दिल्ली दंगों के दौरान हुए नुकसान की वसूली के संदर्भ में दिल्ली HC ने केंद्र और राज्य सरकार से किया सवाल

अब योगी शासन के तर्ज पर दिल्ली में भी अतिक्रमणकारियों से होगी वसूली!

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सत्ता शक्ति निष्पक्षता और निस्वार्थ भाव से चलती है इन सिद्धांतों में जहां भी स्वार्थ पड़ता है, शासन विकृत हो जाता है और तुष्टीकरण को जन्म देता है। इन बातों का ख्याल तब आया, जब हाल ही में दिल्ली के माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अधिवक्ता हिनू महाजन ने माननीय न्यायालय से दिल्ली सरकार को निर्देशित करने की गुहार लगाई ताकि वह सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की वसूली कर सकें।

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक याचिका पर नोटिस जारी कर भी दिया, जिसमें फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के साथ-साथ नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय रजिस्टर के विरोध में हुई सार्वजनिक संपत्ति के विनाश में शामिल लोगों से नुकसान की वसूली की मांग की गई थी। इस याचिका का नाम हिनू महाजन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की खंडपीठ द्वारा केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी किया गया था। याचिका को आगे की सुनवाई के लिए 21 सितंबर को सूचीबद्ध किया गया है।

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याचिकाकर्ता की गुहार

याचिका अधिवक्ता और भारतीय जनता पार्टी के महिला मोर्चा (महिला विंग) की सदस्य हिनू महाजन और कानून की छात्रा अमनदीप सिंह गहलोत ने दायर की है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता युद्धवीर सिंह चौहान भी पेश हुए। याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रीय राजधानी में विभिन्न स्थानों का दौरा किया था और दंगों के दौरान वे सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान को देखकर हैरान और दुखी थे। इसलिए, पुलिस और अन्य अधिकारियों को जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान करने के लिए न्यायालय द्वारा एक निर्देश पारित करने की मांग की गई।

याचिका में मांग की गई है कि सरकार नुकसान का आंकलन करने और पहचाने गए व्यक्तियों से नुकसान की वसूली सुनिश्चित करने के लिए एक आयोग का गठन करे। इसने डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज बनाम स्टेट ऑफ एपी में फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि शीर्ष अदालत ने विरोध के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान की वसूली के लिए पहले ही कई दिशानिर्देश पारित किए हैं।

ऐसी स्थिति में यह वांछनीय है कि परमादेश और/या इसी प्रकार के कोई अन्य उपयुक्त रिट, आदेश या निर्देश जारी किया जाए, जिससे दिल्ली में सीएए के विरोध के दौरान हुए नुकसान की जांच के लिए एक स्वतंत्र मशीनरी की स्थापना की जाए और अपराधियों से वसूली की जाए। याचिका में कहा गया है कि दिल्ली में सीएए के विरोध के दौरान हुए नुकसान और उससे संबंधित मुआवजे का पुरस्कार देने और डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज बनाम स्टेट ऑफ एपी में उल्लिखित सभी शक्तियों और उपायों का उपयोग करने की अनुमति सरकार को दी गई है।

हालांकि याचिकाकर्ता ने मामले में कई राजनीतिक दलों को प्रतिवादी बनाया था। उच्च न्यायालय ने कहा कि पार्टियों का नाम हटा दिया जाना चाहिए। पार्टियों के एक संशोधित ज्ञापन दायर करने के लिए भी न्यायालय ने कहा।

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योगी से सिखो

बीते दिनों कुछ समाचार पोर्टलों ने एक झूठी खबर खूब प्रचारित की जिसमें कहा गया था कि अदालत ने यूपी सरकार से सीएए विरोधी दंगाइयों से बरामद राशि वापस करने के लिए कहा है। इंडिया टुडे ने तो एक रिपोर्ट में उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह वसूली नोटिस के बाद एकत्र की गई पूरी राशि वापस करे, जो कि शीर्ष अदालत द्वारा आलोचना के बाद राज्य द्वारा कथित रूप से सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को वापस ले लिया गया था। हालांकि, आदेश के दूसरे हिस्से का उल्लेख नहीं किया गया था।

हालांकि, अदालत के फैसलों और झूठे प्रोपेगैंडा के आगे योगी सरकार झुकी नहीं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने सीएए के विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसक भीड़ द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान से बहुत सख्ती से निपटा था और स्पष्ट किया था कि हिंसा भड़काने वालों की संपत्ति को न सिर्फ जब्त किया बल्कि हर्जाना भी वसूला।

दंगाइयों से हर्जाना वसूलने में आनेवाले न्यायालय प्रतिबंधों के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान वसूली अधिनियम, 2020 लेकर आए। कानून के अनुसार, राज्य विरोध के दौरान हुए नुकसान की जांच और मुआवजा प्रदान करने के लिए दावा अदालतों की स्थापना करेगा। योगी सरकार के विधि, व्यवस्था और सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धताओं को देखते हुए न्यायालय और दिल्ली सरकार दोनो को उनसे सीखना चाहिए।

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