जानें क्यों रुस-यूक्रेन युद्ध के बीच व्लादिमीर पुतिन ने पीएम मोदी को लगाया फोन?

अमेरिका, यूरोप तो कुछ भी नही हैं, असली 'शेर' तो भारत है!

पीएम मोदी और पुतिन

Source- TFIPOST

रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया है। दुनिया देख रही है, अमेरिका और उसके सहयोगी लाचार और नाराज हैं। नाटो कुछ ज्यादा ही लाचार और गुस्से में है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पूर्वी यूरोप को फिर से परिभाषित कर रहे हैं। चीन ने रूस के कृत्य को ‘आक्रमण’ कहने से इनकार कर दिया है और सभी पक्षों से संयम बरतने का आग्रह किया है। वहीं, इस मामले पर भारत सधी हुई कूटनीतिक चाल चल रहा है। नई दिल्ली ने न तो रूस की निंदा की है और न ही यूक्रेन पर मास्को के खुलेआम आक्रमण का समर्थन किया है। यहां एक दिलचस्प तथ्य यह है कि चीन के अलावा रूस को हर बड़े देश ने अलग-थलग कर दिया है। अब, रूस को एक ऐसे दोस्त की जरूरत है, जो मास्को के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक लामबंदी कर सके और ऐसे में रूस की निगाहें भारत पर टिकी हुई है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच आम लोगों को लगता है कि पीएम मोदी ने इस विवाद पर पुतिन को कॉल किया था, पर असल में इस परिस्थिति ने भारत की महत्ता इतनी अधिक बढ़ा दी है कि यूक्रेन पर आक्रमण करने के तुरंत बाद पुतिन ने स्वंय सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी को कॉल किया। रूस और पश्चिम के बीच के राजनयिक विभिन्न यूरोपीय राजधानियों के बीच जमे हुए हैं। अब रूस के पास अपने दुश्मनों से बात करने का कोई तरीका नहीं है, चाहे वे नाटो के रूप में हो या संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, फ्रांस और अन्य अलग-अलग देश के रूप में। ध्यान देने वाली बात है कि रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण की घोषणा के बाद एक फोन कॉल के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन और व्लादिमीर पुतिन एक-दूसरे के साथ लड़ने लगे। यही वह संकेत था, जिसने यह ज्ञात किया कि रूस और पश्चिम के बीच उच्च-स्तरीय राजनयिक गठजोड़ टूट चुके हैं।

शुरुआत में लूप से बाहर रहा भारत

दरअसल, यूक्रेन के मामले पर शुरुआत में व्लादिमीर पुतिन ने भारत को लूप से बाहर रखा। इसके विपरीत उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को यूक्रेन के बारे में अपनी योजनाओं के बारे में सूचित कर दिया था। शायद मास्को ने सोचा था कि नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच बढ़ता सहयोग तथा साझेदारी उसके अपने हितों के लिए हानिकारक साबित हो सकती है। इसीलिए रूस ने भारत को पूर्वी यूरोप के लिए अपनी योजनाओं के बारे में सूचित करना आवश्यक नहीं समझा। हालांकि, अब जबकि संघर्ष छिड़ गया है, रूस के लिए चीन बहुत उपयोगी साबित नहीं हुआ है। चीन खुद पश्चिम की नजर में एक अछूत राज्य है। इसलिए बीजिंग, मास्को और वाशिंगटन-लंदन-ब्रूसेल्स के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाने की स्थिति में नहीं है।

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रूस ने भारत के महत्व को पहचाना

ऐसा लगता है कि मॉस्को को समझ में आ गया है कि चीन को लेकर उसकी ओर से गलत निर्णय लिया गया था। रूस अब दुनिया भर में चीन के राजनयिक कौशल की निरर्थकता को महसूस कर चुका है। इसलिए रूस ने एक बार फिर भारत की ओर रुख किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले वैश्विक नेता बनें, जिन्हें व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन में रूस के चल रहे अभियानों की व्याख्या करने के लिए कॉल किया। पीएम मोदी ने हिंसा को तत्काल बंद करने का आह्वान किया, लेकिन साथ ही पुतिन के कदम और भारत को संकट के संदर्भ को समझाने के उनके प्रयासों की भी सराहना की।

ऐसे में अब रूस एक बार फिर भारत के साथ है। भले ही नई दिल्ली सार्वजनिक रूप से इसे स्वीकार करने को तैयार न हो, लेकिन सच्चाई यहीं है। व्लादिमीर पुतिन के पास अब भारत के रास्ते पश्चिम के साथ राजनयिक चैनल खोलने का विकल्प है। सभी प्रमुख विश्व शक्तियों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जर्मनी के साथ नई दिल्ली के विशेष संबंध हैं। इसलिए, मास्को के यूक्रेन में अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के बाद, भारत-रूस और पश्चिम के बीच सामान्य स्थिति बहाल करने में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। इसी बीच, यूक्रेन में भारतीय छात्रों की सुरक्षा को लेकर भारत को व्लादिमीर पुतिन से भी आश्वासन मिला है।

रूस को भारतीय बाजारों की जरूरत

आपको बताते चलें कि भारत एक बड़ा बाजार है। चीन भी है, लेकिन चीन के साथ रूस के संबंध उस तरह की कूटनीतिक ऊंचाई के साथ नहीं हैं, जैसे भारत के साथ हैं। ऐसा लगता है कि रूस ने इसे कठिन तरीके से समझा है, पर समझ लिया है। यूक्रेन मामले के बाद दुनिया के कई देश रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा चुके हैं, ऐसे में अब भारत ही है, जो रूस का सबसे बड़ा मददगार साबित हो सकता है। रूस की आर्थिक परिस्थिति हथियार और गैस पर टिकी रहती है। ऐसे में अगर भारत रूस के साथ साझेदारी कर मेड इन इंडिया के टैग से उसके हथियार दूसरे देशों को बेचता है, तो इससे रूस को भी आर्थिक फायदा होगा और उसपर प्रतिबन्ध का असर भी बहुत कम होगा। साथ ही भारत यूनाइटेड नेशंस में भी रूस के लिए बाकी देशों पर दबाव बना सकता है, जिससे रूस को सहायता भी मिल सकती है। ध्यान देने वाली बात है कि भारत वह देश है, जिसका यूरोपीय देशों के साथ-साथ अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देशों के साथ अच्छे संबंध है। इसलिए रूस चाहता है कि भारत उसकी इस हालत में सहायता करे।

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