Russian Roulette एक प्रकार का घातक खेल है जिसमें खिलाड़ी रिवॉल्वर में एक गोली रख रिवॉल्वर सिलेंडर को घुमाता है और ट्रिगर खींचता है. यदि गोली चल जाती है तो यह सामने वाले खिलाड़ी को मौत के घाट उतार देगा. आपने फिल्मों और सीरियलों में अक्सर ऐसा होता हुए देखा होगा. भारतीय राजनीति में भी आजकल इसी प्रकार का घातक रूसी खेल चल रहा है. इस खेल में बंदूक ताने नायक की भूमिका में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जबकि सामने खड़ा पात्र उनका विपक्षी. खेल के अनुसार ही नरेंद्र मोदी जब जब ट्रिगर खींचते हैं तब तब भारतीय राजनीति के किसी न किसी पात्र का अंत हो ही जाता है.
दरअसल, जनता अब भोली रही नहीं. वैश्वीकरण के इस जमाने में जनता नरेंद्र मोदी के कल्याणकारी शासन से अवगत हो चुकी है. इतना ही नहीं जनता अब विरोधियों के प्रोपेगेंडा से भी अवगत हो चुकी है. अतः नरेंद्र मोदी पर पूर्वाग्रह और दुराग्रह जनित उछाला गया कोई भी कीचड़ अंततः विरोधियों के लिए घातक सिद्ध होता है. भारतीय राजनीति में शायद ही कोई दूसरा नेता ऐसा हुआ हो, जिसने अपने विरोधियों के राजनीतिक करियर को इस तरह से खत्म किया हो. मौत का सौदागर कहने पर गुजरात से सोनिया खत्म हो गई, हाथ न मिलाने पर बिहार से नीतीश कुमार खत्म हो गए, साथ छोड़ने पर आंध्र प्रदेश से चंद्रबाबू नायडू खत्म हो गए, कश्मीर में महबूबा मुफ्ती नहीं रही. मोदी पर कीचड़ उछालने के बाद कांग्रेस तो अब अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करती दिख रही है. आइए देखते हैं कि नरेंद्र मोदी पर बेवजही आरोप लगाने की वजह सेवह कौन-कौन से नेता और क्षेत्रीय क्षत्रप हैं, जो आज अस्तित्व संकट से जूझ रहे हैं…
चंद्रबाबू नायडू
शुरुआत करते हैं चंद्रबाबू नायडू से. वो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उनके सांसद केंद्र सरकार में मंत्री थे. एक दिन उन्होंने फैसला किया कि वो प्रधानमंत्री बनने के लायक हैं, इसलिए उन्होंने भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया और पीएम मोदी को गालियां दी. आज नायडू न तो प्रधानमंत्री हैं और न ही आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री. वास्तव में वो एक छोटे और महत्वहीन क्षेत्रीय नेता के रूप में सिमट कर रह गए हैं.
बादल परिवार
फिर बादल परिवार का नंबर आता हैं. शिरोमणि अकाली दल एक वंशवादी पार्टी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सैद्धांतिक रूप से हमेशा से राजनीति में वंशवाद का विरोध करते आए हैं, लेकिन हाल के विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी इसके खिलाफ और भी मुखर हुए हैं. फिर भी, भाजपा ने अकाली दल को भाई की तरह माना. बदले में बादल ने क्या किया? उन्होंने यह सोचकर NDA छोड़ दिया कि वे “किसानों के विरोध” का फायदा उठा सकते हैं और आसानी से पंजाब जीत सकते हैं. आज उनमें से कोई भी पंजाब विधानसभा का सदस्य नहीं है और सभी घर बैठे हैं. सांसद-विधायकों का परिवार होने से बादल परिवार एक महत्वहीन राजनीतिक वंश में तब्दील हो गया है.
