रूस पर है अमेरिकी प्रतिबंध, अब भारत को अरब-ईरान से तेल छोड़ रूस की ओर मुड़ना चाहिए

OPEC से निर्भरता कम कर सकता है भारत

PM Modi

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जब बिना दांत के जानवर को अचानक मालूम चलता है कि उसके पास जहर की शक्ति है, तो वह सांप की तरह हरकतें करने लगता है। OPEC से बढ़िया इस बात का शायद ही कोई अन्य उदाहरण हो। जब तक वहां तेल नहीं खोजा गया था, तब तक ऊंट हांकने के अलावा उन्हें कहां कुछ आता था? फिर तेल मिल गया तो गुंडई भी बढ़ गई। पहले तो भारत जैसे देशों को तेल बेचकर पैसा कमाया। फिर ज्यादा पैसा हुआ तो अपने ही ग्राहक देशों में आतंक वित्तपोषण से लेकर घेराबंदी तक, हर जगह आस्तीन के सांप वाली हरकत को जारी रखा। इससे भी मन नहीं भरा तो मनमाने ढंग से तेल की कीमतों के साथ खिलवाड़ शुरू कर दिया। भारत इस स्थिति में कई बार बुरे तरीके से परेशान हुआ है।

एक ओर जहां अरब देश का यह हाल है तो दूसरी ओर रूस-यूक्रेन संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। लगातार बढ़ रहे तनाव के बीच रूस के प्रमुख संसाधनों की कीमतों में रिकार्ड तोड़ बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। इन प्रमुख संसाधनों में गैस और पेट्रोल दो बड़े नाम हैं। तनाव के दौरान जब से तमाम बड़े राष्ट्रों द्वारा रूस पर तमाम प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं, तब से रूस का बाजार थोड़ा सा प्रभावित हुआ है। बड़े देशों के डर से एक समय के वफादार साथी भी अब रूस से तेल नहीं खरीद रहे हैं। ऐसे में अब समय आ गया है भारत को अरब-ईरान से अपनी निर्भरता कम कर, रूस की ओर मुड़ना चाहिए।

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रूस और भारत का ऊर्जा व्यापार

अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि रूसी सैनिकों द्वारा यूक्रेन पर कोई भी आक्रमण प्रतिबंधों और प्रतिशोध को ट्रिगर कर सकता है, जो ईंधन की आवाजाही को बाधित करेगा और खरीदारों को प्रभावित करने वाली ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित करेगा। भारत ने वर्ष 2021 में रूस से 1.8 मिलियन टन थर्मल कोयले का आयात किया था, जो वर्ष 2020 में आयात किए गए 2.5 मिलियन से कम है। भारत के थर्मल कोयले के आयात में रूस की हिस्सेदारी 2021 में 1.6% से गिरकर 1.3% हो गई है। भारत ने 2021 में रूस से 43,400 BPD तेल का आयात किया, जो उसके कुल आयात का लगभग 1% है। रूस के प्राकृतिक गैस निर्यात में भारत की हिस्सेदारी लगभग 0.2% है। इसमें सबसे बड़ा हाथ गेल का है, क्योंकि गेल (इंडिया) लिमिटेड ने 2018 में शुरू होने वाले सालाना 2.5 मिलियन टन LNG खरीदने के लिए गज़प्रोम के साथ 20 साल का सौदा किया है।

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भारत और रूस में है असीम संभावनाएं

