अपने सुना होगा कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे लेकिन क्या हो अगर डांट के बाद कोतवाल चोर को सबक सीखा दे? वही होगा जो तृणमूल कांग्रेस के अभिषेक बनर्जी के साथ हो रहा है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को तृणमूल के अखिल भारतीय महासचिव और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रूचिरा की एक याचिका खारिज कर दी, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उन्हें समन चुनौती दी गई थी और उन्हें कोयला खनन घोटाले में कलकत्ता में गवाही देने की अनुमति दी गई थी।
न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर ने चार राज्यों में भाजपा की जीत के एक दिन बाद याचिका खारिज कर करते हुए कह दिया कि ED के सामने अभिषेक को जाना ही होगा।
1300 करोड़ के घोटाले का है आरोप!
ED ने अभिषेक पर 1,300 करोड़ रुपये के अवैध कोयला खनन कारोबार में शामिल होने का आरोप लगाया है। ED ने रिमांड नोट में आरोप लगाया कि राज्य सत्ता में राजनीतिक दल के “संरक्षण” के तहत कुछ अवैध खनन फल-फूल रहे थे।
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ईडी ने अपने बयान में कहा, ‘यह खुलासा हुआ है कि दो साल से भी कम समय में मांझी ने अवैध कोयला खनन के जरिए 1,352 करोड़ रुपये की कमाई की है। जांच में राजनीतिक संरक्षण और अच्छी तरह से नेटवर्क की एक गहरी प्रणाली का भी पता चला है जिसके द्वारा इन अवैध गतिविधियों को बेशर्मी से अंजाम देने के लिए सिस्टम को उलट दिया गया था। ”
पुलिसकर्मी ने एजेंसी को मुख्य संदिग्ध, माझी उर्फ लाला, एक स्थानीय व्यापारी, विनय, एक टीएमसी युवा विंग का नेता और उसके भाई विकास मिश्रा तक पहुँचाया था। ED ने कहा था कि यह लिंक अभिषेक बनर्जी के परिवार तक जाता है।
ED के खिलाफ कोर्ट गए
आरोप लगने के बाद बेशर्मी दिखाते हुए बनर्जी दम्पति कोर्ट गए। दंपति उन तक पहुंचने से पहले ईडी के समन के सार्वजनिक होने से भी नाखुश थे और उन्होंने ED पर दुर्भावनापूर्ण इरादों के साथ अपनी शक्तियों का उपयोग करने का आरोप लगाया।
मतलब बनर्जी दम्पति के अनुसार, ED ने ऐसे आरोप लगाकर छवि से साथ खिलवाड़ किया। उन्होंने दावा किया कि चूंकि याचिकाकर्ता कोलकाता के निवासी हैं इसलिए ED अधिकारियों द्वारा केवल कोलकाता में PMLA की धारा 50 के तहत उनकी जांच की जा सकती है।
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कोर्ट में दुत्कार दिया
उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए तर्क दिया कि धन शोधन निवारण अधिनियम की धारा 50 के तहत न केवल गवाहों को समन जारी किया जा सकता है बल्कि उनकी उपस्थिति भी सुनिश्चित की जा सकती है।
दलीलों को खारिज करते हुए, अदालत ने माना कि पीएमएलए के तहत प्राधिकरण CrPC के तहत विशेष जांच की अनिवार्यता के आधार पर अधिकारी स्वाभाविक रूप से अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करेंगे।
अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 160, गवाहों तक सीमित है या जो भविष्य में आरोपी बन सकते हैं। पीएमएलए की धारा 50 बड़े स्तर पर काम करती है जिसमें न केवल गवाहों को बुलाने की शक्ति शामिल है बल्कि किसी भी व्यक्ति को बुलाने और लागू करने की शक्ति शामिल है।
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भनभना गए है TMC वाले
तृणमूल के सूत्रों ने कहा कि पार्टी घटनाक्रम पर कड़ी नजर रखे हुए है, क्योंकि उसके कई नेताओं की केंद्रीय एजेंसियों के साथ अतीत में मामला हो चुका है। तृणमूल नेताओं का एक वर्ग इस बात से चिंतित है कि उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर अपनी जोरदार जीत के बाद, नेताओं को गिरफ्तार करने या उन्हें खेमे बदलने के लिए मजबूर करने के लिए केंद्र सरकार के तहत एजेंसियों का उपयोग करने की कोशिश करेगी।
तृणमूल के एक नेता ने आरोप लगाया, “बंगाल उन कुछ राज्यों में से एक है जहां भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी लेकिन फिर भी सरकार बनाने के लिए पर्याप्त विधायक नहीं जुटा सके। यहां तक कि इसने उम्मीदवारों को पाने के लिए हमारी पार्टी में विभाजन और दलबदल भी किया, क्योंकि उनके पास पर्याप्त संख्या नहीं है।”
कहीं की बात कहीं ले जाने का कोई मतलब नहीं है। तृणमूल कांग्रेस ने भ्रष्टाचार किया है, शायद तभी वो इतना डर रही है वरना निष्पक्ष जांच से क्या घबड़ाना? अभी तो जो हो रहा है, उसे चोर की दाढ़ी में तिनका माना जाएगा।
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