉयलॉग के लिए आज भी चर्चाओं में बने रहते हैं। ऑपरेशन ऑल-आउट के दौरान आतंकी संगठनों की कमर तोड़ने में ढिल्लन ने अहम भूमिका निभाई थी।
उनकी रिटायरमेंट के बाद 1 फरवरी को लेफ्टिनेंट जनरल जी ए वी रेड्डी ने लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लन की जगह डीआईए के महानिदेशक का पदभार संभाल लिया। लेफ्टिनेंट जनरल जीएवी रेड्डी, पहले प्रतिष्ठित अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (ओटीए), गया के नौवें कमांडेंट के रूप में कार्यरत थे। रेड्डी को अबतक अति-विशिष्ट सेवा मेडल, शौर्य चक्र और विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया जा चुका है।
सीमा पर सेना को मजबूत करने के लिए इन नियुक्तियों के अलावा एक नियुक्ति राजधानी दिल्ली में स्थित सेना मुख्यालय में हुई, जिसके रक्षा जगत में कई मायने हैं। दरअसल, पूर्व में फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स कमांडर रहे लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन को सेना मुख्यालय में नए सैन्य सचिव के तौर पर नियुक्ति किया गया है। सेना मुख्यालय में सैन्य सचिव की शाखा भारतीय सेना के पूरे अधिकारी संवर्ग की पदोन्नति और पोस्टिंग के लिए जिम्मेदार होती है। सैन्य सचिव सेनाध्यक्ष के प्रधान स्टाफ अधिकारियों में से एक होते हैं।
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नियुक्तियों को लेकर प्रतिबद्ध है सरकार
इन सभी नियुक्तियों से यह स्पष्ट जाहिर होता है कि देश पर शासन कर रही सरकार अपनी ओर से हर संभव प्रयास करने के लिए कटिबद्ध दिख रही है, क्योंकि वो किसी भी नियुक्ति को महीनों तक रिक्त नहीं छोड़ रही है। जैसे ही एक अधिकारी रिटायर होता है, उसके तुरंत ही बाद दूसरे अधिकारी को ज़िम्मेदारी सौंप दी जाती है। नव नियुक्त हुए ये सभी अधिकारी भविष्य में भारतीय सेना का प्रतिनिधित्व करते हुए भी दिख सकते हैं! भारत का सैन्य बल आज की तारीख में पाकिस्तान और चीन के लिए नासूर बन गया है। इन दोनों देशों के के लिए भारत कांटा बन गया है, क्योंकि अब देश के सैन्य लड़ाकू इन दोनों देशों की गिद्ध दृष्टि को धराशाई करने में सक्षम हो चुके हैं। उक्त नियुक्तियां यह स्पष्ट कर रही हैं कि अब भारतीय सेना में अधिकारी वो नहीं बनेंगे, जो लंंबे समय से काम कर रहे हैं, बल्कि अब सेना का उच्च अधिकारी वहीं बनेगा, जिसके कौशल से सेना को लाभ हो!