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उपेंद्र कुशवाहा
वर्ष 2014 में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी RLSP ने बिहार में भाजपा को समर्थन दिया. कुशवाहा की रालोसपा ने बिहार की तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और भाजपा के समर्थन से सभी सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही. उन्हें सिर्फ तीन सांसदों के बावजूद पीएम मोदी ने उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया था. हालांकि, उन्होंने वर्ष 2019 में अधिक सीटों की मांग करते हुए भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया. बाद में, वो अपनी सीट भी हार गए और अब उन्हें अपनी पार्टी का जद (यू) में विलय करना पड़ा है.
नवजोत सिंह सिद्धू
नवजोत सिंह सिद्धू के पास पंजाब का मुख्यमंत्री बनने का अच्छा मौका था. अगर वो धैर्य रखते, तो पंजाब के शीर्ष नेताओं में से एक होते. पर, वो कांग्रेस के जहाज में कूद गए. कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से बेदखल करने के लिए उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व के साथ मिलकर कुटिल चाल चला, लेकिन पंजाब विधानसभा चुनाव ने उन्हें अस्तित्व विहीन कर दिया है. अब सिद्धू को किनारे कर दिया गया है. पहले उन्हें पार्टी के मुख्यमंत्री पद के नामांकन से वंचित कर दिया गया था, और अब, सोनिया गांधी द्वारा पंजाब कांग्रेस प्रमुख के पद से भी उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है. सिद्धू अब पंजाब की राजनीति में कुछ भी नहीं हैं. ऐसे में ध्यान देने वाली बात है कि अगर वो भाजपा के साथ रहते, तो उनका राजनीतिक करियर अभी खत्म नहीं होता और कहां से कहां पहुंच गया होता.
ओपी राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य
ओम प्रकाश राजभर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष हैं. वो योगी आदित्यनाथ की पिछली कैबिनेट में मंत्री थे. उन्होंने भी भाजपा को धोखा दिया और अब बेरोजगार हैं. ठीक वैसे ही स्वामी प्रसाद मौर्य भी कुछ समय पहले तक उत्तर प्रदेश कैबिनेट में एक महत्वपूर्ण मंत्री थे. उनकी बेटी भाजपा सांसद हैं. भाजपा को धोखा देने और समाजवादी पार्टी में शामिल होने के बाद मौर्य अपनी विधानसभा सीट हार गए. ऐसे में इस बात की संभावना तेज है कि जल्द ही उनकी बेटी को भी भाजपा टिकट से वंचित करेगी.
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मुकुल सहनी
ध्यान देने वाली बात है कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान, मुकेश सहनी ने बिहार में भाजपा के लिए स्टार प्रचारक के रूप में प्रचार किया. उन्होंने राजनीतिक पैंतरा बना निषाद समुदाय के लिए एससी आरक्षण की मांग करते हुए 2018 में विकास इंसान पार्टी (VIP) का गठन किया. बिहार में उनके तीन विधायक थे, लेकिन और अधिक सत्ता हिस्सेदारी के लालच में वो भाजपा सरकार को ब्लैकमेल करते हुए राजद के साथ मिलने की धमकी देने लगे. उन्होंने राजद से संपर्क भी किया, लेकिन अगले ही दिन उनके तीनों विधायक भाजपा में शामिल हो गए. अब, वोअपनी पार्टी में एकमात्र नेता बचे हैं. और इन तीनों विधायकों के पार्टी में शामिल होने के साथ ही भाजपा बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई है.
शिवसेना
शिवसेना और ठाकरे परिवार का भी ऐसा ही हश्र हुआ. उन्होंने भाजपा को धोखा दिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मात देने की कोशिश की और अपनी विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों के साथ गठबंधन कर सरकार चला रही है. बाघ की खाल में भेड़िया वाला शिवसेना का अवतार सबके सामने आ चुका है. ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि अगले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना सत्ता से बाहर हो जाएगी और राज्य में कुछ ही सीटों में सिमट जाएगी. इससे सीखी जाने वाली सीख यह है कि प्रधानमंत्री मोदी का कोप कभी न कमाना. मोदी की भाजपा द्वारा राजनीतिक रूप से पूर्ववत किए जाने के बाद कोई भी उबर नहीं पाया है.
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