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ममता के राज्य में बंगाल क्रांति हो रहा है और यह देश के लिए काफी अच्छा है!

ममता OUT और भाजपा IN देखने के लिए तैयार हो जाइये!

Utkarsh Upadhyay द्वारा Utkarsh Upadhyay
26 February 2022
in राजनीति
ममता के राज्य में बंगाल क्रांति हो रहा है और यह देश के लिए काफी अच्छा है!

SOURCE- GOOGLE

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सत्ता प्राप्ति करने के बाद उसको कायम रखते हुए राज्य को सुखरूप चलाना किसी भी शासक का सबसे बड़ा दायित्व होता है। ऐसे में पश्चिम बंगाल वो राज्य है जहाँ इस नियम को तार-तार करने के बजाय और कुछ होना संभव ही नहीं है। अपने राजनीतिक विरोधियों को निपटाने से लेकर उनका जीवन अंतिम पायदान पर ले जाने में माहिर तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राज में बीजेपी के बाद अब सीपीआई और वाम विचार के नेताओं का नंबर लगा है।

आलिया विश्वविद्यालय के छात्र नेता अनीस खान की हत्या बंगाल में बड़ी समस्याएं पैदा कर रही है। 28 वर्षीय छात्र नेता अनीस खान के परिवार ने आरोप लगाया है कि चार अज्ञात लोग, जिनमें से एक पुलिस की वर्दी पहने और बंदूक लिए हुए था, शुक्रवार रात उनके हावड़ा स्थित आवास में घुसे और खान को तीन मंजिला इमारत की छत से धक्का दे दिया। जिसके पश्चात् मामले ने तूल तो पकड़ा ही, राज्य में “बंगाल स्प्रिंग” शब्द से उसे परिभाषित किया जाने लगा। आपको बता दें कि Political Spring एक शब्द है जिसे 20वीं शताब्दी के अंत में कई छात्र विरोधों, क्रांतिकारी राजनीतिक आंदोलनों या क्रांतिकारी लहरों में से किसी एक को संदर्भित करने के लिए लोकप्रिय किया गया है। अब वही स्प्रिंग या विद्रोह बंगाल से ममता को तबाह करने के लिए तैयार है।

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अनीस खान की मौत भाजपा को सत्ता में लेकर आएगी-

छात्र नेता अनीस खान की मौत ने पश्चिम बंगाल में एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। न्याय की मांग कर रहे तमाम समूह जिसमें सीपीएम, कांग्रेस, सीपीआई-एमएल और इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के छात्र विंग शामिल हैं, उन्होंने घटना को लेकर राज्य सरकार और पुलिस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। विभिन्न विश्वविद्यालयों और राज्य के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से कोलकाता में इन विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे सीपीएम की छात्र शाखा, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) रही है, जो अनीस के परिवार के लिए न्याय की मांग कर रही है।

ज्ञात हो कि, एक ज़माने में वामपंथी दल, सीपीआई का पश्चिम बंगाल में एक छत्र राज हुआ करता था पर TMC के उदय ने उसकी साझी विरासत पर पानी फेर दिया। वर्ष 2011 से ही वामपंथी अंततः एक पहेली को पीछे छोड़ते हुए बंगाल से बाहर हो गए थे। 34 साल तक के शासन के बाद ऐसा हाल होना उसके लिए अत्यंत दर्दनाक सिद्ध हुआ था, पर अनीस की मृत्यु से अब वो पुनः राज्य में उसकी राजनीतिक पकड़ पर आई रिक्तता को पूर्ण करने के लिए राज्य में शासन कर रही ममता सरकार की जड़ें हिलाने में जुट गई है। मामला राजनीतिक होने के कारण सभी आलाधिकारी हर कदम फूंक-फूंक कर चल रहे हैं।

यूँ तो राज्य में वामपंथी शासन की जड़ें बहुत मजबूत थीं परंतु जैसे-जैसे टीएमसी का उदय बंगाल की सक्रिय राजनीति में हुआ, उसने सीपीआई को गर्त में धकेलने का काम किया। निश्चित रूप से जिसका वोट शेयर 2011 में 30% से गिरकर 2021 में 7% हो गया हो, ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि उस दल की मानसिक स्थिति का हाल बुरा नहीं बहुत बुरा हो गया होगा। आज राज्य में सीपीआई और वामपंथ दलों की किसी भी इकाई से जुड़े छात्र नेता या अन्य किसी नेता की हत्या हो जाना, उस दंश की तरह है जो बीते कई वर्षों में बीजेपी कायकर्ता ममता के शासन में खुनी खेल के माध्यम से झेल रहे है।

मृतक अनीस खान परिवार के अनुसार, अनीस की 18 फरवरी की रात को हावड़ा जिले के शारदा दक्षिण खान पारा गांव में चार अज्ञात व्यक्तियों द्वारा उनके आवास की दूसरी मंजिल से कथित तौर पर फेंकने के बाद हत्या कर दी गई थी। उनके पिता सलेम खान ने आरोप लगाया है कि एक आरोपी “पुलिस की वर्दी में” था और अन्य सामान्य वेशभूषा में थे। बंगाल सरकार ने अबतक “कर्तव्य में लापरवाही” बरतने के लिए तीन पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है।

और पढ़ें- पश्चिम बंगाल में भाजपा की उड़ रही हैं धज्जियां, CAA के नियम बनाने को लेकर फिर बढ़ी समय सीमा

