भागवत के बयान से मिले संकेत, दक्षिणी राज्यों पर है RSS की नजर

धार्मिक असहिष्णुता पर भागवत के बयान से सनसनी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने निर्णय सामूहिक रूप से लेने के लिए जाना जाता है। इसी निर्णय लेने की प्रक्रिया में हर वर्ष अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का आयोजन होता है जिसके अंतर्गत दायित्व निर्धारण, दायित्व परिवर्तन और विस्तार जैसे निर्णय लिए जाते हैं। इस वर्ष भी उसी परिधि का भाग बनते हुए अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा गुजरात में अहमदाबाद के पास हुई। इस बार चर्चा का केंद्र कट्टरता से कैसे निपटा जाए वो रहा और उसी पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने सभी प्रतिनिधियों को संबोधित भी किया। जिस प्रकार धार्मिक असहिष्णुता और अवैध धर्मांतरण का मुद्दा सभा में उठाया गया जिससे यह प्रतीत होता है कि संघ की नजर दक्षिणी राज्यों पर है।

तीन दिवसीय बैठक में कई बिंदुओं पर हुई बातचीत

ये तीन दिवसीय बैठक शुक्रवार को गुजरात में अहमदाबाद के पास शुरू हुई। पिराना गांव में आयोजित हुए कार्यक्रम में सरसंघचालक (आरएसएस प्रमुख) मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले सहित देशभर के लगभग 1,200 प्रमुख नेता या पदाधिकारी शामिल हुए। बैठक के पहले दिन मीडिया को संबोधित करते हुए, आरएसएस के सह सरकार्यवाह (संयुक्त महासचिव) मनमोहन वैद्य ने कहा, बैठक के प्रमुख क्षेत्रों में से एक संगठन के आधार का विस्तार है। उन्होंने कहा कि आरएसएस देशभर में लगभग 60,000 दैनिक शाखाएं चलाता है और 97.5 प्रतिशत शाखाओं ने COVID-19 संबंधित प्रतिबंधों में ढील के बाद फिर से काम करना शुरू कर दिया है।

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उन्होंने कहा, “इन 60,000 शाखाओं में भाग लेने वालों में स्कूल या कॉलेज के छात्रों का 61 प्रतिशत हिस्सा होता है। इससे पता चलता है कि आरएसएस में रुचि लेने वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही है। देश के कुल 2,303 शहरों में से 44 प्रतिशत में शाखाएं हैं। यह दर्शाता है कि हमारा प्रसार बढ़ रहा है।

धरातल पर काम करने के लिए जाना जाता है संघ

संघ शाखा स्तर से धरातल पर काम करने के लिए जाना जाता है, शाखाएं उसका मूल हैं। ऐसे में धर्मभेद करने वाले एजेंडाधारियों के विरुद्ध इस बार प्रतिनिधि सभा में नकेल कसने के लिए मोहन भागवत ने कहा कि, देश में संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिक उन्माद के कृत्य फैलाए जा रहे हैं। प्रतिनिधि सभा में प्रस्तुत की गई वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया कि,  अपने ‘दुर्भावनापूर्ण’ एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी तंत्र में प्रवेश करने के लिए एक विशेष समुदाय हाथ पैर मार रहा है। रिपोर्ट में ऐसे तत्वों से बचाव के लिए उनकी ‘योजनाओं’ के खिलाफ आगाह किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में विभाजनकारी तत्वों के बढ़ने की चुनौती भी खतरनाक है। इसमें कहा गया कि ‘जैसे-जैसे जनगणना वर्ष नजदीक आ रहा है, इस तरह का प्रचार करके एक समूह को उकसाने के भी मामले आए हैं कि ‘वे हिंदू नहीं हैं।’

यह कोई नयी बात नहीं है जब संघ ने कट्टरता के विरुद्ध बिगुल फूंक दिया है, उसकी सबसे बड़े काडर का मूल मंत्र ही कट्टरता का समूल नाश करना रहा है। कुछ क्षणों के लिए ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कहीं संघ भी सेक्युलर वाले ढांचे में न ढल रहा हो परंतु ऐसा नहीं है। संघ आज भी दृढ़तापूर्वक अपने ध्येय के पीछे लगा हुआ है। जिस प्रकार प्रतिनिधि सभा में दक्षिण राज्यों से उत्पन्न हुए हिजाब विवाद से लेकर केरल में हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं की हत्या के बारे में चर्चाएं हुईं इससे यह स्पष्ट दिखता है कि संघ अपने मूल को कभी भी अपने से अलग नहीं करने वाला है।

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हिन्दू और हिंदुत्व दोनों उसके लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितनी शाखा। सभा में दक्षिण राज्यों से उत्पन्न हुए मुद्दों ने यह परिलक्षित कर दिया कि अब संघ दक्षिण राज्यों में अपनी पैंठ बनाने के लिए कमर कस चुका है।

स्वयंसेवकों और कार्यकर्ताओं पर हो रहे हैं खूनी षड्यंत्र

बीते लंबे समय से दक्षिण राज्यों में संघ और भाजपा से जुड़े स्वयंसेवकों और कार्यकर्ताओं पर हो रहे खूनी षड्यंत्र से खिन्न संघ ने अब ‘सांप्रदायिक उन्माद, प्रदर्शन, सामाजिक अनुशासन का उल्लंघन, संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में परंपराओं का उल्लंघन, मामूली घटनाओं को भड़काकर हिंसा भड़काना, अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देने जैसे कृत्यों के विरुद्ध अपना पक्ष और मजबूती से रखना प्रारंभ कर दिया है जिसकी शुरुआत इन्हीं दक्षिण राज्यों से की है।

रिपोर्ट में हिंदुओं के ‘निरंतर और सुनियोजित’ धर्मांतरण के बारे में भी चिंता जताई। रिपोर्ट में कहा गया, ‘पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश समेत देश के विभिन्न हिस्सों में हिंदुओं के सुनियोजित धर्मांतरण के बारे में निरंतर सूचनाएं आई हैं। इस चुनौती का एक लंबा इतिहास है, लेकिन हाल में नए समूहों को परिवर्तित करने के विभिन्न नए तरीके को अपनाया जा रहा है।’ रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा और पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले को रोकने की घटना पर भी चिंता व्यक्त की गई।

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हिंसा, जबरन धर्म परिवर्तन यह वो प्रमुख बिंदु हैं जिनसे समाज इन दिनों सबसे ज़्यादा त्रस्त है, स्वयं संघ इस बात को स्वीकार कर चुका है। अब इसी खाई को खत्म करने के लिए संघ ने अपने स्वयंसवकों, विस्तारकों, प्रचारकों सभी को अपने अपने दायित्व दे दिए हैं और प्रमुख रूप से दक्षिण राज्यों में कैसे भगवा सरकार हो उसका रोडमैप भी तय कर लिया है।

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