कश्मीरी पंडितों को 7 बार कश्मीर नरसंहार का होना पड़ा था शिकार, जानिए कब और कैसे

कश्मीरी पंडित नरसंहार का वो सत्य जो झकझोर देगा!

द कश्मीर फाइल्स एक फिल्म नहीं अपितु एक क्रांति के रूप में सामने आई है। इस फिल्म ने कश्मीरी पंडितों की पीड़ा और इस्लामिक जिहादियों के अत्याचार को बत्तीस सालों से अंजान भारतीय जनता के सामने ला दिया है। समूचे वामपंथी और सेक्यूलर बिरादरी के प्रोपेगेंडा को एक फिल्म मात्र ने झकझोर दिया। थिएटर के बाहर आम लोगों द्वारा हिंदू एकता के नारे लगाए जा रहे हैं। लोगों में कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार के प्रति गुस्सा है तथा अपने ही देश मे शरणार्थी हो गए कश्मीरी पंडितों के दर्द को लोग महसूस कर रहे है । विस्थापन का दर्द झेल रहे कश्मीरी पंडितों के हवाले से कहा जा रहा है की 1990 का वह दौर फिल्म में दिखाए गए दृशो से कही ज्यादा भयावह था |कश्मीर में 1990 में हिंदुओं के विरुद्ध हुआ नरसंहार, पहला नरसंहार नहीं था। यह कश्मीर में हुआ सातवां नरसंहार था। इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा भारत पर किए गए अत्याचारों के क्रम में कश्मीर में भी 14 वीं शताब्दी से ही हिंदुओं के विरुद्ध नरसंहार शुरू हो गया था |

प्रथम नरसंहार एवं पलायन

कश्मीरी हिन्दुओं का पहला नरसंहार सुल्तान सिकंदर शाह (1389-1413 सीई) के शासनकाल के दौरान हुआ था, जिसने एक इस्लामी आतंकवादी जिहाद शुरू किया था | कश्मीर घाटी में, हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया और उनके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण किया गया। सिकंदर ने इतने मंदिर तोड़े कि उसकी उपाधि बुतशिकन अर्थात मूर्तिभंजक की पड़ गई।  सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड एंड होलिस्टिक स्टडीज के अनुसार, देशी हिंदुओं को जबरन धर्मांतरण, लूटपाट, बलात्कार और अन्य प्रकार की क्रूरता का सामना करना पड़ा। इसने हजारों लोगों को अपनी रक्षा के लिए कश्मीर घाटी छोड़ने के लिए मजबूर किया।

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द्वितीय पलायन

दूसरा पलायन फतेह शाह द्वितीय(1505-1514 सीई) के शासनकाल के दौरान हुआ, जो शम्स-उद-दीन अरकी, एक नूरबख्शी शिया सूफी से प्रभावित था, उसने हिंदुओं को सताने की जघन्य प्रथा को फिर से जीवित किया। यह इस बात का भी प्रमाण है कि शियाओं और सूफियों ने भी मौका मिलते हिन्दुओं को प्रताड़ित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

तृतीय पलायन

शाह मिरी वंश के पतन के बाद कश्मीर में हिंदुओं के लिए शांति रही। 1585 ईस्वी में, अकबर ने कश्मीर की सत्ता संभाली, उसने अपेक्षाकृत संयम की नीति अपनाई। किन्तु जहाँगीर और शाहजहाँ ने अकबर की सहिष्णुता नीति को उलट दिया। जहाँगीर का कुख्यात सेनापति सरदार इतकाद खाँ हिन्दुओं को प्रताड़ित करने के लिए कुख्यात था। औरंगजेब और उसके कुख्यात गवर्नर इफ्तिखार खान ने अपने पूर्ववर्तियों द्वारा कश्मीरी हिंदुओं पर थोपे गए आतंक के शासन को जारी रखा। इस प्रकार कश्मीरी हिंदुओं का तृतीय पलायन हुआ |

