Kodak कैमरा का ‘शिखर से शून्य तक’ का सफर, कभी पूरे बाजार पर था इस कंपनी का कब्जा

क्या तकनीक में हो रहे बदलाव को नहीं पहचान पाई Kodak ?

Kodak Camera

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पाठकों को याद होगा कि एक समय में हम सभी रील वाले कैमरे का प्रयोग करते थे। रील वाले कैमरे बनाने के मामले में सबसे बड़ी कंपनी कोडेक थी। 1970 के दौर में कोडेक कैमरा बनाने वाली कंपनियों के बीच 80% वैश्विक बाजार पर कब्जा करके सबसे बड़ी कंपनी के रूप में स्थापित हो चुकी थी। कोडेक ने जो बाजार नीति अपनाई उसे रेजर-ब्लेड नीति कहते हैं। जैसे उपभोक्ता अगर एक बार रेजर खरीद लेता है तो उसे हर बार नया ब्लेड खरीदना होता है। उसी प्रकार कोडेक ने उपभोक्ताओं को सस्ते दाम पर कैमरा उपलब्ध कराया और उसके बाद उपभोक्ताओं को रील से लेकर प्रिंटिंग शीट तक सब कुछ कोडेक से खरीदना पड़ता था।

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तकनीक में हो रहे बदलाव को नहीं पहचान पाई Kodak

किंतु जैसा कहा जाता है सृष्टि का एक शाश्वत नियम है परिवर्तन। कोडेक की बाजार नीति भले ही फुलप्रूफ रही हो, किंतु कंपनी समय रहते तकनीक में हो रहे बदलाव को नहीं पहचान पाई। वर्ष 1975 में स्टीवन सैसन ने डिजिटल कैमरे का आविष्कार किया। स्टीवन कोडेक में ही इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे। जब उन्होंने अपनी कंपनी के मालिकों से डिजिटल कैमरे के बारे में बताया तो कंपनी के मालिकों ने उनके आविष्कार को ‛That’s Cute’ कहकर उससे पल्ला झाड़ लिया। कोडेक कंपनी का सारा व्यापार रेजर-ब्लेड नीति पर आधारित था और कंपनी नहीं चाहती थी कि डिजिटल कैमरे के चलन के कारण उसे अपनी नीति बदलनी पड़े। कंपनी को तात्कालिक लाभ दिखाई दिया किंतु भविष्य में होने वाले तकनीकी परिवर्तन और भावी नुकसान की गणना कंपनी नहीं कर सकी। कंपनी को लगा कि डिजिटल कैमरे को बढ़ावा देने पर कंपनी को उन फैक्ट्रियों को बंद करना होगा, जो कैमरे की रील और प्रिंटिंग शीट आदि का निर्माण करती हैं। साथ ही इससे हो रहा लाभ भी दांव पर लग जाता।

दौड़ में पीछे रह गयी कोडेक

हालांकि, डिजिटल कैमरे के विचार को ‘फ़ूजी फिल्म्स’ के नाम से एक जापानी कंपनी द्वारा बड़े पैमाने पर लागू किया गया था और जल्द ही, कई अन्य कंपनियों ने डिजिटल कैमरों का उत्पादन और बिक्री शुरू कर दी, जिससे कोडेक दौड़ में पीछे रह गई। वर्ष 1981 में कोडेक ने एक विस्तृत शोध कार्य कराया, जिसका उद्देश्य यह पता लगाना था कि डिजिटल कैमरा इंडस्ट्री में कोडेक द्वारा स्थापित पारंपरिक फिल्म कैमरे की इंडस्ट्री को हटाने की क्षमता है या नहीं। शोध कार्य के बाद जो रिपोर्ट सामने आई उसमें बताया गया था कि डिजिटल कैमरा पारंपरिक कैमरे को हटाकर बाजार पर कब्जा अवश्य ही कर लेगा, किंतु ऐसा होने में कम से कम 10 वर्ष का समय है। अर्थात् 1981 में ही कंपनी को यह पता लग चुका था कि डिजिटल कैमरा भविष्य में सफल अवश्य होगा और कंपनी के पास 10 वर्ष का पर्याप्त समय था कि वह अपनी बाजार नीति को बदल ले, किंतु तात्कालिक लाभ के लालच में कंपनी ने कोई ठोस परिवर्तन नहीं किया।

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बाजार से दूर हुई कोडेक

जब डिजिटल कैमरे का चलन बढ़ने लगा तब भी कोडेक ने अपनी नीति में परिवर्तन नहीं किया, बल्कि लोगों को प्रभावित करने के लिए प्रचार अभियान शुरू कर दिया। कंपनी ने लोगों को समझाया कि डिजिटल कैमरे का प्रयोग एक कठिन काम है और रील वाले कैमरे से जो भावनात्मक जुड़ाव होता है, वह डिजिटल कैमरे से नहीं हो सकता। कंपनी ने फीडबैक नहीं दिया। कंपनी को परिवर्तन के लिए 10 वर्ष का समय मिला, जिसे प्रचार अभियान चलाने में व्यर्थ कर दिया गया। यह कंपनी की सबसे बड़ी गलती थी, इस कारण डिजिटल कैमरे की बिक्री बढ़ती गई और कोडेक धीरे-धीरे बाजार से बाहर हो गई। जब तक कंपनी ने डिजिटल कैमरे बनाने शुरू किए, तब तक वह बाजार में पूरी तरह किनारे की जा चुकी थी। वर्ष 2004 में कंपनी ने पारंपरिक फिल्म कैमरे बनाने बंद कर दिए। वर्ष 2011 तक अमेरिकी शेयर बाजार में कंपनी के शेयर कंपनी के इतिहास में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए। ब्लैकबेरी की तरह कोडेक की कहानी भी यह बताती है कि बड़ी व्यापारिक कंपनियों के लिए यह सबसे आवश्यक है कि वह तकनीक में हो रहे परिवर्तनों को पहचाने। निवेशकों को भी इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही निवेश करना चाहिए।

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