2020 की शुरुआत में कोविड महामारी के फैलने के बाद से, SFI ने महामारी प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाकर अपनी पहचान को स्थापित करने के साथ ही उसे जीवनदान दिया था और बंगाल में लोकप्रियता भी बढ़ रही थी। सीपीएम के सूत्रों के अनुसार, 2021 के चुनावों में पार्टी के विनाशकारी प्रदर्शन के बाद भी एसएफआई के RED VOLUNTEERS की संख्या बढ़ गई, जो पिछले साल जून में कोलकाता में लगभग 5,000 से 30,000 और बंगाल में लगभग 40,000 से बढ़कर 1.20 लाख हो गई थी।

कोलकाता स्थित अलिया विश्वविद्यालय के एक छात्र नेता, अनीस पिछले दो वर्षों से ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (आईएसएफ) के साथ थे, हालांकि वह पहले छात्र परिषद, कांग्रेस के छात्र विंग और आइसा (अखिल भारतीय छात्र) जैसे विभिन्न वाम छात्र निकायों से जुड़े रहे थे। अनीस परिवार की सीबीआई जांच और आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग का समर्थन करते हुए एसएफआई कार्यकर्ता 19 फरवरी को आलिया विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ सड़कों पर उतरे। तब से, SFI हर दिन इस मुद्दे पर सड़कों पर और साथ ही राज्य भर के विश्वविद्यालय परिसरों में विरोध प्रदर्शन कर रहा है, मानव श्रृंखला बना रहा है, सड़क जाम कर रहा है और यहां तक ​​कि पुलिस स्टेशनों का “घेराव्” भी कर रहा है।

यूँ तो बंगाल में राजनीति से प्रेरित यह कोइ पहली घटना नहीं है, पर वामपंथी दल से जुड़े इस हत्या के तार जबसे राज्य के शासन-प्रशासन से जुड़ते दिख रहे हैं और इससे वाम दलों का आक्रोश देखते ही बनता है। राज्य में मूलतः बंगाल के नेताओं ने एक के बाद एक दलों को छोड़ दूसरे दल ज्वाइन किए हैं, इस घटना से उन नेताओं की विश्वसनीयता पुनः उनके पुराने दल पर लौटती दिख सकती है।

TMC का वोट बैंक खतरे में है!

मूलतः बंगाली बोलते और बंगाल से आने वाले ठेठ बंगाली भद्रलोक नेता, 34 वर्ष पूर्व सीपीआई के राज में मलाई लपेटते रहे और उससे पहले वह कांग्रेस में दरबारी कर रहे थे। वही नेताओं का समूह 2011 से टीएमसी और बाद में भाजपा और फिर टीएमसी के हमजोली बने, अब उनके लिए यह अवसर है कि वो पुनः छिटककर अपने मूल दल, सीपीआई में घर वापसी कर सकते हैं क्योंकि अब सवाल “आमार सोनार बांग्ला” की हो गई है।

2011 में बंगाल की बागडोर संभालने के बाद, टीएमसी सरकार ने धीरे-धीरे कॉलेजों में छात्र संघ चुनाव रोक दिए, जिससे एसएफआई और अन्य वाम छात्र निकायों में नए कार्यकर्ताओं का प्रवेश अवरुद्ध हो गया। हालांकि, RED VOLUNTEERS के उद्भव ने SFI में नए सदस्यों और नए नेताओं की आमद को फिर से शुरू कर दिया और सीपीएम का विस्तार शुरू हो गया है।

निकाय चुनाव में असर भी दिख रहा है-

12 फरवरी को हुए निकाय चुनावों में टीएमसी ने सभी चार नगर निगमों को 61 फीसदी वोटों के साथ हरा दिया, वाम मोर्चे ने बीजेपी को वोट शेयर के मामले में तीसरे स्थान पर धकेल दिया, जबकि प्रमुख विपक्षी बीजेपी के 14.5 फीसदी वोटों के मुकाबले 16.75% वोट हासिल किए। सीपीएम के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हमारा उद्देश्य नए और युवा चेहरों को सामने लाना था, हाल के विभिन्न चुनावों में उन्हें जगह और टिकट देना जारी रखना था। अनीस खान का मामला एसएफआई को और उत्साहित कर सकता है और इस प्रक्रिया को तेज कर सकता है।

और पढ़ें- ‘हमें पश्चिम बंगाल सरकार पर विश्वास नहीं,’ कलकत्ता HC ने NHRC द्वारा चुनाव के बाद हुई हिंसा की जांच का फैसला बरकरार रखा

सौ बात की एक बात यह है कि, बंगाल में ममता राज के दौरान अब न तो बीजेपी से जुड़े लोग शोषित होने से अपना बचाव कर पा रहे हैं और न ही वाम दलों की कोई सुरक्षा राज्य सरकार सुनिश्चित कर पा रही है, ऐसे में बंगाली बोलने वाले को तरजीह देना और बाकी सभी को हीन भावना से देखना और उनकी मौत का पुख्ता इंतजाम कर देना TMC के कुशासन को दर्शाता है, जिसे पटकनी देने के लिए अब वाम दल एकजुट हो रहे हैं। इससे भाजपा का वोट काडर मजबूत होना तय है क्योंकि 3 से 75 सीटों पर पहुँचने वाली भाजपा को सीपीआई के तौर पर एक नया वोट कटुआ दल मिल गया है।

Tags: टीएमसीपशिम बंगालममता बनर्जीसीपीएम
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‘The Bengal Files’ Exposing Bengal’s Darkest Chapter – What Mamata Won’t Show!

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