TRP TRP TRP, इस TRP की माया की होड़ में पत्रकारिता का स्वरूप इतना बदल गया है कि वो पत्रकारिता लगती ही नहीं है। इस अंधी दौड़ में भारतीय मीडिया अपने स्तर को दोयम दर्ज़े का बनाने में कोई कसर छोड़ती दिख नहीं रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मौजूदा समय में चल रहा रूस-यूक्रेन विवाद है जिसके बारे में भारतीय मीडिया इतनी चिंतित हो गई है जितना कोई दूसरा विदेशी मीडिया समूह नहीं होगा।
न्यूज़ स्टूडियो में बैठे पेनलिस्ट और पत्रकार कुछ अधिक ही डरे सहमे हैं!
जब से रूस-यूक्रेन विवाद अपने चरम पर पहुंचा है, मीडिया में उसके अतिरक्त और कोई बात हो ही नहीं रही है। वो पत्रकार भी इतने सहमे और विवश नहीं दिख रहे हैं जो वहां से ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे हैं बल्कि न्यूज़ स्टूडियो में बैठे पेनलिस्ट और पत्रकार ऐसी ऐसी प्रतिक्रियाएं दें रहे हैं जैसे उन्हें तोप के सामने खड़ा कर दिया गया हो और तोप कभी भी फट जाए। खबरों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर अपने एजेंडे को बढ़ावा देना आज भारतीय पत्रकारिता का हिस्सा बन चुका है।
देश में पत्रकारिता का स्तर इतना गिर चुका है कि कभी आतंकवादी को हेड मास्टर का बेटा कहा जाता है तो कभी आतंकवादी के नाम के साथ ‘जी’ लगा कर उन्हें संबोधित किया जाता है। इसी पत्रकारिता में आज कल एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है। बड़े बड़े मीडिया संस्थान और प्रतिष्ठित समाचार पत्रों द्वारा ब्रेकिंग देने की ऐसी होड़ मची रहती है कि अर्थ का अनर्थ करे बिना उनसे रहा ही नहीं जाता, न जाने तड़प ये कैसी है?
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रूस-यूक्रेन के झगड़े की ब्रेकिंग कहीं छूट न जाए!
बीते एक सप्ताह से भारतीय मीडिया बस एक ही खबर के पीछे भाग रही है, यूक्रेन-रूस का झगड़ा और उसकी ब्रेकिंग वो भी 24×7. इस जुगत में कि एक चैनल हटा दूसरा लगाते ही कोई और खबर मिलेगी, दर्शक टीवी के सामने बैठा रहता है और इंतज़ार करता रहता है कि अब शायद भारत से जुडी खबरें देखने को मिलेंगी पर दर्शक रिमोट के बटन दबाते हुए बस इंतज़ार ही करता रह जाता है कि ‘उसका टाइम आएगा।’ वो टाइम आए न आए हर मिनट भारतीय मीडिया चैनलों पर खबरें आ जाती हैं कि पुतिन के मन में क्या चल रहा है और वलोडिमिर ज़ेलेंस्की की अगली रणनीति क्या होगी।
एनिमेशन की हद देखिए कि न्यूज़रूम से लड़ाके और तोप के गोले ऐसे दागे जाते हैं जैसे अभी ही विश्व युद्ध छेड़ सभी प्रतिद्वंद्वी चैनलों पर अंतिम सलामी पेश की जाएगी। टीवी पत्रकार एक बार के लिए सांस लेना भी ऐसे त्याग रहे हैं जैसे एक मिनट में कौन सी ब्रेकिंग न्यूज़ ब्रेक करने से चूक जाएंगे और जिसके कारण संपादक महोदय उन्हें अपना बोरिया-बिस्तर पैक करने का फ़तवा सुना देंगे।
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च्विंगम की भांति मामले को खींचना बेवकूफ़ी!
यूक्रेन-रूस के बीच चल रहे इस संघर्ष को तीसरे विश्वयुद्ध की आहट बता चुके भारतीय मीडिया चैनल शायद यह भूल गए हैं कि इसके अतिरिक्त भी दुनिया है। जहां तक भारतीयों की बात करें तो उन्हें नहीं पड़ी कि यूक्रेन का राष्ट्रपति मसखरा था या क्या था। उनको तो बस इतना जानना था कि भारतीय रणनीतिक, आर्थिक क्षेत्र में इस विवाद से क्या-क्या रिक्तताएं पैदा हो सकती हैं और वो सब उनको पता चल चुका है। च्विंगम की भांति मामले को खींचना बेवकूफ़ी है। जहां इस समय भारत के सबसे बड़े सूबे में चुनाव चल रहे हैं ऐसे में उस बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की चुनावी ख़बरों को ऐसे छेक के फेंक देना जैसे दूध में से मक्खी निकलकर फेंकी दी जाती है और ऐसा होना भारतीय पत्रकारिता पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है। स्वयं एक भारतीय होने के नाते यदि उसे अपने देश के अतिरिक्त चहुओर की गाथा सुनाई जाए, दर्शक ऐसे न्यूज़ चैनल को देखना उसी क्षण बंद कर दें, सही बात तो यह है कि और भी मुद्दे हैं जिनकी बात ही नहीं हो रही है। लगे हैं धड़ल्ले से रूस-यूक्रेन, यूक्रेन-रूस करने में।
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यूं तो सितारों से आगे जहां और भी हैं, पर भारतीय मीडिया के सितारे उसकी इसी हठप्रभता के कारण गर्दिश में नज़र जा रहे हैं। उसको मुद्दाविहीन होने का ऐसा चस्का चढ़ा है कि वो अब भेड़चाल चलके अपनी और चैनल की पूर्ति करता दिख रहा है। जनता को क्या जानना है, क्या देखना है वो अब स्वयं निर्धारित कर रहा है जो उसके लिए घातक सिद्ध हो सकता है। ऐसे में भारतीय मीडिया समूहों को संभल जाने की आवश्यकता है क्योंकि जब दर्शक और पाठक ही ऊब जाएंगे तो ऐसे में कौन सा मीडिया संस्थान चल पाएगा। मीडिया समूहों को समझना होगा कि उसका Bread & Butter यही पाठक और दर्शक है, यह छिटका तो सब छिटक जाएंगे और कहां लटके पाएंगे कोई नहीं जानता।