चौथा दौर

कश्मीर में नरसंहार और पलायन का चौथा दौर दुर्रानी शासन के अधीन शुरू हुआ। 1753 में अफगानिस्तान के दुर्रानी शासकों ने कश्मीर को अपने अधीन किया और उसके बाद औरंगजेब के समान ही वहां के हिंदुओं पर अत्याचार किए। 1819 सिखों द्वारा कश्मीर पर कब्जा कर लिया गया जिसके बाद अत्याचारों का दौर थम गया। आंग्ल सिख युद्ध के बाद कश्मीर अंग्रेजों के अधीन चला गया और उन्होंने इसे महाराजा गुलाब सिंह को सौंप दिया। महाराजा गुलाब सिंह ने डोगरा वंश के शासन की शुरुआत की। महत्वपूर्ण बात यह है कि सिखों और हिंदुओं के शासन में कश्मीरी मुसलमानों पर अत्याचार की एक भी घटना नहीं मिलती है।

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पांचवा दौर

13 जुलाई, 1931 को एक ब्रिटिश अधिकारी के रसोइए अब्दुल कादिर से जुड़ी एक घटना सांप्रदायिक हिंसा में बदल गई। महाराजा हरि सिंह के खिलाफ टिप्पणी के लिए अब्दुल कादिर पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया था। इस मुकदमे ने कश्मीरी मुसलमानों की भावनाओं को भड़का दिया। हिंसा तब शुरू हुई जब कश्मीरी मुसलमान, सेंट्रल जेल श्रीनगर के बाहर इकट्ठा हुए और डोगरा शासन के खिलाफ नारे लगाए। इसके बाद प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई गईं गोलियां चलाने का आदेश तत्काली राज्यपाल त्रिलोकचंद जी द्वारा दिया गया । रिपोर्टों से पता चलता है कि गोलीबारी में 21 मुस्लिम प्रदर्शनकारी मारे गए। उस घटना ने नौशेरा, बोहरी कदल और खान-कही-मौला जैसे क्षेत्रों में सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दिया।  कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया गया और तोड़फोड़ की गई। कई इलाकों में दंगे हुए और हिंदुओं की संपत्ति नुकसान पहुंचाया गया एवं उनकी हत्या की गई।

छठा दौर

1950 से 1980 के बीच पाकिस्तान की आईएसआई ने कश्मीर के अलगाववादी और इस्लामिक प्रवृत्ति वाले तत्वों के साथ मिलकर कश्मीरी हिंदुओं के विरुद्ध योजनाबद्ध दुष्प्रचार अभियान चलाया। पाकिस्तान कश्मीर घाटी का इस्लामीकरण चाहता था और इस कारण कश्मीरी हिंदुओं के विरुद्ध लगातार हिंसक घटनाएं चलती रहे।

सातवां दौर

द कश्मीर फाइल फिल्म सातवें दौर में हुई हिंसा पर बनाई गई है। हालांकि एक फिल्म के अंदर अत्याचार की पूरी कहानी को दिखाना किसी भी निर्देशक के लिए संभव ही नहीं था। फिर भी विवेक रंजन अग्निहोत्री ने संपूर्ण घटनाक्रम को पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ प्रस्तुत किया है। जनवरी 1990 में कश्मीरी हिंदू समुदाय को पाकिस्तान परस्त इस्लामिक आतंकवादियों ने स्थानीय मुसलमानों के समर्थन से निशाना बनाया गया। केवल 1 जनवरी से 19 जनवरी के बीच ही, 319 हिंसक घटनाएं हुईं, जिनमें 114 विस्फोट, 112 आगजनी के मामले, 21 सशस्त्र हमले और भीड़ द्वारा हिंसा की 72 घटनाएं शामिल हैं। आज तक, कश्मीर पंडित 19 जनवरी को

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‘होलोकॉस्ट डे’ के रूप में मनाते हैं। कई रिपोर्टों के अनुसार, फरवरी और मार्च 1990 के बीच 4 लाख से अधिक कश्मीरी हिन्दू कश्मीर छोड़ने विवश कर दिए गए । कश्मीरी मुसलमानों ने कश्मीरी हिन्दुओ पर क्रूर अत्याचार किए जिनकी कहानिया सुनने पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं और आंखे आँसुओ मे डूब जाती हैं यह कल्पना करना भी भयावह लगता है किन्तु यह सच है | और इस सच को दिखने का बीड़ा विवेक रंजन अग्निहोत्री ने उठाया है वह काबिले तारीफ है |

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