राजनीति में सत्ता का संघर्ष हमेशा सुनाई पड़ता है और नेताओं में सुख- सुविधाओं को लेकर एक अलग ही लालसा रहती है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां नेताओं का व्यक्तिगत लोभ उजागर हुआ है। ऐसी ही एक घटना है जब उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव को अपना सरकारी आवास खाली करने के लिए कहा गया था जिसपर वो आना कानि करने लगे थे, वहीं एक बार फिर एक और राजनेता शरद यादव को अपना सरकारी बंगला छोड़ने का निर्देश दिया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव को राष्ट्रीय राजधानी में उनके कब्जे वाले सरकारी बंगले को 15 दिनों के भीतर खाली करने का निर्देश देते हुए कहा कि चूंकि उन्हें 2017 में राज्यसभा सांसद के रूप में अयोग्य घोषित किया गया था, इसलिए इसका कोई औचित्य नहीं हो सकता की वो आवास में रहे।
उच्च न्यायालय ने दिसंबर, 2017 में पारित अंतरिम आदेश को जारी नहीं रखने का फैसला किया, जिसने यादव को एक सांसद के कार्यालय भत्तों और सुविधाओं का लाभ उठाने की अनुमति दी थी। हालांकि, जून 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को आंशिक रूप से संशोधित किया और उन्हें केवल अपने आवास को बनाए रखने की अनुमति दी, और कहा कि वह वेतन और अन्य लाभों के हकदार नहीं हैं।
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आपको बता दें कि शरद यादव अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का कद बढ़ाने के बजाय, शरद यादव देश को तथाकथित वांछित विपक्ष बनाने के लिए अपनी ही राजनीतिक पार्टी का त्याग करने के लिए तैयार हैं क्योंकि अब उनका न कोई राजनीतिक जनाधार बचा है और कुछ दिनों में तो उनका घर भी हाथ से जाने वाला है।
गौरतलब है कि शरद यादव ने अपनी पार्टी का विलय लालू यादव की राजद में करने का ऐलान किया है। 74 वर्षीय शरद यादव ने एक बयान में कहा, “देश में मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए बिखरे हुए जनता परिवार को एक साथ लाने के मेरे नियमित प्रयासों की पहल के रूप में यह कदम (विलय) जरूरी हो गया है।’ यह तो निकट भविष्य में देखने वाली बात होगी कि शरद यादव और लालू यादव की जोड़ी क्या कमाल करती है पर आज के हालिया परिदृश्य में दोनों नेता नेपथ्य में है और उनकी पार्टी का वजूद भी भाजपा के केंद्र में आने के बाद प्रभावशाली नहीं रहा है। वहीं शरद यादव न राजनीति के रहे है और न हीं घर के क्योंकि कानून के हिसाब से उनको तो अपना आवास खाली करना हीं पड़ेगा।
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