AAP का पंजाब की सत्ता में आना किसी दु:स्वप्न से कम नहीं है

अपनी महत्वाकांक्षा के लिए देश की संप्रभुता क्या किसी की भी बलि चढ़ा सकते हैं केजरीवाल!

अरविंद केजरीवाल

Source- TFIPOST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विराट विजयोपरांत के बाद अपने भाषण में कहा कि पंजाब को अलगाववादी राजनीति से दूर रखना है। शायद, यह कथन 117 सदस्यीय पंजाब के विधानसभा में 92 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी को संदर्भित करते हुए कहा गया था। AAP की प्रचंड जीत राष्ट्रीय हितों और अखंडता के संदर्भ में कई चिंता और चेतावनी के साथ आई है। अतः पंजाब के कई बड़े नेता आप की जीत के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में चिंतित हैं। पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है। अतीत में इसे आतंकवाद का खामियाजा भुगतना पड़ा है। खालिस्तानी अलगाववाद पाकिस्तान और दुनिया भर में उसके समर्थकों द्वारा एक बार फिर से पुनर्जीवित होता दिख रहा है। कनाडा, जर्मनी, ब्रिटेन और अन्य देशों में खालिस्तान समर्थक पंजाब को एक बार फिर हिंसा के मुहाने पर धकेलना चाहते हैं।

यह वह बात है जो बहुतों को चिंतित करता है। आम आदमी पार्टी 2017 से खालिस्तानियों के साथ मिलीभगत कर पंजाब में अशांति फैला रही है! केजरीवाल की महत्वाकांक्षा का खुलासा कुमार विश्वास भी कर चुके हैं। जिसमें उन्होंने कहा था कि जब पंजाब में खालिस्तानी ताकतों का समर्थन करने के लिए उन्होंने केजरीवाल को रोका तो केजरीवाल ने कहा कि या तो वह पंजाब के मुख्यमंत्री बनेंगे या फिर स्वतंत्र खालिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री। उनके इसी कथन से उनके कुटिल नियत और गलत उद्देश्य का पर्दाफाश होता है। अगर ऐसा वास्तव में है तो यह अरविंद केजरीवाल की भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता के प्रति प्रतिबद्धता के बारे में बहुत कुछ बताता है।

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केजरीवाल का खतरनाक अतीत

जिन लोगों ने केजरीवाल के राजनीतिक पथ का अनुसरण किया है, वे जानते हैं कि केजरीवाल सत्ता के लिए देश की संप्रभुता से भी समझौता कर सकते हैं। जैसा कि वर्ष 2018 में टीएफआई द्वारा रिपोर्ट किया गया था कि एक बार प्रतिबंधित दल खालसा के सदस्य गुरचरण सिंह ने दावा किया था कि उनके समूह ने 2017 के पंजाब राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान आप का प्रचार किया और यहां तक ​​​​कि आप को वित्त पोषित भी किया। वर्ष 2017 में पंजाब में प्रचार के दौरान केजरीवाल खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट (KLF) के कार्यकर्ता गुरविंदर सिंह के घर में भी रहे थे। जैसा कि टीएफआई द्वारा बताया गया है कि वर्ष 2018 में पटियाला से आप के पूर्व सांसद धर्मवीर गांधी खालिस्तान जनमत संग्रह के समर्थन में सामने आए थे।

कट्टरपंथी तत्वों को उकसाने वाले एक आपत्तिजनक बयान में उन्होंने कहा था कि लोगों को एक अलग मातृभूमि की मांग करने का लोकतांत्रिक और कानूनी अधिकार है। उनके इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए केजरीवाल ने कठिन श्रम भी किया है। शायद इसीलिए पंजाब में केजरीवाल प्रचंड बहुमत से जीते हैं, अन्यथा किसान आंदोलन का समर्थन तो कांग्रेस और अकाली दल के नेताओं ने भी किया था और विकास के मुद्दे पर भी पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कोई अप्रत्याशित झंडे भी नहीं गाड़े पर, फिर भी जीत गए। मतलब साफ है, केजरीवाल ने खालिस्तानीयों का समर्थन प्राप्त कर पंजाब में आम आदमी पार्टी के लिए अंडर करेंट का निर्माण किया और जीत हासिल की।

भगवंत मान – कठपुतली सीएम या केजरीवाल के दास?

गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल फिलहाल एक केंद्रशासित प्रदेश के दिखावे के मुख्यमंत्री हैं। दिल्ली के “मुख्यमंत्री” बन कर केजरीवाल वास्तव में संतुष्ट नहीं हैं! वह कुछ बड़ा और बेहतर चाहते हैं। दिल्ली में उनके पास व्यावहारिक रूप से कोई शक्ति नहीं है। उनके लिए सबसे बड़ा अभिशाप यह है कि उसके नियंत्रण में कोई पुलिस बल नहीं है। अतः केजरीवाल दिल्ली के बाहर के किसी राज्य पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए आतुर हैं और वह राज्य है-पंजाब।। लेकिन भगवंत मान ने झपट्टा मार कर राज्य में अपने लिए सीएम की कुर्सी सुरक्षित कर ली है। अब केजरीवाल ऐसी स्थिति में हैं, जहां आप ने पंजाब तो जीत लिया है, लेकिन केजरीवाल दोयम दर्जे के सीएम बन चुके हैं। भगवंत मान अब पंजाब के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। वो या तो कठपुतली सरकार चलाएंगे, जो अरविंद केजरीवाल के नियंत्रण में होगी या पार्टी के भीतर अरविंद केजरीवाल को कमतर करने के लिए लगातार कदम उठाएंगे! अरविंद केजरीवाल पंजाब को दिल्ली से ज्यादा चाहते हैं। वो अधिकार और शक्ति वाले राजनेता बनना चाहते हैं। उनके लिए दुख की बात यह है कि भगवंत मान आप के भीतर सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में उभरे हैं और संभावना है कि वह केजरीवाल से स्थायी आदेश लेने से इनकार कर दें।

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