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाणिज्य मंत्रालय के वेबिनार में चेतावनी दी थी कि आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान वैश्विक अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगा। पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के महासचिव सौरभ सान्याल ने भी एनडीटीवी से कहा, “यूक्रेन पर रूसी हमले और रूस पर लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का रूस से भारत में आयातित कच्चे तेल की आपूर्ति पर असर पड़ेगा।” दूसरी ओर अमेरिका भी रूस को छोड़ नहीं रहा है। वह पाबंदी के पीछे हाथ धोकर पड़ गया है। बाइडन प्रशासन रूस पर आर्थिक दबाव डालने के लिए तेजी से आगे बढ़ा है और रूस को वैश्विक वित्तीय बाजारों से काट दिया है। पुतिन का सैन्य हमला रुकने के कोई संकेत नहीं दिख रहा है। नागरिक बुनियादी ढांचे को लक्षित भारी बमबारी और मिसाइल हमलों ने एक खतरनाक मानवीय संकट पैदा कर दिया है।

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अमेरिका का प्रतिबंध

राजनीतिक स्पेक्ट्रम से नाराज अमेरिकी सांसद सार्वजनिक रूप से प्रशासन से पुतिन को मारने का आग्रह कर रहे हैं और यह सामान्य भी नहीं होगा। यह हमला वहां होगा जहां यह सबसे ज्यादा दर्द होता है, यानी कि रूस के विशाल ऊर्जा क्षेत्र पर प्रतिबंध। पिछले कुछ दिनों में कई प्रस्ताव भी पेश किए जो इस संकट के दौरान अमेरिका में रूसी तेल आयात को समाप्त कर देंगे। पिछले हफ्ते यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद कई देशों ने रूसी कंपनियों, बैंकों और व्यक्तियों के खिलाफ व्यापक प्रतिबंध लगाए और वैश्विक बड़ी कंपनियों ने रूस में कई मिलियन डॉलर के पदों को छोड़ने की योजना की घोषणा की।

अमेरिकी कच्चे तेल की कीमतें बुधवार को एक दशक से अधिक समय में अपने उच्चतम बिंदु पर पहुंच गई, क्योंकि OPEC+ राष्ट्रीय उत्पादकों के समूह ने अनियोजित आपूर्ति को जोड़ने से रोक दिया। वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड के लिए फ्रंट मंथ फ्यूचर्स 6.5 फीसदी बढ़कर 110 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर था, जो पहले के कारोबार में 112.50 डॉलर से अधिक था। यह मई 2011 के बाद से उच्चतम स्तर है। WTI ने वर्ष की शुरुआत $76 के आसपास की और रूस-यूक्रेन के शुरू होने के बाद से 20% से अधिक चढ़ गया।

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OPEC से निर्भरता कम कर सकता है भारत

सरकार के नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण ने इस धारणा पर 8-8.5% की वृद्धि का अनुमान लगाया है कि तेल की कीमतें $70-$75 प्रति बैरल के बीच बनी रहेंगी। ऊर्जा विशेषज्ञ, नरेंद्र तनेजा का कहना है कि “तेल की कीमतें 68-70 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हमारी अर्थव्यवस्था के लिए बुरी खबर है।” ओपेक और उसके तेल उत्पादक सहयोगियों के नेता बुधवार को तय करेंगे कि कितना तेल बाजार में छोड़ना है, जबकि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने बाजारों को चकनाचूर कर दिया, गठबंधनों को नया रूप दिया, नागरिकों को मार डाला और कच्चे तेल की कीमत आसमान छू गई। यू.एस., यूरोपीय संघ और अन्य सरकारों ने पहले से ही तंग बाजारों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए ऊर्जा व्यापार को प्रतिबंधों से छूट दी, लेकिन यह विफल रहा है। यानी कि बड़े बाजार इस समय रूस से दूर हैं। अमेरिका के प्रतिबंध से बिक्री कम होगी तो कीमतों में गिरावट होगी। ऐसे में भारत रूस के साथ अपने सम्बन्धों को बढ़िया कर सकता है। हम आज भी रूस से एक प्रतिशत तेल आयात करते हैं। हम उसे 10 प्रतिशत करके रूस की मदद कर सकते हैं और ईस्टर्न ब्लॉक को मजबूत कर सकते हैं और साथ ही इसके सहारे हम OPEC पर भारत की निर्भरता कम कर सकते हैं।

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