रिज़ॉर्ट पॉलिटिक्स तो भूले नहीं है न? अरे वही, जिसकी चर्चा, कर्नाटक से लेकर राजस्थान तक होती थी? अब ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रवृत्ति की एक बार फिर वापसी होने वाली है और राजस्थान ही इसका साक्षी बनने वाला है। दरअसल, हाल ही में राजस्थान में काफी गहमा गहमी बढ़ी है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस की वर्तमान अध्यक्ष सोनिया गांधी, भावी अध्यक्ष राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और पार्टी के वर्तमान महासचिव केसी वेणुगोपाल से बातचीत कर रहे हैं, ताकि यदि विधानसभा चुनाव में परिणाम उनके अनुकूल न हो या फिर त्रिशंकु विधानसभा जैसी स्थिति बने, तो पंजाब, गोवा एवं उत्तराखंड जैसे राज्य के विधायक राजस्थान में ‘शरण’ ले सकें। ऐसा इसलिए क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस का राज है और यहां पर बाहरी हस्तक्षेप की संभावना उतनी ही है, जितनी जो बाइडन के इस जीवन में व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने की!
तिकड़मबाज़ी पर ही निर्भर होगा पूरा खेल
परंतु इसकी आवश्यकता क्यों आन पड़ी? असल में चुनाव का परिणाम भले ही अभी घोषित न हुआ हो, परंतु कहीं न कहीं अपने आप में इसका अनौपचारिक एक्जिट पोल निकल चुका है और कांग्रेस उन राज्यों में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है जहां उसके विजय के तनिक भी अवसर हो, जैसे पंजाब। आप कुछ भी कहिए, परंतु पंजाब में अपनी इज्जत बचाने के लिए कांग्रेस ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है और सत्ता में बने रहने के लिए वह कुछ भी कर सकती है। पंजाब में कुल 117 विधानसभा सीटें हैं, और बहुमत में आने के लिए लगभग 58 सीटों पर विजय प्राप्त करनी होगी, जो इस समय किसी भी पार्टी के लिए असंभव प्रतीत होता दिख रहा है। राजस्थान में जिस प्रकार से ‘रिज़ॉर्ट पॉलिटिक्स’ की गहमा गहमी बढ़ रही है, उससे स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि मीडिया विशेषज्ञों के विश्लेषण के ठीक उलट आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने की संभावना बहुत ही कम है। यानी मीडिया विशेषज्ञों की मानें तो पंजाब विधानसभा में आम आदमी पार्टी को काफी सीटें मिल सकती हैं, परंतु कोई भी पार्टी अपने दम पर सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीट प्राप्त नहीं कर पाएगी और अंत में सारा खेल तिकड़मबाज़ी पर ही निर्भर होगा।
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AAP नहीं दिखा पाएगी कुछ खास कमाल
लेकिन अगर आम आदमी पार्टी को सबसे अधिक सीटें मिल रही हैं, तो कांग्रेस को ‘रिज़ॉर्ट पॉलिटिक्स’ की याद क्यों आई? कांग्रेस को इस अस्त्र का स्मरण तभी होता है, जब उसे लगता है कि सरकार बनाने के तनिक भी अवसर हैं, अन्यथा कर्नाटक और महाराष्ट्र में औंधे मुंह गिरने के बाद भी वह सत्ता में अपने पैर नहीं जमाती। आम आदमी पार्टी के पास तो अच्छे खासे अवसर थे, परंतु अपने बेवकूफियों के कारण वह अपने दम पर तो बिल्कुल भी सत्ता में नहीं आ पाएगी। ज्यादा से ज्यादा आम आदमी पार्टी अपने पिछले टोटल में 10-15 सीटें जोड़ सकती हैं, परंतु यदि वह 60 सीटें जीत गई, तो यह संसार का आठवां अजूबा होगा!
वह ज्यादा से ज्यादा सिंगल लारजेस्ट पार्टी सिद्ध हो सकती है, लेकिन सत्ता में आने के लिए उसे ऐसे पार्टियों के साथ गठबंधन करना पड़ सकता है, जिनके साथ वो शायद बैठना भी पसंद न करे, चाहे वह शिरोमणि अकाली दल हो या कांग्रेस। ऐसी भी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जहां पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही एक दूसरे का वोट शेयर खा जाए और ऐसे में किसी भी पार्टी के पास बहुमत तो छोड़िए, सरकार बनाने के आसपास की संख्या भी नहीं होगी। अभी तो हमने एनडीए और बसपा की भूमिका पर चर्चा भी नहीं की है। अब डूबते को तो तिनके का सहारा ही पर्याप्त होता है और यहां कांग्रेस के पास तो एक अच्छा खास अवसर है, जिसे वह हाथ से कतई नहीं जाने देगी।