‘कोवैक्सीन’ पर भ्रम फैलाकर बुरा फंसा ‘द वायर’, अब कोर्ट ने लगा दी है लंका!

द वायर का झूठ पकड़ा गया!

Telangana Court

Source- TFIPOST

झूठ बोलो, बार-बार झूठ बोलो। कुछ कहो तो झूठ कहो, कुछ लिखो तो सिर्फ झूठ लिखो और इतना झूठ फैलाओ कि तुम्हारा घर, प्रोपेगेंडा और यहा तक कि तुम्हारे नसों में भी झूठ चलता रहे। जनता का क्या है? भोली है, ‘सनीमा’ देखती है और जब तक देखती रहेगी तब तक पागल बनती रहेगी। पर, इस आड़ में तुम अपना घर आबाद कर लो। देश को छोड़ो, टूटे चाहें भाड़ में जाए! वैसे भी तुम्हारी बेशर्म पत्रकारिता का क्या है, जब कलम ही बिक जाये तो पेशे को सुचिता संरक्षित रखने के बजाय घर चलाने और धन जुटाने पर ध्यान दिया जाये। आप भी सोच रहें होंगे कि हम कैसी बातें कर रहे हैं और किसको संबोधित एवं संदर्भित करते हुए ये बाते कही जा रही है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं ‘The Wire’ के बेशर्म पत्रकारिता की! इस आर्टिकल में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे ‘The Wire’ को उसकी बेशर्म, दुराग्रहजनित, प्रोपेगेंडा ग्रसित और झूठी पत्रकारिता के लिए तेलंगाना के न्यायालय द्वारा न सिर्फ लताड़ लगाई गई है, बल्कि इस मीडिया संस्थान को उसकी औकात बताते हुए न्यायालय ने उसके झूठे लेखों को हटाने का भी निर्देश दे दिया है।

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जनता को भ्रमित करने के उद्देश्य से लिखा गया था लेख

100 करोड़ की मानहानि याचिका में द वायर के प्रकाशक और इसके संपादक सिद्धार्थ वरदराजन, सिद्धार्थ रोशनलाल भाटिया, एमके वेणु समेत कोवैक्सिन के खिलाफ लेख लिखने वाले नौ अन्य पत्रकारों और स्तंभकारों खिलाफ भारत बायोटेक ने मामला दायर किया था। भारत बायोटेक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील के विवेक रेड्डी ने तर्क दिया कि ‘The Wire’ ने कोविड महामारी के चरमोत्कर्ष के दौरान ऐसे लेख प्रकाशित किए, जिनमें भारत बायोटेक और कोवैक्सिन की प्रतिष्ठा को कमजोर करने के लिए न सिर्फ झूठे आरोप लगाए गए, बल्कि जनता में भय और सरकार के खिलाफ असंतोष का संचार करने का कुत्सित प्रयत्न भी किया गया था।

रेड्डी ने तर्क दिया कि भारत बायोटेक ने पहले भी टीबी, जीका रोटावायरस, चिकनगुनिया और टाइफाइड के ऐसे टीके विकसित किए हैं, जिसने राष्ट्रीय और वैश्विक मान्यता प्राप्त कर अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत का सीना चौड़ा किया है और उसके बाद देश जब महामारी के दुष्चक्र में फंसा तब हमने अपने नागरिकों को बचाने के लिए भारत सरकार के प्रमुख संस्थानों के साथ सहयोग भी कर रहे थे। लेकिन, इसी बीच The Wire ने उचित तथ्य-जांच किए बिना वैक्सीन प्राधिकरण और अनुमोदन पर झूठे आरोप लगाते हुए कई लेख प्रकाशित कर जनता में भय फैलाया, जिससे कई लोग टीकाकरण से मुकरने लगे।

48 घंटे के भीतर भ्रामक लेखों को हटाने का निर्देश

आपको उन पत्रकारों और संस्थानों के नाम अवश्य जानने चाहिए, जो ऐसी निकृष्ट और घटिया किस्म की पत्रकारिता में सलिप्त थे। उनके नाम हैं- The Wire, फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म, इसके संपादक सिद्धार्थ वरदराजन, संस्थापक संपादक सिद्धार्थ रोशनलाल भाटिया और एमके वेणु, नीता संघी, वसुदेव मुकुंठ, शोभना सक्सेना, फ्लोरेंसिया कोस्टा, प्रेम आनंद मुरूगन, बंजोत कौर, प्रियंका पुल्ला, सेराज अली और जम्मी नागराज राव।

दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि भारत सरकार द्वारा भारत बायोटेक के वैक्सीन को मंजूरी देने के बाद भी The Wire पर ऐसे लेख प्रकाशित होते रहे। कोर्ट ने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि भारत बायोटेक को एकमात्र रूप से 15 से 18 साल के बच्चों के लिए वैक्सीन बनाने के लिए अधिकृत किया गया है और वेबसाइट पर प्रकाशित होने वाले मानहानिकारक और लांछनीय लेखों से लोगों को वैक्सीन लेने में हिचकिचाहट होती रहेगी। इसलिए न्यायालय ने 48 घंटों के भीतर वेबसाइट से मानहानिकारक लेखों को हटाने का निर्देश दिया और The Wire को भारत बायोटेक एवं उसके उत्पाद COVAXIN के बारे में ऐसा कोई भी मानहानिकारक लेख प्रकाशित करने से भी रोक दिया है।

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द वायर का झूठ पकड़ा गया

बताते चलें कि भारत बायोटेक के लिए उसके वकील के मनोज रेड्डी, वामसी गिन्नाकुंटा, बी आदित्य और शोभित आहूजा ने मुकदमा दायर किया था। यह आदेश जिला न्यायालय के अतिरिक्त जिला न्यायाधी शरंगा रेड्डी द्वारा पारित किया गया। उसके बाद भी अपनी गलती मानकर क्षमा मांगने के बजाय वरदराजन ने ट्वीट करते हुए लिखा कि “एक साल में प्रकाशित 14 रिपोर्ट को एक स्थानीय अदालत द्वारा ‘The Wire’ को कोई नोटिस दिये बिना हटाने का आदेश दे दिया गया। भारत बायोटेक ने हमारे खिलाफ जो भी झूठे दावे किए हैं, उनका खंडन करने का हमें कोई मौका भी नहीं दिया! भारत बायोटेक की बदमाशी काम नहीं करेगी।”

अब हम ‘The Wire’ और वरदरजन को आईना दिखाते हैं। द वायर ने क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल साइंसेज विभाग के प्रोफेसर गगनदीप कांग के साथ मिलकर कोवैक्सिन को बदनाम करने की कोशिश की! इस मीडिया संस्थान ने तर्क दिया कि टीके से उत्पन्न प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पर कोई डेटा उपलब्ध नहीं है।

हालांकि, भारत बायोटेक ने द वायर और उसके अज्ञानी प्रोफेसर के ढकोसले का fact-check करते हुए बताया कि कोवैक्सिन की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कई सहकर्मी-समीक्षित पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई है और नियामक अधिकारियों को भी प्रस्तुत की गई थी। जब से भारत सरकार ने भारत बायोटेक के कोवैक्सिन के माध्यम से आफ़र सफलता प्राप्त की है, तब से अमेरिकी फार्मास्युटिकल दिग्गजों की ओर से ब्लूमबर्ग, न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जर्नल, रॉयटर्स जैसे विदेशी बड़े मीडिया ने एक ठोस अभियान चलाकर हैदराबाद स्थित कंपनी को बदनाम करना शुरू कर दिया है। द वायर जैसे प्रचार पोर्टल उसी का एक विस्तार मात्र हैं।

भारत की जीत को पचा नहीं पा रहा था द वायर!

न्यायालय के इस निर्णय से जो सबसे बड़ा सवाल खड़ा हुआ है वो ये है कि पत्रकारिता क्या है? आप कहेंगे लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ तथा समाज और शासन को दर्पण दिखाने का एक माध्यम। इसकी यही परिभाषा सत्य भी है और सही भी। इस पेशे में संयम, समाज, सत्य और सदाचार की आवश्यकता होती है, पर शीघ्रताशीघ्र सफलता प्राप्त करने के लिए कुछ लोग इसे चाटुकारिता, हठधर्मिता और निर्लज्जता के पेशे में परिवर्तित कर देते हैं। वे पत्रकारिता को देश तोड़ने, देश में अराजकता फैलाने, अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत को अपमानित करने, जनता में भय फैलाने के लिए करने लगते हैं। इसके लिए वो विदेश में बैठे अपने भारत विरोधी आकाओं से पैसे लेते हैं।

The Wire ने भी ऐसा ही किया। भारत बायोटेक से उसकी कोई निजी शत्रुता नहीं थी। उनकी निजी शत्रुता तो मोदी सरकार और भारत के वैज्ञानिकों से थी! वो इस सफलता को पचा नहीं पा रहे थे कि आखिर भारत ने कैसे इतने कम समय में न सिर्फ अपने नागरिकों को एक सशक्त टीके का कवच प्रदान किया, बल्कि एक वैक्सीन महाशक्ति के रूप में उभर गया। इसीलिए, उन्होंने भ्रम फैलाने का कार्य आरंभ कर दिया और इसके लिए उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए।

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