मंदिरों को सरकार से ही नहीं अपितु फ़र्जी ‘भक्तों’ से भी मुक्ति चाहिए

धार्मिक स्थलों को इन्होंने बनाया है पिकनिक स्पॉट!

हमारे देश के युवा Cool Dude बन चुके हैं। धर्म का उन्हें ज्ञान नहीं और पाश्चात्य संस्कृति के अंधी दौड़ में अपने संस्कार भी भूलते जा रहे हैं। अपनी धरोहर, अपनी विरासत और अपने आचरण तीनों को एक अच्छी सेल्फी (फोटो) के लिए ताक पर रख देते हैं। और सेल्फी भी कहाँ? अपनी गौरवशाली विरासत के एतिहासिक मंदिरों और पुजा पाठ के स्थलों पर। हमारे युवाओं ने देवस्थलों को बस एक पार्क में परिवर्तित कर दिया है। आध्यात्मिक स्थान को विलासिता में बदलने की यह परंपरा अत्यंत ही भयावह और लज्जाजनक है।

हमें यह समझना होगा कि एक पवित्र तीर्थस्थल और एक पिकनिक के स्थान में जमीन आसमान का अंतर होता है। यह अंतर बहुत विशाल है एवं इसके सांस्कृतिक निहितार्थ हैं। पिकनिक आधुनिक समाज का चलन है और इस चलन के लिए सैकड़ों वर्षो से मान्यता प्राप्त धर्मस्थलों की पवित्रता भंग नहीं की जा सकती किंतु भारत के कुछ धर्मस्थल मात्र पिकनिक का स्थान बनकर रह गए हैं।

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मंदिर को पिकनिक स्पॉट ना समझें

उदाहरण के लिए हमारे एक पाठक ने बृहदेश्वर मंदिर का अपना अनुभव हमारे साथ साझा किया । उन्होंने लिखा कि, बृहदेश्वर मंदिर में दर्शन करने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं इसके लिए अति उत्सुक था लेकिन मंदिर के द्वार पर मुझे एक झटका लगा । मैंने देखा कि हिंदुओं के सबसे बड़े मंदिरों में से एक मंदिर में दूसरे धर्म के लोगों को भी प्रवेश की अनुमति थी। अब क्योंकि वहाँ उन लोगों को भी प्रवेश की अनुमति है, जो मूर्ति पूजक नहीं है, मंदिर का प्रांगण किसी पब्लिक पार्क की भांति लग रहा था, जहां लोग अपने प्रेमियों के साथ हाथ पकड़ कर घूम रहे हैं। कुछ लोग वहाँ घास पर लोटते हुए और खेलते हुए दिखाई दिये। मुझे लगा था कि यहाँ मुसलमान क्यों आएंगे? वो तो मूर्ति पुजा नहीं करते लेकिन यह दृश्य देखकर मुझे अचंभा हुआ।

दूसरा उदाहरण देखिए, जैन अनुयायियों के लिए यह तीर्थस्थल 3000 वर्षों से महातीर्थ का स्थान रखता है। तीर्थयात्री झारखंड में स्थित पहाड़ों पर नंगे पैर चढ़ते हैं और वे बिना भोजन और पानी के 27 किमी की परिक्रमा करते हैं। किंतु अब यह तीर्थस्थल पिकनिक का स्थान बन कर रह गए हैं। यह स्थान पिछले कुछ वर्षों से सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है और सैलानियों की बढ़ती संख्या इससे जुड़ी समस्याएं भी ला रही हैं। सबसे पहली बात सैलानियों की उपस्थिति ने इस स्थान की पवित्रता को भंग कर दिया है।

धार्मिक भावनाओं को क्षतिग्रस्त करते लोग

बता दें कि पिछले वर्ष 2021 में मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर में बॉलीवुड गाने पर एक महिला ने डांस करते हुए अपना वीडियो शूट किया था, जिसके बाद महिला के खिलाफ केस दर्ज किया गया। दरअसल, महिला ने उस वीडियो को अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर पोस्ट कर दिया था। वहीं, इस मामले पर मध्य प्रदेश के गृह राज्य मंत्री ने कहा था, “राज्य सरकार या किसी अन्य व्यक्ति को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए वीडियो शूट करने में कोई समस्या नहीं है। लेकिन लोगों को इस जगह की शालीनता का ध्यान रखना चाहिए।”

इस स्थल की परिक्रमा के लिए बनाए गए नियम को सैलानी नहीं मानते क्योंकि उनका मूल उद्देश्य घूमना है न कि दर्शन करना। जैन अनुयाई भोजन में अत्यधिक नियंत्रित व्यवहार करते हैं। जैन मुनियों के लिए मांस और मदिरा का सेवन प्रतिबंधित है। किंतु जैन अनुयायियों के सबसे पवित्र स्थल पर पर्यटकों की उपस्थिति ने इस क्षेत्र में मांस-मदिरा के सेवन को बढ़ावा दिया है।

संस्कृति का संरक्षक बने युवा वर्ग

वर्ष 2018 में झारखंड सरकार ने एक सरकारी आदेश जारी कर इस स्थान को विश्व का सबसे पवित्र स्थल घोषित किया था और इस स्थान की पवित्रता को शुद्ध रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की थी। हालांकि, वास्तव में हालात बहुत नहीं बदले हैं और यह बात वर्तमान में चल रहे सोशल मीडिया अभियान से स्पष्ट होती है। शिखरजी महातीर्थ पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित है और जैन धर्मावलंबियों ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि पूरे पारसनाथ पहाड़ी को जैन धर्म का आधिकारिक पूजास्थल घोषित किया जाए।

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इसी तरह का प्रचलन आप अन्य स्थलों जैसे अक्षरधाम, सारनाथ, कोणार्क मंदिर और ना जाने कितने दैवीय स्थानों पर देखते होंगे। लोग अमर्यादित परिधान पहनते हैं, अमर्यादित आचरण करते हैं, उस जगह की गरिमा को भंग करते हैं और अंततः वह स्थान अपने मूल उद्देश्य और पहचान को ही त्याग देता है। यह हमारे संस्कृति को लगने वाला एक कठोर धक्का है। ऐसे में, इन मंदिरों को फर्जी भक्तों से मुक्त करने की आवशयकता है। अतः इसे शीघ्रताशीघ्र रोक कर ऐसे जगहों पर उत्तम आचरण हेतु ना सिर्फ युवाओं को जागृत किया जाना चाहिए अपितु नियमों को न मानने पर उन्हें प्रतिबंधित भी किया जाना चाहिए।

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