‘वाइल्ड कार्ड’ के साथ भी भारत, चीनी कंपनियों को भारतीय बाजारों में प्रवेश की अनुमति नहीं देगा

चीन के हर चालाकी पर भारत की नजर आ रही है

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Huawei और ZTE जैसी फर्मों को 5G परीक्षणों में भाग लेने से रोकने के बाद सरकार अब यूरोपीय और अमेरिकी विक्रेताओं द्वारा दूरसंचार उपकरण क्षेत्र में चीनी लिंक को कम करने जा रही है। सरकार द्वारा कुछ गैर-चीनी विक्रेताओं के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (एनएससीएस) द्वारा ‘विश्वसनीय’ रूप में प्रमाणित होने के बावजूद चीन में स्थित उनके कारखानों में निर्मित कुछ उत्पादों के लिए मंजूरी नहीं मिल रही है।

इसका अर्थ यह है कि भारत ना सिर्फ़ चीन निर्मित उत्पादों को नकार रहा है बल्कि किसी न किसी तरीके से चीन से जुड़े आपूर्तिकर्ताओं को भी सबक सिखा रहा है। इसका अर्थ यह है कि मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत चीन के समस्त आपूर्ति श्रृंखला और विश्व का कारखाना कहे जाने वाली उसकी उपाधि को पूर्ण रूप से तोड़ रहा है।

यदि कोई फर्म कुछ उत्पादों के लिए ‘विश्वसनीय’ अनुमोदन प्राप्त करने में विफल रहता है, तो उसे प्रतिबंधित किया जा सकता है। यह जनादेश दूरसंचार क्षेत्र पर राष्ट्रीय सुरक्षा निर्देश का हिस्सा है, जो पिछले साल 15 जून को लागू हुआ था। हुआवेई और जेडटीई जैसी चीनी कंपनियों को छोड़कर अब तक लगभग 20 भारतीय और वैश्विक फर्मों को विश्वसनीय के रूप में अनुमोदित किया गया है।

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सुरक्षा निर्देश दूरसंचार ऑपरेटरों के साथ-साथ विक्रेताओं के लिए भी कठिन है। ऑपरेटरों को अपने नेटवर्क के बारे में सभी विवरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है जैसे मुख्य उपकरण, एक्सेस उपकरण, परिवहन उपकरण और समर्थन प्रणाली। सरकार द्वारा मांगी गई जानकारी में वेंडरों के बारे में हर विवरण शामिल है जैसे आपूर्तिकर्ता के साथ नेटवर्क रोलआउट, विस्तार और उन्नयन के बारे में विवरण। इसी तरह, दूरसंचार विक्रेताओं को अपनी कंपनी, निदेशकों, व्यवसायों, विनिर्माण, शेयरधारिता पैटर्न आदि के बारे में सभी विवरण भी एनएससीएस को प्रस्तुत करना होगा।

बहुराष्ट्रीय फर्मों को अंतिम लाभार्थियों का पता लगाने के लिए राष्ट्रीयता सहित तीन स्तर नीचे तक के शेयरधारिता पैटर्न प्रदान करने होंगे। वैश्विक विक्रेताओं को अपने प्रमुख लोगों जैसे कि निदेशक मंडल, वैश्विक अध्यक्ष/सीईओ और मालिक के बारे में राष्ट्रीयता विवरण प्रदान करने की अनिवार्यता की गई है। विक्रेताओं को विनिर्माण के वैश्विक स्थानों, सेवा वितरण केंद्रों, अनुसंधान एवं विकास के स्थानों आदि के बारे में भी विवरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।

चूंकि NSCS के पास विभिन्न प्रकार की सूचनाओं तक पहुंच है, इसलिए संचार नेटवर्क और आपूर्ति श्रृंखला में उत्पन्न होने वाली किसी भी प्रकार की कमजोरियों के बारे में निर्णय लेने के लिए संस्था बेहतर स्थिति में है। उदाहरण के लिए, जब कोई विश्वसनीय फर्म किसी ऐसे उत्पाद के लिए अनुमोदन मांगती है जिसे भारत के बाहर निर्मित किया जा सकता है, तो यह संभावित सोर्सिंग स्थानों के रूप में दुनिया भर में कई विनिर्माण इकाइयों का विवरण प्रस्तुत करता है। प्रभावी रूप से इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई उपकरण बाहर से आ रहा है तो वह चीन से नहीं आना चाहिए।

लेकिन, भले ही नए नेटवर्क रोलआउट में चीनी भागीदारी को रोकने के लिए सरकार प्रयासरत है पर, दूरसंचार ऑपरेटरों को अपने मौजूदा नेटवर्क के उन्नयन और रखरखाव के लिए अभी भी कभी-कभी अनुमति दी जा रही है। जैसे अगर कोई टेल्को मेट्रो शहरों या सीमावर्ती इलाकों में अपने नेटवर्क को अपग्रेड करना चाहता है, तो चीनी खिलाड़ियों को मंजूरी नहीं मिल सकती है, लेकिन अन्य दूरसंचार सर्किलों के लिए छूट दी जा सकती है। सूत्रों के मुताबिक हुवावे को 4जी के लिए कुछ अपग्रेड कॉन्ट्रैक्ट में छूट मिली है।

उद्योग के अनुमानों के अनुसार, अतीत में चीनी कंपनियों द्वारा 30% -40% 4G नेटवर्क शुरू किया गया था। पर, उनका शेयर अब नीचे आने वाला है क्योंकि दूरसंचार ऑपरेटरों ने चीनी विक्रेताओं को एरिक्सन और नोकिया जैसी यूरोपीय फर्मों के साथ बदलना शुरू कर दिया है।

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किसी ने ठीक ही कहा है की शासक बदलते ही शक्ति, सोच और साहस में भी परिवर्तन होने लगता है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने चीन की दमनकारी व्यापार नीति का जवाब पत्थर से दिया है। इतना ही नहीं चीन द्वारा किसी भी प्रकार के विस्तारवादी कुकृत्य का जवाब मोदी व्यापारिक कूटनीति के माध्यम से देने लगे हैं। इससे ना सिर्फ चीन पर दबाव बढ़ा है बल्कि सस्ती कीमत वाले उत्पादों में उसके वर्चस्व में भी भारी गिरावट आई है। हाल ही में भारत द्वारा लिए गए इस फैसले से ना सिर्फ चीन में बने उत्पादों बल्कि किसी न किसी प्रकार से भी चीन से जुड़े आपूर्तिकर्ताओं के लिए भारत के दरवाजे बंद होने वाले हैं। इससे ना सिर्फ चीन बल्कि विश्व भर में फैले उसके सहयोगी कंपनियों और उद्यमों को भी भारी झटका लगेगा।

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